ज्वालामुखी क्या है?
ज्वालामुखी, पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि बाहर आते हैं. वस्तुतः यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक विभंग होता है जिसके द्वारा अन्दर के पदार्थ बाहर निकलते हैं. ज्वालामुखी द्वारा निःसृत इन पदार्थों के जमा हो जाने से निर्मित शंक्वाकार स्थलरूप को ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है. ज्वालामुखी नाम की उत्पत्ति रोमन आग के देवता वालकैन के नाम पर हुआ है. ज्वालामुखी की उत्पत्ति इसलिए होती हैं की चूँकि पूरी पृथ्वी 17 ठोस टेक्टोनिक प्लेटों में विभाजित है, इसी कारण से ज्वालामुखी का उद्भव होता है. वस्तुतः ज्वालामुखी की उदभव वहीं होता है जहाँ पर दो प्लेटें या तो एक दुसरे के विपरीत या एक दुसरे की तरफ सरकती रहती हैं.
हवाई द्वीप पर मौजूद मोना लोआ इस ग्रह पर सबसे बड़ा ज्वालामुखी है. संयुक्त राज्य अमेरिका में सेंट हेलेंस सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है. मंगल ग्रह पर ओलंपस मॉन्स सौर मंडल में सबसे बड़ा ज्वालामुखी है.
ज्वालामुखी के प्रकार
ज्वालामुखी विस्फोट की आवृत्ति के आधार पर इसे वर्गीकृत किया जाता है.
- जिन ज्वालामुखियों से लावा,गैस तथा विखंडित पदार्थ सदैव निकला करते हैं उन्हें जाग्रत या सक्रीय ज्वालामुखी कहते हैं. वर्त्तमान में विश्व के जाग्रत ज्वालामुखियों की संख्या 500 के लगभग बताई जाति है. इनमें प्रमुख हैं, इटली के एटना तथा स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी. स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी भूमध्य-सागर में सिसली के उत्तर में लिपारी द्वीप पर स्थित है. इससे सदैव प्रज्वलित गैसें निकला करती हैं. जिससे आस-पास का भाग प्रकाशमान रहता है, इसी कारण से इस ज्वालामुखी को भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ कहते है.
- कुछ ज्वालामुखी उदगार के बाद शांत पड जाते हैं तथा उनसे पुनः उदगार के लक्षण नहीं दिखते हैं, पर अचानक उनसे विस्फोटक या शांत उद्भेदन हो जाता है, जिससे अपार धन-जन की हानि उठानी पड़ती है. ऐसे ज्वालामुखी को जिनके उदगार के समय तथा स्वभाव के विषय में कुछ निश्चित नहीं होता है तथा जो वर्तमान समय में शांत से नज़र आते हैं, प्रसुप्त ज्वालामुखी कहते हैं. विसूवियस तथा क्राकाटाओ इस समय प्रसुप्त ज्वालामुखी की श्रेणी में शामिल किया जाता है. विसूवियस भूगर्भिक इतिहास में कई बार जाग्रत तथा कई बार शांत हो चुका है.
- शांत ज्वालामुखी का उदगार पूर्णतया समाप्त हो जाता है. तथा उसके मुख में जल आदि भर जाता हैं एवं झीलों का निर्माण हो जाता हैं तो पुनः उसके उदगार की संभावना नहीं रहती है. भुगढ़िक इतिहास के अनुसार उनमें बहुत लम्बे समय से उद्गार नहीं हुआ है. ऐसे ज्वालामुखी को शांत ज्वालामुखी कहते हैं. कोह सुल्तान तथ देवबंद इरान के प्रमुख शांत ज्वालामुखी है. इसी प्रकार वर्मा का पोप ज्वालामुखी भी प्रशांत ज्वालामुखी का उदारहरण है.
ज्वालामुखी के प्रभाव
- ज्वालामुखी विस्फोट विभिन्न प्रकार के होते हैं:
- फ्रेअटिक विस्फोट से भाप जनित विस्फोट की प्रक्रिया होती है
- लावा के विस्फोट के साथ उच्च सिलिका का विस्फोट होता है
- कम सिलिका स्तर के साथ भी लावा का असंयत विस्फोट होता है
- मलबे का प्रवाह
- कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन
- विस्फोट से लावा इतना चिपचिपा एवं लसदार होता है कि दो उद्गारों के बीच यह ज्वालामुखी छिद्र पर जमकर उसे ढक लेता है. इस तरह गैसों के मार्ग में अवरोध हो जाता है.
इन सभी भूकंपीय गतिविधियों की वजह से मानव जीवन को काफी हद तक नुकसान पहुंचता है. अक्सर यह होता है कि भूकम्प की प्रक्रिया के साथ ही ज्वालामुखी का उद्भेदन होता है. लेकिन ज्वालामुखी के उद्भेदन से न केवल भूकंप का उद्भव होता है बल्कि गर्म पानी के झरने और गाद का निर्माण भी इसकी वजह से होता है. 1815 ईस्वी में, टैम्बोरा के विस्फोट की वजह से इतनी अधिक गर्मी का उदभव हुआ था कि उस समय एक लोकप्रिय बात चल पड़ी थी कि "बिना ग्रीष्मकालीन ऋतु के गर्मी का महिना". उल्लेखनीय है कि इसकी वजह से उस समय काफी व्यापक मात्रा में उत्तरी गोलार्ध के लोगों को जन-धन को हानि का सामना करना पड़ा था. यह 19 वीं सदी का सबसे बुरा अकाल माना जाता है.
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