राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ
भारत के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में कई बोलियाँ बोली जाती हैं। वैसे तो समग्र राजस्थान में हिन्दी बोली का प्रचलन है लेकिन लोक-भाषाएँ जन सामान्य पर ज़्यादा प्रभाव डालती हैं। जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी बोलियों के पारस्परिक संयोग एवं सम्बन्धों के विषय में वर्गीकरण किया है। ग्रियर्सन का वर्गीकरण इस प्रकार है :-
- पश्चिमी राजस्थान में बोली जाने वाली बोलियाँ - मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढारकी, बीकानेरी, बाँगड़ी, शेखावटी, खेराड़ी, मोड़वाडी, देवड़ावाटी आदि।
- उत्तर-पूर्वी राजस्थानी बोलियाँ - अहीरवाटी और मेवाती।
- मध्य-पूर्वी राजस्थानी बोलियाँ - ढूँढाड़ी, तोरावाटी, जैपुरी, काटेड़ा, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़, नागर चोल, हड़ौती।
- दक्षिण-पूर्वी राजस्थान - रांगड़ी और सोंधवाड़ी
- दक्षिण राजस्थानी बोलियाँ - निमाड़ी आदि।
बोलियाँ जहाँ बोली जाती हैं
मारवाड़ी
राजस्थान के पश्चिमी भाग में मुख्य रूप से मारवाड़ी बोली सर्वाधिक प्रयोग की जाती है। यह जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और शेखावटी में बोली जाती है। यह शुद्ध रूप से जोधपुर क्षेत्र की बोली है।बाड़मेर, पाली, नागौर और जालौर ज़िलों में इस बोली का व्यापक प्रभाव है। मारवाड़ी बोली की कई उप-बोलियाँ भी हैं जिनमें ठटकी, थाली, बीकानेरी, बांगड़ी, शेखावटी, मेवाड़ी, खैराड़ी, सिरोही, गौड़वाडी, नागौरी, देवड़ावाटी आदि प्रमुख हैं। साहित्यिक मारवाड़ी को डिंगल कहते हैं। डिंगल साहित्यिक दृष्टि से सम्पन्न बोली है।
मेवाड़ी
यह बोली दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर, भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ ज़िलों में मुख्य रूप से बोली जाती है। इस बोली में मारवाड़ी के अनेक शब्दों का प्रयोग होता है। केवल ए और औ की ध्वनि के शब्द अधिक प्रयुक्त होते हैं।
बाँगड़ी
यह बोली डूंगरपूर व बाँसवाड़ा तथा दक्षिणी-पश्चिमी उदयपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में बोली जाती हैं। गुजरात की सीमा के समीप के क्षेत्रों में गुजराती-बाँगड़ी बोली का अधिक प्रचलन है। इस बोली की भाषागत विशेषताओं में च, छ, का, स, का है का प्रभाव अधिक है और भूतकाल की सहायक क्रिया 'था' के स्थान पर 'हतो' का प्रयोग किया जाता है।
धड़ौती
इस बोली का प्रयोग झालावाड़, कोटा, बूँदी ज़िलों तथा उदयपुर के पूर्वी भाग में अधिक होता है।
मेवाती
यह बोली राजस्थान के पूर्वी ज़िलों मुख्यतः अलवर, भरतपुर, धौलपुर और सवाई माधोपुर की करौली तहसील के पूर्वी भागों में बोली जाती है। ज़िलों के अन्य शेष भागों में ब्रजभाषा और बांगड़ी का मिश्रित रूप प्रचलन में है। मेवाती में कर्मकारक में 'लू' विभक्ति एवं भूतकाल में 'हा', 'हो', 'ही' सहायक क्रिया का प्रयोग होता है।
बृज
उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे भरतपुर, धौलपुर, दिल्ली और अलवर ज़िलों में यह बोली अधिक प्रचलित है।
मालवी
झालावाड़, कोटा और प्रतापगढ़ ज़िलों में मालवी बोली का प्रचलन है। यह भाग मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के समीप है।
रांगड़ी
राजपूतों में प्रचलित मारवाड़ी और मालवी के सम्मिश्रण से बनी यह बोली राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग में बोली जाती है।
ढूँढाती
राजस्थान के मध्य-पूर्व भाग में मुख्य रूप से जयपुर, किशनगढ़, अजमेर, टौंक के समीपवर्ती क्षेत्रों में ढूँढ़ाड़ी भाषा बोली जाती है। इसका प्रमुख उप-बोलियों में हाड़ौती, किशनगढ़ी, तोरावाटी, राजावाटी, अजमेरी, चौरासी, नागर, चौल आदि प्रमुख हैं। इस बोली में वर्तमान काल में 'छी', 'द्वौ', 'है' आदि शब्दों का प्रयोग अधिक होता है।
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