1857 की क्रांति । प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कारण
1857 की क्रांति - 1857 की क्रांति की शुरुआत मंगल पाण्डे ने एक अंग्रेज अधिकारी की हत्या करके की थी। धीरे-धीरे यह एक क्रांति की रूप लेती गयी और पुरे अंग्रेजी सत्ता को हिला कर रख दिया। बहुत से विदेशी विद्वानों का मत है कि यह केवल सैनिक क्रांति थी क्योंकि उस समय भारतीय सैनिको को चर्बी वाले कारतूस को प्रयोग के लिए दिए जाते थे। लेकिन भारतीय विद्वान् इसे प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम मानते हैं।
1857 के क्रांति के विषय विद्वानों का मत निम्न लिखित है।
1. वीर सावरकर - "यह भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम था"
2. अशोक मेहता - "यह भारत का प्रथम राष्ट्रीय आंदोलन था।
3. एल० ई० आर० रीज - "यह धर्मान्धों का ईसाईयों के विरुद्ध युद्ध था।
4. सर जॉन लॉरेंस - "यह एक सैनिक क्रांति थी"
5. पी० ई० रॉबर्ट्स - "यह केवल सैनिक संघर्ष था। जिसका तत्कालीन कारण कारतूस वाली घटना थी। इसका किसी पूर्वगामी षणयंत्र से कोई सम्बन्ध नही था"।
6. सर जेम्स आउटरम - "यह एक मुस्लिम षणयंत्र था, क्योंकि भारतीय मुसलमानो ने दिल्ली दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह के नेतृत्व में अंग्रेजो को भारत से निकालकर पुनः अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते थे।
इस क्रांति की शुरआत एक चर्बी वाली कारतूस से हुई। जब सैनिको ने चर्बी वाली कारतूस इस्तेमाल करने से मन कर दिया तो अंग्रेजो ने सैनिको को दण्डित किया। जिसका बदल लेने के लिए 6 अप्रैल 1857 को बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने अपने सैनिक साथियों के साथ मिलकर विद्रोह कर दिया और मंगल पांडे ने अपने एक अंग्रेज अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी। परिणाम स्वरूप अंग्रेजो ने 8 अप्रैल, 1857 को मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ा दिया। इस घटना के बाद 10 मई को सैनिको ने खुला विद्रोह कर दिया। अब सैनिको का रूप क्रांतिकारियों के रूप में बदल गई। 12 मई को क्रांतिकारियों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और बहादुर शाह जफर को भारत का सम्राट घोषित कर दिया।
अब क्रांति की लौ धीरे-धीरे समस्त उत्तरी और मध्य भारत कानपुर, लखनऊ, बरेली, इलाहाबाद, वाराणसी, झाँसी तथा बिहार के कुछ भाग और अन्य क्षेत्रो में फ़ैल गई। दिल्ली अंग्रेजो के हाथ से निकल जाने पर अंग्रेज कमजोर पड़ते गए। इसीलिए अंग्रेजो ने पंजाब से सेना बुलाकर सबसे पहले दिल्ली पर आक्रमण किया और उसे सितम्बर, 1857 में पुनः अपने कब्जे में ले लिया। उसके बाद 6 दिसम्बर, 1857 को जनरल कैम्पबेल ने नाना साहेब को हराकर कानपुर पर अधिकार प्राप्त कर लिया। मार्च, 1858 में अंग्रेजो ने लखनऊ, और 3 अप्रैल 1858 को झाँसी पर कब्जा कर लिया। अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर, बिहार के कुंवर सिंह ने विद्रोह कर दिया लेकिन जल्द ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा। दिसम्बर, 1858 तक अग्रेजो का पुनः भारत पर सत्ता कायम कर ली।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कारण
हाँलाकि 1857 ई० की क्रांति की शुरुआत मात्र चर्बी वाले कारतूस की घटना के रूप में हुई लेकिन अंग्रेजो द्वारा किये जा रहे अत्याचार, कुशासन, शोषण के कारण इसने एक विकराल रूप धारण कर ली।
1857 ई० की क्रांति के निम्नलिखित कारण थे।
राजनीतिक कारण
1. राज्यों को हड़पने की नीति - लार्ड डलहौजी ने राज्यों को हड़पने की नीति बनाई। इस नीति के अनुसार सन्तानहीन भारतीय राजाओं पर राज्य का उत्तराधिकारी निषेध एवं गोद निषेध नियम लागू कर उनके राज्यों को हड़प लिया। परिणामस्वरूप देशी राजाओं में अत्यधिक असन्तोष व्याप्त हो गया, जो 1857 की क्रांति का मुख्य कारण बना।
2. पेंशन तथा पदों की समाप्ति - लार्ड डलहौजी ने पेंशन और पदों को छीनने का प्रयास किया। उसके इस नीति के शिकार पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहब हुए। परिणामस्वरूप नाना साहब ने विद्रोह कर दिया।
3. कुशासन के आधार पर - लार्ड डलहौजी ने कुशासन को आधार बनाकर हैदराबाद के निजाम वे अवध के नवाब वाजिद अली शाह के विरुद्ध कार्यवाई करते हुए उनके राज्यो को हड़प लिया।
4. सरकारी नौकरियों में भेदभाव - सरकारी नौकरियों के उच्च पदों पर केवल अंग्रेजो को नियुक्त किया जाता था। भारतियों को उच्च पदों के लिये अयोग्य मन जाता था।
5. अंग्रेजी शासन के प्रति अविश्वास - अंग्रेज अधिकारी कभी भी भारतियों का विश्वास नही प्राप्त कर सके। वे सदैव विदेशी बने रहे।
2. पेंशन तथा पदों की समाप्ति - लार्ड डलहौजी ने पेंशन और पदों को छीनने का प्रयास किया। उसके इस नीति के शिकार पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहब हुए। परिणामस्वरूप नाना साहब ने विद्रोह कर दिया।
3. कुशासन के आधार पर - लार्ड डलहौजी ने कुशासन को आधार बनाकर हैदराबाद के निजाम वे अवध के नवाब वाजिद अली शाह के विरुद्ध कार्यवाई करते हुए उनके राज्यो को हड़प लिया।
4. सरकारी नौकरियों में भेदभाव - सरकारी नौकरियों के उच्च पदों पर केवल अंग्रेजो को नियुक्त किया जाता था। भारतियों को उच्च पदों के लिये अयोग्य मन जाता था।
5. अंग्रेजी शासन के प्रति अविश्वास - अंग्रेज अधिकारी कभी भी भारतियों का विश्वास नही प्राप्त कर सके। वे सदैव विदेशी बने रहे।
आर्थिक कारण
आर्थिक शोषण की नीति - अंग्रेजो ने भारतीय सूती वस्त्र एवं अन्य उत्पादों पर भारी कर लगा दिया, जिससे उनके व्यापार चौपट हो गए।
दोषपूर्ण भूमि व्यवस्था - अंग्रेजो ने जमीदारों को स्थाई भूमि स्वामी बना दिया जिससे वे किसानो से मनमाना भू-राजस्व वसूल करने लगे।
बेरोजगारी की समस्या - अंग्रेजो ने भारतीय उद्योगों को चौपट कर दिया, जिससे बेरोजगारी की समस्या बढ़ती गई।
धार्मिक कारण
1. ईसाई धर्म का प्रचार - अंग्रेज अधिकारी मेजर एडवर्डज ने ईसाई धर्म के प्रचार के लिए भारतीय सैनिको को ईसाई बनने के लिए प्रेरित किया। जो लोग ईसाई धर्म स्वीकार करते थे उन्हें आर्थिक सहायता दी जाती थी, और उन्हें सरकारी नौकरी भी आसानी से मिल जाती थी। अंग्रेजो की यह धर्मान्तरण नीति उनके विरुद्ध संघर्ष का कारण बना।
2. गोद निषेध नीति - लार्ड डलहौजी ने गोद लेने की प्रथा को समाप्त कर भारतीयों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पंहुचाई।
सामाजिक कारण
भारतियों के साथ अपमान जनक व्यवहार - अंग्रेज भारतीयो को सदा हीन भावना से देखते थे। वे किसी भी मौके पर अपमान जनक शब्द कहने से नही चूकते थे।
सैनिक कारण
चर्बी वाला कारतूस - अंग्रेजो ने भारतीय सैनिको को चर्बी वाला कारतूस प्रयोग के लिए दिया। जो उनके धर्म के खिलाफ था।
उच्च पदों से वंचित - भारतीय सैनिको को ऊँचा से ऊँचा पद मिलता था तो वह सूबेदार का था। भारतीय सैनिको की कभी भी पदोन्नति नही होती थी।
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