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सोमवार, 14 दिसंबर 2015

वैदिक काल ( भाग 1)

वैदिक काल ( भाग 1)

वैदिक सभ्यता को भारतीय संस्कृति का आधार स्तंभ माना जाता हैं। वैदिक काल 1500 ई.पू से 600 ई.पू  तक माना जाता हैं। वैदिक काल को भी दो भागों में विभाजित किया गया है पहला 1500 ई. पू. से 1000 ई. पू. तक के काल को ऋग्वेदिक काल जाता है, इस काल में ही विश्व के सबसे प्राचीन माने जाने वाला ग्रंथ ऋग्वेद की रचना हुई थी तथा बाकी के तीन वेद यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद की रचना उत्तरवैदिक काल में हुई थी जिसका काल 1000 ई.पू. से 600 ई.पू. माना जाता हैं

ऋग्वेदिक काल( 1500 ई. पू. से 1000 ई. पू.)

इस काल की जानकारी ऋग्वेद से प्राप्त होती हैं   मैक्स मूलर के अनुसार आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया था। आर्य प्रारंभ में ईरान गए वहाँ से भारत आए।आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता ग्रामीण थी तथा उनकी भाषा संस्कृत थी।
इस काल की सबसे पवित्र नदी सरस्वती नदी थी जिसे नदियों की माता कहा जाता था। ऋग्वेदिक काल में प्रशासनिक इकाई पांच प्रकार की थी - ग्रह, ग्राम, विश, जन एवं राष्ट्र।
ग्रह को 'कुल' या परिवार भी कहा जाता था यह सबसे छोटी इकाई थी। परिवार के प्रमुख को 'कुलप' या 'ग्रहपति' कहते थे।
इस काल समाज पितृसत्तात्मक था लेकिन महिलाओं को भी समाज में उचित महत्व दिया जाता था। महिलाएं शिक्षा ग्रहण करती थी एवं राजनीति में भाग लेती थी इनमें प्रमुख थी - घोषा,अपाला,विश्वावरा,लोपमुद्रा इत्यादि। जीवन भर अविवाहित स्त्री को अमाजू कहा जाता था।
ऋग्वेदिक काल में आर्यो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था। गाय को इस काल में सबसे अधिक महत्व दिया जाता था ,गाय को 'अघ्न्या' कहा जाता था अर्थात न मारने योग्य। गाय की हत्या करने वाले को मृत्युदंड दिया जाता था। गाय दुहने वाले को दुहाता कहते थे।
आर्यों का पेय पदार्थ को 'सोमरस' कहा जाता था यह सोम नामक वनस्पति से बनाया जाता था 
ऋग्वेदिक काल में सर्वाधिक प्रमुख देवता इंद्र थे जिनके लिये ऋग्वेद में 250 सूक्त है तथा दूसरे प्रमुख देवता अग्नि थे जिनके लिए 200 सूक्त हैं। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र ऋग्वेद से लिया गया है जो सूर्य (सविता) देवता को समर्पित है। यह मंत्र पद्ध में रचित है। ऋग्वेद के भरत वंश के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा।

उत्तरवैदिक काल (1000 ई.पू. से 600 ई.पू.)

उत्तरवैदिक काल में आर्य पूरे गंगा दोआब क्षेत्र में फैल गए। ग्रामीण सभ्यता धीरे - धीरे नगरी सभ्यता में परिवर्तित होने लगी थी। इस काल में महिलाओं की स्थिति में थोड़ी गिरावट आई थी और उन्हें घर तक सीमित कर दिया गया। उत्तरवैदिक काल में विधवा स्त्री अपने देवर से विवाह कर सकती थी इसको नियोग प्रथा कहा जाता था।
इस काल में कबीलों से जनपद बनने लगे - गंधार, काशी, केकय, कोशल, मद्र आदि शक्तिशाली राज्य थे । राजा  'राजसूय', ' अश्वमेध ', ' वाजपेय ' जैसे विशाल यज्ञ का आयोजन करता था। उत्तरवैदिक काल में यज्ञ जटिल एवं खर्चीले हो गए सात पुरोहित यज्ञ में भाग लेते थे। यज्ञों का सम्पादन कार्य 'ऋित्विज' करते थे , इनके चार प्रकार थे  ऋिचाओ का पाठ करने वाला - 'होता ' , ' अध्वर्यु ' कर्मकांड का भार वहन करने वाला, गायन करने वाला उद्गाता' और ' ब्रह्मा ' कर्म का अध्यक्ष होता था।
अथर्ववेद में ' सभा ' एवं ' समिति ' को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है इस काल में भी सभा,समिति एवं विद्थ नामक तीन राजनीतिक संस्थाएं थी परन्तु सबसे महत्वपूर्ण संस्था समिति बन गयी। इंद्र के स्थान पर प्रजापति ( ब्रह्मा) प्रमुख देवता बन गए । वर्ण विभाजन स्पष्ट एवं जन्म आधारित हो गया। ब्रह्माण को मारना सबसे बड़ा पाप माना गया।
इस काल के प्रारंभ में तीन आश्रम प्रचलित थे - ' ब्रह्मचर्य ' , गृहस्थ ' एवं वानप्रस्थ लेकिन अंत  तक चौथा भी प्रचलित हो गया ' सन्यास '।

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