General Knowledge Question Answer
कास पठार
प्राचीन काल में आर्यों की भरत नाम की शाखा द्वारा हिमालय पर्वत के दक्षिणी भाग के अनार्यों अथवा आर्यो को पराजित करके उस भूभाग का नाम भरत शाखा के नाम पर ही भारतवर्ष रखा गया तथा इसके उत्तर-पश्चिम में प्रवाहित होने वाली नदी को सिन्धु नाम दिया गया। कालान्तर में ईरानियों ने इसे हिन्दू तथा देश को हिन्दुस्तान कहा, जबकि यूनानियों ने सिन्धु नदी को इन्डस और उस देश को, जहां यह नदी प्रवाहित होती है। 'इण्डिया' नाम दिया। वर्तमान समय में यही देश विश्व में 'भारत' एवं 'इण्डिया' दोनों नामों से जाना जाता है।
भारत के मुख्य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, गंगा और सिंधु नदी के मैदानी क्षेत्र और मरूस्थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप। हिमालय की तीन शृंखलाएँ हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े - बड़े पठार और घाटियाँ हैं, इनमें कश्मीरऔर कुल्लू जैसी कुछ घाटियाँ उपजाऊ, विस्तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्हीं पर्वत शृंखलाओं में हैं। अधिक ऊंचाई के कारण आना -जाना केवल कुछ ही दर्रों से हो पाता है, जिनमें मुख्य हैं -
चुंबी घाटी से होते हुए मुख्य भारत-तिब्बत व्यापार मार्ग पर जेलेपला और नाथुला दर्रा
उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग
कल्पना (किन्नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा
पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 किमी से 320 किमी तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा म्यांमार और भारत एवं बांग्लादेश के बीच में पहाड़ी शृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियाँ उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडियों की शृंखला से जा मिलती हैं।
मरुस्थली क्षेत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है बड़ा मरुस्थल कच्छ के रण की सीमा से लुनी नदी के उत्तरी ओर आगे तक फैला हुआ है। राजस्थान सिंध की पूरी सीमा इससे होकर गुजरती है। छोटा मरुस्थल लुनी से जैसलमेर और जोधपुर के बीच उत्तरी भूभाग तक फैला हुआ बड़े और छोटे मरुस्थल के बीच का क्षेत्र बिल्कुल ही बंजर है जिसमें चूने के पत्थर की पर्वत माला द्वारा पृथक किया हुआ पथरीला भूभाग है।
पर्वत समूह और पहाड़ी शृंखलाएँ जिनकी ऊँचाई 460 से 1,220 मीटर है, प्रायद्वीपीय पठार को गंगा और सिंधु के मैदानी क्षेत्रों से अलग करती हैं। इनमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्य,सतपुड़ा, मैकाला और अजन्ता। इस प्रायद्वीप की एक ओर पूर्व घाट दूसरी ओर पश्चिमी घाट है जिनकी ऊँचाई सामान्यत: 915 से 1,220 मीटर है, कुछ स्थानों में 2,440 मीटर से अधिक ऊँचाई है। पश्चिमी घाटों और अरब सागर के बीच एक संकीर्ण तटवर्ती पट्टी है जबकि पूर्व घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच का विस्तृत तटवर्ती क्षेत्र है। पठार का दक्षिणी भाग नीलगिरी पहाड़ियों द्वारा निर्मित है जहाँ पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके आगे इलायची की पहाडियाँ पश्चिमी घाट के विस्तारण के रुप में मानी जा सकती हैं।
भूगर्भीय संरचना
भूवैज्ञानिक क्षेत्र व्यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्हें तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:
हिमालय पर्वत शृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह।
भारत-गंगा मैदान क्षेत्र।
प्रायद्वीपीय क्षेत्र।
उत्तर में हिमालय पर्वत क्षेत्र और पूर्व में नागालुशाई पर्वत, पर्वत निर्माण गतिविधि के क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग जो वर्तमान समय में विश्व का सार्वधिक सुंदर पर्वत दृश्य प्रस्तुत करता है, 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्री क्षेत्र में था। 7 करोड़ वर्ष पहले शुरू हुए पर्वत-निर्माण गतिविधियों की शृंखला में तलछटें और आधार चट्टानें काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गई। आज हम जो इन पर उभार देखते हैं, उनको उत्पन्न करने में अपक्षय और अपरदक ने कार्य किया। भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र एक जलोढ़ भूभाग हैं जो दक्षिण के प्रायद्वीप से उत्तर में हिमाचल को अलग करते हैं।
प्रायद्वीप सापेक्ष स्थिरता और कभी-कभार भूकंपीय परेशानियों का क्षेत्र है। 380 करोड़ वर्ष पहले के प्रारंभिक काल की अत्याधिक कायांतरित चट्टानें इस क्षेत्र में पायी जाती हैं, बाक़ी क्षेत्र गोंदवाना के तटवर्ती क्षेत्र से घिरा है, दक्षिण में सीढ़ीदार रचना और छोटी तलछटें लावा के प्रवाह से निर्मित हैं।
भौगोलिक स्थिति
पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में 804‘ उत्तरी आक्षांश 3706 उत्तरी अक्षांश तथा 6807‘ पूर्वी देशान्तर से 97025‘ पूर्वी देशान्तर के बीच 32,87,782 वर्ग किमी क्षेत्रफल पर विस्तृत भारतहिन्द महासागर के उत्तरी में स्थित है। इस प्रकार इसका अक्षांशीय तथा देशान्तरीय विस्तार लगभग 300 है। भारत की मुख्य भूमि से दूर अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह का दक्षिणतम बिन्दु 'इन्दिरा प्वाइंट' 6030‘ उत्तरी अक्षांश पर ग्रेट निकोबार में स्थित है।
8201/2 पूर्वी देशान्तर इसके लगभग मध्य से होकर गुजरती है, जो कि देश का मानक समय भी है। पूर्व से पश्चिम तक इसकी लम्बाई 2,933 किमी तथा उत्तर से दक्षिण तक लम्बाई 3,214 किमी है। इसकी स्थलीय सीमा की लम्बाई 15,200 किमी तथा द्वीप सहित जलीय सीमा की लम्बाई 7516,6 किमी है। मुख्य धरातलीय भाग की समुद्री सीमा की लम्बाई 6100 किमी है। यदि अंडमान-निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीप समूहों को भी सम्मिलित किया जाए तो भारत की तटीय सीमा 7516.6 किमी हो जाती है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व का सातवाँ बड़ा देश है। इससे बड़े 6 देश हैं - रूस, कनाडा, चीन, संयुक्त राज्य अमरीका, ब्राजील तथा आस्ट्रेलिया। इसके विपरीत भारत पाकिस्तान से 4 गुना, फ्रांस से 6 गुना, जर्मनी से 9 गुना तथा बांग्लादेश से 23 गुना बड़ा है। भारत का धुर दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा से मात्र 876 किमी दूर है।
भू-आकृति
विश्व में क्षेत्रफल एवं जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़े महाद्वीपीय एशिया में स्थित भारत की आकृति पूर्णतः त्रिभुजाकार न होकर चतुष्कोणीय हे एवं यह भूमध्यरेख के उत्तर में स्थित है। कर्क रेखा इसके लगभग मध्य भाग से होकर गुजरती है। कर्क रेखा जिन प्रदेशों से होकर गुजरती है वे हैं - गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल,त्रिपुरा तथ मिजोरम। देश का मानक समय ग्रीनविच टाइम से 5 घंटें 30 मिनट आगे है।
अरुणाचल प्रदेश तथा सौराष्ट्र के बीच स्थानीय समय का अन्तर 30x40=120 मिनट अर्थात दो घण्टे का है क्योंकि अरुणांचल प्रदेश सौराष्ट्र के पूर्व में है, इसलिए सूर्योदय वहाँ पहले होगा। पूरा भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है।
भारत में उत्तर-पश्चिम में इन्दिरा कॉल पर देश की स्थलीय सीमा अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, तजाकिस्तान और चीन से मिलती है जबकि सुदूर उत्तरी-पूर्वी कोने पर भारतीय सीमा के साथ चीन और म्यांमार की सीमाएँ आपस में मिलती हैं। इसका सबसे दक्षिणी बिन्दु अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित है, जिसको वर्तमान में इन्दिरा प्वाइंट के नाम से जाना जाता है। इसके पूर्व नाम हैं - ला हि चिंग, पिगमेलियम प्वॉइण्ट तथा पारसन प्वॉइण्ट। द्वीपों समेप देश की समुद्री सीमा की कुल लम्बाई 7516,6 किमी. है।
देश सम्प्रति 28 राज्यों तथा 7 केन्द्र शासित प्रदेशों का एक संघ है। इसकी प्रादेशिक जल सीमा आधार पर रेखा से मापे गये 12 समुद्री मील की दूरी तक है जबकि संलग्न क्षेत्र की दूरी प्रादेशिक जल सीमा के आगे 24 समुद्री मील तक है। इस क्षेत्र में भारत को स्वच्छता का प्रबन्ध करने, सीमा शुल्क की वसूली करने आदि का अधिकार प्राप्त है। देश का एकान्तिक आर्थिक क्षेत्र संलग्न क्षेत्र के आगे 200 समुद्री मील तक हैं, जिसमें वैज्ञानिक शोधकार्यों को करने तथा कृत्रिम द्वीपों का निर्माण एवं प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन करने की छूट मिली हुई है।
क्षेत्रफल
यद्यपि देश का क्षेत्रफल विश्व के कुल क्षेत्रफल का मात्र 2.42 प्रतिशत ही है, किन्तु यहाँ पर विश्व की लगभग 16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। यहाँ की प्राकृतिक बनावट, संसाधन क्षमता आदि को देखते हुए जार्ज बी. क्रैंसी. ने अपनी भौगोलिक पुस्तक 'एशिया की भूमि एवं निवासी' में लिखा है कि 'भारत को महाद्वीप कहलाने का उतना ही अधिकार है जितना कियूरोप को।'
देश की सीमाएँ
देश की सीमाएँ प्राकृतिक एवं मानव निर्मित दोनों प्रकार की है। भारत की स्थलीय सीमाएं उत्तर में तजाकिस्तान, चीन व नेपाल, उत्तर पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम में पाकिस्तान, पूर्व में बांग्लादेश एवं म्यांमार तथा उत्तर-पूर्व में भूटान से मिलती है। पश्चिम में पाकिस्तान और पूर्व में बांग्लादेश के साथ भारत की सीमाएं कृत्रिम अथवा मानव निर्मित हैं जबकि अन्य 6 देशों - अफ़ग़ानिस्तान, तजाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान तथा म्यांमार के साथ भारत की सीमाएं प्राकृतिक हैं। ये प्राकृतिक सीमाएं सामान्यतः ऊंची पर्वत शृंखलाओं के रूप में है। उत्तर में हिमालय पर्वत हमारी सीमा बनाता है। इसकी मुस्ताघ, अगोल, कुनलुन तथा काराकोरम श्रेणियाँ जम्मू कश्मीर की सीमा पर है। यहाँ पर एशिया के चार प्रमुख देशों:
चीन
भारत
अफ़ग़ानिस्तान
पाकिस्तान की सीमा आकार मिलती है।
भारत के पूर्व की ओर उच्च हिमालय का भाग है जो भारत तथा चीन के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा का कार्य करता है। इसे मैकमोहन रेखा के नाम से जाना जाता है। भारत के सुदूर उत्तरी पूर्वी कोने पर उत्तरी-पूर्वी त्रिसन्धि है जहाँ पर भारत, चीन तथा म्यांमार की सीमाएँ आपस में मिलती है। पाकिस्तान एवं भारत की सीमा को स्पर्श करने वाले भारतीय राज्य हैं - जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान तथा गुजरात; जबकि अफ़ग़ानिस्तान की सीमा मात्र जम्मू कश्मीर राज्य को स्पर्श करती है। भारत एवं चीन की सीमा से सटे राज्य हैं - जम्मू कश्मीर राज्य को स्पर्श करती है। भारत एवं चीन की सीमा से सटे राज्य हैं - जम्मू-कश्मीर राज्य को स्पर्श करती है। भारत एवं चीन की सीमा से सटे राज्य हैं - जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड,सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर तथा मिजोरम की सीमाएँ उत्तर-पूर्व में स्थित म्यांमार को स्पर्श करती हैं। बांग्लादेश एवं भारत की सीमा से लगे भारतीय राज्य हैं - मिजोरम, त्रिपुरा, असम, मेघालय तथा पश्चिम बंगाल।
वर्तमान में भारत के 9 राज्यों व 5 केन्द्रशासित प्रदेशों की सीमाएँ समुद्री तटरेखा से लगे हैं। ये राज्य हैं - कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल। केन्द्रशासित प्रदेशों में पुदुचेरी, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव की सीमाएं भी समुद्र से लगती है। भारत की सबसे लम्बी सीमा स्थलीय सीमा चीन के साथ लगती है जबकि सबसे छोटी स्थलीय सीमा भूटान के साथ संलग्न है। इस प्रकार भारत की स्थिति काफ़ी महत्त्वपूर्ण है एवं हिमालय पर्वतमाला तथा हिन्द महासागर के शीर्ष पर भारत की केन्द्रीय स्थिति है। भारत के निकटतम पड़ोसी देश हैं - पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, चीन, नेपाल, म्यांमार तथा बांग्लादेश। पाक जलसन्धि द्वारा अलग हुआ श्रीलंका भी हिन्द महासागर में स्थित पड़ोस देश है। भूटान जैसा पड़ोसी देश एक विशेष सन्धि द्वारा भारत पर निर्भर करता है एवं इसकी प्रतिरक्षा, विकास आदि कार्यों का उत्तरदायित्व भारत पर है। समुद्र पार भारत का सबसे निकटतम पड़ोसी श्रीलंका है, जिसे पाक जलडमरूमध्य भारत से पृथक करता है। इसी प्रकार भारत का दूसरा सबसे निकटतम पड़ोसी देश इंडोनेशिया है। इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप और भारत के ग्रेट निकोबार द्वीप को ग्रेट चैनल पृथक करता है। मालदीव भारत का एक अन्य पड़ोसी देश है जो लक्षद्वीप के दक्षिण में स्थित है।
भारत की भू-आकृतिक इकाइंया
इकाइयाँक्षेत्रफलकुल क्षेत्रफल का प्रतिशत
उत्तरी पर्वत श्रेणियाँ 5,78,000 17.9
विशाल मैदान 5,50,000 17.9
थार मरुस्थल 1,75,000 5.4
मध्यवर्ती उच्च भूमि 3,36,000 10.4
प्रायद्वीपीय पठार 12,41,000 38.5
तटीय मैदान 3,35,000 10.4
द्वीपीय समूह 8,300 0.3
देशसीमा पर अवस्थित भारतीय राज्य
पाकिस्तान गुजरात, राजस्थान, पंजाब और जम्मू कश्मीर
अफ़ग़ानिस्तान जम्मू कश्मीर
तजाकिस्तान जम्मू कश्मीर
चीन जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश
नेपाल उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम और पश्चिम बंगाल
भूटान सिक्किम, पश्चिमी बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश
बांग्लादेश पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और त्रिपुरा
म्यांमार अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणिपुर और मिजोरम
भौतिक स्वरूप
वृहत हिमालय के प्रमुख शिखरशिखरऊँचाई (मी.)
एवरेस्ट (सागर माथा) 8,848 मी.
एवरेस्ट दक्षिण 8,754 मीं.
कंचनजंगा 8,594 मीं.
ल्होत्से 8,501 मीं.
मकालू 8,481 मीं.
कंचनजंगा (दक्षिण) 8,471 मीं.
कंचनजंगा (पश्चिम) 8,420 मीं.
ल्होत्से मध्य 8,410 मीं.
ल्होत्से शर 8,384 मीं.
धौलागिरि 8,172 मीं.
मनास्लू 8,156 मीं.
चिओयू 8,153 मीं.
नंगा पर्वत 8,126 मीं.
अन्नपूर्णा 8,078 मीं.
गोसाई नाथ 8,013 मीं.
मकालू (दक्षिण) 8,010 मीं.
नन्दा देवी 7,817 मीं.
नामचाबरवा 7,756 मीं.
हरामोश 7,397 मीं.
भारत का विशाल क्षेत्र भौतिक दृष्टि से सर्वत्र समान नहीं है बल्कि इसके उच्चावचन में काफ़ी विविधता पायी जाती है। इसमें कहीं पर तो उच्च पर्वत श्रेणियां हैं और कहीं पर विशाल मैदान। नदी घांटियाँ एवं पठारी भाग भी देश में विद्यमान हैं। यदि उत्तर में हिमालय जैसी नवीन पर्वत मालाएं स्थित हैं; तो अरावली, सतपुड़ा, विन्ध्याचल जैसी प्राचीन पर्वत श्रेणियाँ भी हैं। देश के कुल क्षेत्रफल के 10.7 प्रतिशत भाग पर उच्च पर्वत श्रेणियों का विस्तार पाया जाता है, जिनकी ऊंचाई समुद्र तट से 2,135 मी. या इसके अधिक है। समुद्र तट से 305 से 2,135 मी. तक की ऊंचाई वाली पहाड़ियाँ भी देश के 18.6 प्रतिशत भाग पर फैली हैं। इस प्रकार कुल पर्वतीय भाग 29.3 प्रतिशत है। समुद्र तट से 305 से 915 मीं तक ऊंचाई वाले पठारी भाग का विस्तार भी देश के 27.7 प्रतिशत क्षेत्र पर है, जबकि शेष 43.0 प्रतिशत पर विस्तृत मैदान पाये जाते हैं। उच्चावचन की दृष्टि से भारत को सामान्यतः चार प्राकृतिक या भौतिक भागों में वर्गीकृत किया जाता है, जो हैं:
उत्तर का पर्वतीय एवं पहाड़ी प्रदेश
उत्तर का विशाल मैदान
प्रायद्वीपीय पठारी भाग
समुद्र तटीय मैदान। पुनः थार का विशाल मरुस्थल तथा सागरीय भाग में स्थित द्वीप भी एक विशेष प्रकार का भौतिक स्वरूप प्रस्तुत करते हैं।
उत्तर का पर्वतीय एवं पहाड़ी प्रदेश
इस प्रदेश का हिमालय पर्वतीय प्रदेश के रूप में भी जाना जाता है, जो देश की उत्तर सीमा पर एक चाप के आकार में 2400 किमी. की लम्बाई में फैला है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। इसका उद्गम पामीर की गाँठ से हुआ है। इसकी उत्पत्ति वस्तुतः एक भू-द्रोणी, जिसेटेथिस सागर कहते हैं, से हुई है। हिमालय पर्वत श्रेणी की कुल लम्बाई मकरान तट पर स्थित ग्वाडर से लेकर पूर्व में मिजों पहाड़ियों तक 2,400 किमी. है, जबकि इसकी चौड़ाई पश्चिम में 400 किमी और पूरब में 160 किमी. तक है। हिमालय की स्थलाकृतियों में मुख्यतः तीन लंबी और घुमावदार श्रेणियां हैं, जिनकी ऊंचाई दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमशः बढ़ती जाती है। मंद गति के कारण इन्हें वर्तमान ऊंचाई को प्राप्त करने में 70 लाख वर्ष लगे हैं। भौतिक दृष्टि से हिमालय मे चार समान्तर श्रेणियां मिलती हैं जिनमें, सबसे उत्तर में ट्रांस अथवा तिब्बत हिमालय, उसके दक्षिण में क्रमशः महान अथवा आन्तरिक हिमालय, लघु अथवा मध्य हिमालय तथा उप अथवा शिवालिक श्रेणी स्थित हैं।
ट्रान्स अथवा तिब्बत हिमालय श्रेणी सबसे उत्तर में स्थित हैं। इसकी खोज सन् 1906 स्वैन महोदय ने की थी। इसकी लम्बाई 100 किमी. तथा चौड़ाई पूर्वी तथा पश्चिमी किनारों पर 40 किमी एवं बीच में 225 किमी तक पायी जाती है। इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 3,100 से 3,700 मी तक पायी जाती है। इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 3,100 से 3,700 मीं तक है एवं शीत कटिबन्धीय जलवायु के कारण इस पर वनस्पतियों का पूर्ण अभाव पाया जाता है। यह श्रेणी बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों तथा उत्तर दिशा में भू-आवेष्ठित झीलों से निकलने वाली नदियों के बीच जल विभाजक की भूमिका निभाती है।
हिमालय तीन समानांतर पर्वत श्रंखलाओं में अवस्थित है जो पश्चिम में सिंधु गार्ज से पूर्व में ब्रह्मपुत्र गार्ज तक विस्तृत है। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक हिमालय पर्वत श्रंखला का विस्तार 2500 किमी. है। इस पर्वत शृंखला की पूर्व में चौड़ाई 150 किमी. तथा पश्चिम में 500 किमी तक है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हिमालय पर्वत श्रेणी को तीन वृहत् भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
महान (वृहत्) अथवा आंतरिक हिमालय
महान अथवा आन्तरिक हिमालय ही हिमालय पर्वतमाला की सबसे प्रमुख तथा सवोच्च तथा सर्वोच्च श्रेणी है, जिसकी लम्बाई उत्तर में सिंधु नदी के मोड़ से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी. है। इसकी चौड़ाई 120 से 190 किमी. तक तथा औसत ऊंचाई 6,100 मीं. है। अत्यधिक ऊंचाई के कारण हिमालय साला भर बर्फ़ से ढंका रहता हैं, अतः इसे हिमाद्रि भी कहते हैं। इस श्रेणी में विश्व की सर्वोच्च पर्वत चोटियाँ पाई जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं - माउण्ट एवरेस्ट (8,848 मी.), कंचनजंगा (8,598 मीं.), मकालू (8,481 मीं.), धौलागिरी (8,172 मी.), मनसालू (8156 मी.), नंगा पर्वत (8,126 मीं.), अन्नापूर्णा (8,078 मी.), गोवाई थान (8,013 मी.), नन्दा देवी (7,817 मी.), नामचाबरवा (7,756 मी.), हरामोश (7,397 मी.), आदि। इस श्रेणी में उत्तर पश्चिम की ओर जास्कर श्रेणी के उत्तर-दक्षिण में देवसाई तथा रूपशू के ऊंचे मैदान मिलते हैं। सिन्धु, सतलुज, दिहांग, गंगा, यमुना तथा इनकी सहायक नदियों की घाटियाँ इसी श्रेणी में स्थित है।
लघु अथवा मध्य हिमालय श्रेणी
यह महान हिमालय के दक्षिण के उसके समानान्तर विस्तृत है। इसकी चौड़ाई 80 से 100 किमी. तक औसत ऊंचाई 1,828 से 3,000 के बीच पायी जाती है। इस श्रेणी में नदियों द्वारा 1,000 मीं. से भी अधिक गहरे खड्डों अथवा गार्जों का निर्माण किया गया है। यह श्रेणी मुख्यतः छोटी-छोटी पर्वत श्रेणियों जैसे - धौलाधार, नागटीवा, पीरपंजाल, महाभारत तथा मसूरीकासम्मिलित रूप है। इस श्रेणी के निचले भाग में देश के प्रसिद्ध पर्वतीय स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान - शिमला, मसूरी, नैनीताल, चकराता, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्थित है। वृहत तथा लघु हिमालय के बीच विस्तृत घाटियां हैं जिनमें कश्मीर घाटी तथा नेपाल में काठमांडू घाटी प्रसिद्ध है। इस श्रेणी के ढालों पर मिलने वाले छोटे-छोटे घास के मैदानों को जम्मू-कश्मीर में मर्ग (जैसे-सोनमर्ग, गुलमर्ग आदि) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल एवं पयार कहा जाता हे।
उप हिमालय या शिवालिक श्रेणी
यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है एवं इसको ‘वाह्म हिमालय’ के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय पर्वत की दक्षिणतम श्रेणी है जो लघु हिमालय के दक्षिण में इसके समानांतर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई है। इसकी औसत ऊंचाई 900 से 12,00 मीटर तक औसत चौड़ाई 10 से 50 किमी है। इसका विस्तार पाकिस्तान के पोटवार पठार से पूर्व में कोसी नदी तक है। गोरखपुर के समीप इसे डूंडवा श्रेणी तथा पूर्व की ओर चूरियामूरिया श्रेणी के स्थानीय नाम से भी पुकारा जाता है। यह हिमालय पर्वत का सबसे नवीन भाग है। लघु तथा वाह्म हिमालय के बीच पायी जाने वाली विस्तृत घाटियों को पश्चिम में ‘दून’ तथा पूर्व में ‘द्वार’ कहा जाता है। देहरादून, केथरीदून तथा पाटलीदून और हरिद्वार इसके प्रमुख उदाहरण है।
हिमालय पर्वत श्रेणियों की दिशा में असम से पूर्व से उत्तर पूर्व हो जाती है। नामचाबरचा के आगे यह श्रेणियाँ दक्षिणी दिशा में मुड़कर पटकोई, नागा, मणिपुर, लुशाई, अराकानयोमा, आदि श्रेणियों के रूप में स्थित हैं जो भारत एवं म्यान्मार के मध्य सीमा बनाती है।
शिवालिक को जम्मू में जम्मू पहाड़ियाँ तथा अरुणाचल प्रदेश में डफला, गिरी, अवोर और मिशमी पहाड़ियों के नाम से भी जाना जाता है। अक्साईचीन, देवसाई, दिषसंग तथा लिंगजीतांग के उच्च तरंगित मैदान इन पर्वतों के निर्माण से पहले ही क्रिटेशश काल में बन चुके थे जो अपरदन धरातल के प्रमाण हैं।
उत्तर का विशाल मैदान
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति के पश्चात उसके दक्षिण तथा प्राचीन शैलों से निर्मित प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर में, दोनों उच्च स्थलों से निकलने वाली नदियों, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, आदि द्वारा जमा की गई जलोढ़ मिट्टी के जमाव से उत्तर के विशाल मैदान का निर्माण हुआ है। इस मैदान को सिंधु-गंगा ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहते हैं। यह मैदान धनुषाकार रूप में 3200 किमी. की लम्बाई में देश के 7.5 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत हैं। इसकी चौड़ाई पश्चिम में 480 किमी तथा पूर्व में मात्र 145 किमी है। प्रादेशिक दृष्टि से उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा,उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा असम में इसका विस्तार हैं। इन मैदान को पश्चिमी तथा पूर्वी दो भाग में बांटा जाता है। पश्चिमी मैदान का अधिकांश भाग वर्तमानपाकिस्तान के सिन्ध प्रांत में पड़ता है, जबकि इसका कुछ भाग पंजाब व हरियाणा राज्यों में भी मिलता है। इसका निर्माण, सतजल, व्यास तथा रावी एवं इनकी सहायक नदियों द्वारा किया गया है। पूर्वी मैदान का विस्तान उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल राज्यों में हैं, जिसका क्षेत्रफल 3.57 लाख वर्ग किमी. है। इस मैदान में धरातलीय भू-आकृति के आधार पर बांगर तथा खादर नामक दो विशेष भाग मिलते हैं। बांगर प्राचीनतम संग्रहीत पुरानी जलोढ़ मिट्टी के उच्च मैदानी भाग हैं, जहाँ कभी नदियों की बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। खादर की गणना नवीनतम कछारी भागों के रूप में की जाती है। यहाँ पर प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी पहुंचने एवं नयी मिट्टी का जमाव होने से काफ़ी ऊपजाऊ माने जाते हैं।
उत्तर के विशाल मैदान का प्रादेशिक विभाजन
उत्तर के विशाल मैदान को अनेक उपविभागों में बाँटा गया है, जिनमें प्रमुख हैं - पंजाब, हरियाणा का मैदान, राजस्थान का मेदान, गंगा का मैदान एवं ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी। गंगा के मैदान को हरिद्वार से अलीगढ़ तक ऊपरी दोआब तथा अलीगढ़ से इलाहाबाद तक मध्य दोआब के नाम से जाना जाता है। गंगा तथा यमुना दोआब के ऊत्तरी-मध्य उत्तर प्रदेश में स्थित भाग को रूहेलखण्ड का मैदान कहा जाता है। इस मैदान पर राम गंगा, शारदा तथा गोमती नदियाँ प्रवाहित होती है। उत्तर प्रदेश के उत्तरी पूर्वी भाग में अवध का मैदान स्थित हैं, जिसमेंघाघरा, राप्ती तथा गोमती नदियाँ बहती है। गंगा के मैदान के उत्तरी-पूर्वी भाग में असम तक ब्रह्मपुत्र नदी का मैदान स्थित है, जो कि गारो पहाड़ी, मेघालय पठार तथा हिमालय पर्वत के बीच लम्बे एवं पतले रूप में फैला है। इसकी चौड़ाई मात्र 80 किमी. है। ब्रह्मपुत्र नदी घाटी की अवनतीय संरचना मे जमा किये गये अवसादों से इस मेदान में मियाण्डर, गोखुर झील, आदि का निर्माण हो गया है। इस मैदान के ढाल की दिशा दक्षिण-पश्चिम की ओर है तथा इसकी सीमा पर तराई एव अर्द्ध-तराई क्षेत्र मिलते हैं, जो दलदलो एवं सघन वनों से अच्छादित हैं
GK Questions Answers
उत्तर के विशाल मैदान से सम्बन्धित दो प्रमुख शब्दावलियाँ हैं - भावर तथा तराई। ये अवसादी जमाव की विशेषताओं की परिचारक भी हैं।भावर
यह क्षेत्र हिमालय तथा गंगा के मैदान के बीच पाया जाता है। जिसमें पर्वतीय भाग से नीचे आने वाली नदियों ने लगभग 8 किमी की चौड़ाई में कंकड़ों एवं पत्थरों का जमाव कर दिया है। यही गंगा मैदान की सबसे उत्तरी सीमा भी है। इस पथरीले क्षेत्र में हिमालय से निकलने वाली नदियाँ प्रायः विलीन हो जाती है और केवल कुछ बड़ी नदियों की धारा ही धरातल पर प्रवाहित होती हुई दिखती है।तराई
यह क्षेत्र भावर के नीचे उसके समानान्तर स्थित है, जिसकी चौड़ाई 15 से 30 किमी तक पायी जाती हैं। भावर प्रदेश में विलीन हुई नदियों का जल तराई क्षेत्र में ऊपर आ जाता हे। यह वास्तव में निम्न समतल मैदानी क्षेत्र हैं, जहाँ नदियों का जल इधर-उधर फैल जाने से दलदलों का निर्माण हो गया है। वर्तमान में यहां की सघन वनस्पतियों को काटकर तथा दलदलों को सुखाकर कृषि कार्य के लिए उपयोगी बना लिया गया है।बांगर
बांगर प्रदेश भी उत्तर के विशाल मैदान की एक विशेषता है। यह प्रदेश पुरानी जलोढ़ मिट्टी का बना होता है जहां नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुंचता है। इस प्रदेश में चूनायुक्त संग्रथनों की अधिकता होने के कारण यह कृषि के लिए अधिक उपयुक्त नहीं होता है। पंजाब में मिलने वाले बांगर को धाया कहा जाता है।खादर
बांगर के विपरीत खादर प्रदेश में नदियों की बाढ़ का जल प्रतिवर्ष पहुंचता है। इस प्रदेश का निर्माण नवीन जलोढ़ मिट्टी द्वारा होता है क्योंकि बाढ़ के जल के साथ नवीन मिट्टी यहां प्रति वर्ष बिछती रहती है। यह प्रदेश कृषि के लिए अत्यधिक उपयुक्त होती है। पंजाब में मिलने वाले खादर को ‘बेट’ कहा जाता है।डेल्टा
मुख्य लेख : डेल्टा
उत्तरी विशाल मैदान में गंगा तथा सिंधु नदी के डेल्टा मिलते हैं। गंगा का डेल्टा राजमहल की पहाड़ियों में सुन्दरवन के किनारे तक 430 किमी की लम्बाई में विस्तृत है। इसकी चौड़ाई 480 किमी है। सिंधु नदी का डेल्टा 960 किमी लम्बा और 160 किमी चौड़ा है।
प्रायद्वीपीय पठारी भाग
मुख्य लेख : प्रायद्वीप
गंगा के विशाल मैदान के दक्षिण से लेकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक त्रिभुजाकार आकृति में लगभग 16 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर प्रायद्वीपीय पठारी भाग फैला हुआ है। यह भाग दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं केरल राज्यों में फैला है। यह देश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला तथा प्राचीन भौतिक प्रदेश है। यह देश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला तथा प्राचीन भौतिक प्रदेश है। इस पर प्रवाहित होने वाली नदियों ने इसका कई छोटे-छोटे पठारों में विभाजित कर दिया है। इसकी लम्बाई राजस्थान से कुमारी अन्तरीप तक लगभग 1,700 किमी. तथा गुजरात से पश्चिम बंगाल तक चौड़ाई 1,400 किमी है। इस पठार की औसत ऊँचाई समुद्र तल से 600 मीटर तक है। इसकी उत्तरी सीमा पर अरावली, कैमूर तथा राजमहल पहाड़ियाँ स्थित है। पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट पहाड़ी इसकी सीमा बनाते हैं। यह क्षेत्र विच्छिन्न पहाड़ियों, शिखर मैदानों गभीरकृत, संकरी एवं अधिवर्धित घाटियों, शृंखलाबद्ध पठारों, समप्राय मैदानों एवं अवशिष्ट खण्डों का एक प्राकृतिक भूदृश्य है। पूर्वी एवं पश्चिमी घाट का मिलन जिस स्थान पर होता है, वहां अन्नामलाई पहाड़ियाँ स्थित है। नर्मदा नदी के उत्तर में मालवा पठार स्थित है। यह पठार लावा निर्मित होने के कारण काली मिट्टी का समप्रायः बन गया है, जिसका ढाल विशाल मैदान की ओर है। इस पर बेतवा, पार्वती, नीवज, काली सिन्ध, चम्बल तथा माही नदियाँ बहती है। मालवा पठार की उत्तरी तथा उत्तरी पूर्वी सीमा पर बुन्देलखण्डतथा बघेलखण्ड के पठार स्थित हैं जबकि कैमूर तथा भारनेर श्रेणियों के पूर्व में बघेलखण्ड का पठार है। इस पठार के उत्तर में सोनपुर पहाड़ियाँ तथा दक्षिण में रामगढ़ की पहाड़ियाँ स्थित है।
समुद्रतटीय मैदान
दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठारी भाग के दोनों ओर पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट पर्वतमालाओं एवं सागर तट के बीच समुद्रतटीय मैदानों का विस्तार है। यह तटीय मैदान देश के अन्य प्राकृतिक विभाग से स्पष्ट भिन्नता रखता है। स्थित के आधार पर इन्हे पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों में विभाजित किया जाता है।
पश्चिमी समुद्र तटीय मैदान का विस्तार गुजरात में कच्छ की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक पाया जाता है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किमी. है। इस मैदान की सर्वाधिक चौड़ाईनर्मदा तथा ताप्ती नदियों के मुहानों के समीप 80 किमी तक मिलती है। इस मैदान का ढाल पश्चिम की ओर अत्यधिक तीव्र हैं, जिस पर तीव्रगामी एवं छोटी नदियाँ प्रवाहित होती है। इस मैदान को पाँच उपखण्डों में विभाजित किया गया है:
कच्छ प्रायद्वीपीय तटीय मैदान जो कि शुष्क एवं अर्द्धशुष्क रेतीला मैदान है। इसके मध्य में गिरनार पहाड़ियाँ स्थित हैं।
गुजरात का मैदान, जिसका विस्तार कच्छ एवं सौराष्ट्र के पूर्व में हैं। इस पर माही, साबरमती, नर्मदा तथा ताप्ती नदियाँ प्रवाहित होते हुए अरब सागर में मिलती हैं।
कोंकण का मैदान दमन से गोवा तक 500 किमी लम्बा हैं। इस पर साल, सागौन आदि के वनों की अधिकता हैं।
कनारातटीय मैदान गोवा से मंगलोर तक पाया जाता है। इसका निर्माण प्राचीन कायान्तरित शैलों से हुआ है। इस पर बालुआ स्तूपों का जमाव पाया जाता है। यह तट गरम मसालों, सुपारी, केला, आम, नारियल, आदि की कृषि के लिए प्रसिद्ध हैं।
मालाबार तटीय मैदान केरल का तटीय मैदान हैं, जो कि मंगलोर से कन्याकुमारी तक 500 किमी की लं. में फैला है। इस पर लैगून (कयाल) नामक छोटी-छोटी तटीय झीलें पायी जाती हैं। इस मैदान के तटीय भागों में मत्स्ययन किया जाता है।
पूर्वी समुद्र तटीय मेदान पश्चिम बंगाल से लेकर कुमारी अन्तरीप तक मिलता है। इसकी चौड़ाई पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक हैं। इस मैदान पर प्रवाहित होने वाली नदियों-महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि ने विस्तृत डेल्टा का निर्माण किया है। इस पर चिल्का तथा पुलीकट जैसी विस्तृत लैगून झीलें भी पायी जाती हैं। इस मैदान के उत्तरी भाग को उत्तरी सरकार तथा दक्षिण भाग को कोरामण्डल तट के नाम से जाना जाता है। इसके तीन प्रमुख उप विभाग हैं:
उत्कल का मैदान जो कि उड़ीसा तट के सहारे लगभग 400 किमी की लम्बाई में फैला है। इस मैदान पर महानदी का डेल्टा, चिल्का झील तथा विशाखापट्नम बन्दरगाह स्थित हैं।
आन्ध्र का मैदान आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र में स्थित हैं जिस पर गोदावरी एवं कृष्णा नदियों ने अपने डेल्टा का निर्माण किया है। इन दोनों डेल्टाओं के बीच कोलेरू झील स्थित हैं।
तमिलनाडु के मैदान का विस्तार तमिलनाडु तथा पाण्डिचेरी के तटीय क्षेत्र में हैं। पुलीकट झील से कुमारी अन्तरीप तक इसकी लम्बाई 675 किमी है। इसकी औसत चौड़ाई 100 किमी है। पुलीकट एक लैगून झील है जिसके आगे श्रीहरिकोटा द्वीप स्थित है। यह मैदान सबसे लम्बा है।
नदियाँ
ॠग्वैदिककालीन नदियाँप्राचीन नामआधुनिक नाम
क्रुभु कुर्रम
कुभा काबुल
वितस्ता झेलम
आस्किनी चिनाव
पुरुष्णी रावी
शतुद्रि सतलज
विपाशा व्यास
सदानीरा गंडक
दृषद्वती घग्घर
गोमती गोमल
सुवास्तु स्वात
सिंधु सिन्ध
सरस्वती / दृशद्वर्ती घघ्घर / रक्षी / चित्तग
सुषोमा सोहन
मरूद्वृधा मरूवर्मन
भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-
हिमाचल से निकलने वाली नदियाँ
दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
तटवर्ती नदियाँ
अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ् नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्थायी प्रकृति की हैं।
सिन्धु नदी
हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्य प्रणाली सिंधु और गंगा ब्रह्मपुत्र मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।
सिंधु नदी
विश्व की महान, नदियों में एक है, तिब्बत में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्पश्चात्पाकिस्तान से हो कर और अंतत: कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों मेंसतलुज (तिब्बत से निकलती है), व्यास, रावी, चिनाब, और झेलम है।
वाराणसी में गंगा नदी के घाट
गंगा
ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्य महत्वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथीऔर अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तरांचल,उत्तर प्रदेश, बिहार और प.बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
सहायक नदियाँ
यमुना नदी
यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी, और सोन; गंगा की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रुप में बहती रहती है।
ब्रह्मपुत्र
ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में अरुणाचल प्रदेश तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है और यह संयुक्त नदी पूरे असम से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
सहायक नदियाँ
भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्लादेश में भैरव बाज़ार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है।
दक्कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।
गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी का दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्थान है जबकि महानदी का तीसरा स्थान है। डेक्कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।
कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है।
राजस्थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्त कुछ मरुस्थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्थल में लुप्त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्छ, स्पेन, सरस्वती, बानस और घग्गर जैसी अन्य नदियाँ हैं।
भारत की प्रमुख नदियों की सूची
क्रमनदीलम्बाई (कि.मी.)उद्गम स्थानसहायक नदियाँप्रवाह क्षेत्र (सम्बन्धित राज्य)
1 सिन्धु नदी 2,880 (709) मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत) सतलुज, व्यास, झेलम, चिनाब, रावी, शिंगार, गिलगित,श्योक जम्मू और कश्मीर, लेह
2 झेलम नदी 720 शेषनाग झील, जम्मू-कश्मीर किशन, गंगा, पुँछ, लिदार, करेवाल, सिंध जम्मू-कश्मीर, कश्मीर
3 चिनाब नदी 1,180 बारालाचा दर्रे के निकट चन्द्रभागा जम्मू-कश्मीर
4 रावी नदी 725 रोहतांग दर्रा, कांगड़ा साहो, सुइल हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर,पंजाब
5 सतलुज नदी 1440 (1050) मानसरोवर के निकट राकसताल व्यास, स्पिती, बस्पा हिमाचल प्रदेश, पंजाब
6 व्यास नदी 470 रोहतांग दर्रा तीर्थन, पार्वती, हुरला हिमाचल प्रदेश
7 गंगा नदी 2,510 (2071) गंगोत्री के निकट गोमुख से यमुना, रामगंगा, गोमती, बागमती, गंडक, कोसी, सोन,अलकनंदा, भागीरथी, पिण्डार, मंदाकिनी उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार,पश्चिम बंगाल
8 यमुना नदी 1375 यमुनोत्री ग्लेशियर चम्बल, बेतवा, केन, टोंस, गिरी, काली, सिंध, आसन उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली
9 रामगंगा नदी 690 नैनीताल के निकट एक हिमनदी से खोन उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश
10 घाघरा नदी 1,080 मप्सातुंग (नेपाल) हिमनद शारदा, करनली, कुवाना, राप्ती, चौकिया उत्तर प्रदेश, बिहार
11 गंडक नदी 425 नेपाल तिब्बत सीमा पर मुस्ताग के निकट काली, गंडक, त्रिशूल, गंगा बिहार
12 कोसी नदी 730 नेपाल में सप्तकोशिकी (गोंसाईधाम) इन्द्रावती, तामुर, अरुण, कोसी सिक्किम, बिहार
13 चम्बल नदी 960 मऊ के निकट जानापाव पहाड़ी से काली, सिंध, सिप्ता, पार्वती, बनास मध्य प्रदेश
14 बेतवा नदी 480 भोपाल के पास उबेदुल्ला गंज के पास मध्य प्रदेश
15 सोन नदी 770 अमरकंटक की पहाड़ियों से रिहन्द, कुनहड़ मध्य प्रदेश, बिहार
16 दामोदर नदी 600 छोटा नागपुर पठार से दक्षिण पूर्व कोनार, जामुनिया, बराकर झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
17 ब्रह्मपुत्र नदी 2,880 मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत में सांग्पो) घनसिरी, कपिली, सुवनसिती, मानस, लोहित, नोवा, पद्मा, दिहांग अरुणाचल प्रदेश, असम
18 महानदी 890 सिहावा के निकट रायपुर सियोनाथ, हसदेव, उंग, ईब, ब्राह्मणी, वैतरणी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा
19 वैतरणी नदी 333 क्योंझर पठार उड़ीसा
20 स्वर्ण रेखा 480 छोटा नागपुर पठार उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
21 गोदावरी नदी 1,450 नासिक की पहाड़ियों से प्राणहिता, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, इन्द्रावती, मंजीरा, पुरना महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
22 कृष्णा नदी 1,290 महाबलेश्वर के निकट कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगप्रभा, मूसी महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
23 कावेरी नदी 760 केरकारा के निकट ब्रह्मगिरी हेमावती, लोकपावना, शिमला, भवानी, अमरावती, स्वर्णवती कर्नाटक, तमिलनाडु
24 नर्मदा नदी 1,312 अमरकंटक चोटी तवा, शेर, शक्कर, दूधी, बर्ना मध्य प्रदेश, गुजरात
25 ताप्ती नदी 724 मुल्ताई से (बेतूल) पूरणा, बेतूल, गंजल, गोमई मध्य प्रदेश, गुजरात
26 साबरमती 716 जयसमंद झील (उदयपुर) वाकल, हाथमती राजस्थान, गुजरात
27 लूनी नदी नाग पहाड़ सुकड़ी, जनाई, बांडी राजस्थान, गुजरात, मिरूडी, जोजरी
28 बनास नदी खमनौर पहाड़ियों से सोड्रा, मौसी, खारी कर्नाटक, तमिलनाडु
29 माही नदी मेहद झील से सोम, जोखम, अनास, सोरन मध्य प्रदेश, गुजरात
30 हुगली नदी नवद्वीप के निकट जलांगी
31 उत्तरी पेन्नार 570 नंदी दुर्ग पहाड़ी पाआधनी, चित्रावती, सागीलेरू
32 तुंगभद्रा नदी पश्चिमी घाट में गोमन्तक चोटी कुमुदवती, वर्धा, हगरी, हिंद, तुंगा, भद्रा
33 मयूसा नदी आसोनोरा के निकट मेदेई
34 साबरी नदी 418 सुईकरम पहाड़ी सिलेरु
35 इन्द्रावती नदी 531 कालाहाण्डी, उड़ीसा नारंगी, कोटरी
36 क्षिप्रा नदी काकरी बरडी पहाड़ी, इंदौर चम्बल नदी
37 शारदा नदी 602 मिलाम हिमनद, हिमालय,कुमायूँ घाघरा नदी
38 तवा नदी महादेव पर्वत, पंचमढ़ी नर्मदा नदी
39 हसदो नदी सरगुजा में कैमूर पहाड़ियाँ महानदी
40 काली सिंध नदी 416 बागलो, ज़िला देवास, विंध्याचल पर्वत यमुना नदी
41 सिन्ध नदी सिरोज, गुना ज़िला चम्बल नदी
42 केन नदी विंध्याचल श्रेणी यमुना नदी
43 पार्वती नदी विंध्याचल, मध्य प्रदेश चम्बल नदी
44 घग्घर नदी कालका, हिमाचल प्रदेश
45 बाणगंगा नदी 494 बैराठ पहाड़ियाँ, जयपुर यमुना नदी
46 सोम नदी बीछा मेंड़ा, उदयपुर जोखम, गोमती, सारनी
47 आयड़ या बेडच नदी 190 गोमुण्डा पहाड़ी, उदयपुर बनास नदी
48 दक्षिण पिनाकिन 400 चेन्ना केशव पहाड़ी, कर्नाटक
49 दक्षिणी टोंस 265 तमसा कुंड, कैमूर पहाड़ी
50 दामन गंगा नदी पश्चिम घाट
51 गिरना नदी पश्चिम घाट, नासिक
भारत के राज्यों का भूगोलअरुणाचल प्रदेश
मुख्य लेख : अरुणाचल प्रदेश का भूगोल
अरुणाचल प्रदेश का अधिकतर भाग हिमालय से ढका है, लेकिन लोहित, चांगलांग और तिरप पतकाई पहाडि़यों में स्थित हैं। काँग्तो, न्येगी कांगसांग, मुख्य गोरीचन चोटी और पूर्वी गोरीचन चोटी इस राज्य में हिमालय की सबसे ऊंची चोटियाँ हैं। तवांग का 'बुमला दर्रा' सन् 2006 में 44 वर्षों में पहली बार व्यापार के लिए खोला गया था और व्यापारियों को एक दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी।असम
मुख्य लेख : असम का भूगोल
भू-आकृति: मैदानी इलाक़ों एवं नदी घाटियों वाले असम को तीन प्रमुख भौतिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है- उत्तर में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी, दक्षिण में बरक नदी घाटी एवं कार्बी तथा आलंग ज़िलों के पर्वतीय क्षेत्र और इन दोनों घाटीयों के मध्य स्थित उत्तरी कछार की पहाड़ियाँ।
ब्रह्मपुत्र नदी घाटी असम का प्रमुख भौतिक क्षेत्र है। यह नदी असम के पूर्वोत्तर सिरे पर सादिया के पास प्रवेश करती है, फिर पश्चिम में पूरे असम में लगभग 724 किमी. लंबे मार्ग में प्रवाहित होकर दक्षिण की ओर मुड़कर बांग्लादेश के मैदानी इलाक़ों में चली जाती है। ब्रह्मपुत्र नदी घाटी, छोटी एकल पहाड़ियों और मैदानी इलाक़ों में अचानक उठते शिखरों, जिनकी चौड़ाई 80 किमी. से ज़्यादा नहीं है, से भरी हुई है। पश्चिम दिशा को छोड़कर बाक़ी सभी दिशाओं में यह पर्वत्तों से घिरी हुई है। पड़ोस की पहाड़ियों से निकली कई जलधाराओं एवं उपनदियों का जल इसमें समाहित होता है।
बरक नदी घाटी दक्षिण-पूर्व दिशा में विस्तृत निम्न भूमि के क्षेत्र की संरचना करती है, जो कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण है एवं इससे अपेक्षाकृत सघन बसी जनसंख्या को मदद मिलती है, हालांकि इस घाटी का एक छोटा सा ही हिस्सा राज्य के सीमाक्षेत्र में है।आंध्र प्रदेश
मुख्य लेख : आंध्र प्रदेश का भूगोल
आंध्र प्रदेश राज्य में तीन प्रमुख भौतिक-भौगोलिक क्षेत्र हैं:-
पूर्व में तटीय मैदान, जो बंगाल की खाड़ी से लेकर पर्वतश्रेणियों तक फैला है;
पर्वतश्रेणियाँ अर्थात पूर्वी घाट, जो तटीय मैदानों का पश्चिमी पार्श्व बनाते हैं;
घाट के पश्चिम से पूर्व में पठार।ओडिशा
मुख्य लेख : ओडिशा का भूगोल
उड़ीसा राज्य 17.780 और और 22.730 अक्षांश और 81.37पूर्व और 81.53 पूर्व देशांतर के बीच पड़ता है। भौगोलिक रूप से यह राज्य उत्तर-पूर्व में पश्चिम बंगाल, उत्तर में झारखंड, पश्चिम में छत्तीसगढ़ और दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है।उत्तर प्रदेश
मुख्य लेख : उत्तर प्रदेश का भूगोल
उत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्व इस प्रकार से हैं-
भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है।उत्तराखण्ड
मुख्य लेख : उत्तराखण्ड का भूगोल
उत्तराखण्ड राज्य का क्षेत्रफल 53,484 वर्ग किमी. और जनसंख्या 8,479,562 (2001 की जनगणना के अनुसार) है। उत्तराखण्ड भारत के उत्तर - मध्य भाग में स्थित है। यह पूर्वोत्तर मेंतिब्बत, पश्चिमोत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण - पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण - पूर्व में नेपाल से घिरा है। उत्तराखण्ड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 28° 43’ उ. से 31°27’ उ. और रेखांश 77°34’ पू. से 81°02’ पू के बीच में 53,483 वर्ग किमी है, जिसमें से 43,035 कि.मी. पर्वतीय है और 7,448 कि.मी. मैदानी है, तथा 34,651 कि.मी. भूभाग वनाच्छादित है। राज्य का अधिकांश उत्तरी भाग वृहद्तर हिमालय शृंखला का भाग है, जो ऊँची हिमालयी चोटियों और हिमनदियों से ढ़्का हुआ है, जबकि निम्न तलहटियाँ सघन वनों से ढ़की हुई हैं जिनका पहले अंग्रेज़ लकड़ी व्यापारियों और स्वतन्त्रता के बाद वन अनुबन्धकों द्वारा दोहन किया गया।कर्नाटक
मुख्य लेख : कर्नाटक का भूगोल
भौतिक रूप से कर्नाटक को चार भिन्न क्षेत्रों में बांटा गया है- समुद्रतटीय मैदान, पर्वत श्रेणियाँ (पश्चिम घाट), पूर्व में स्थित कर्नाटक का पठार और पश्चिमोत्तर में कपास उत्पाक काली मिट्टी का क्षेत्र। समुद्रतटीय मैदान मालाबार तट का विस्तार हैं और यहाँ जून से सितंबर तक दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से भारी वर्षा होती है। तट पर स्थित रेत के टीले भूमि की ओर बढ़ते हुए छोटे जलोढ़ मैदानों में बदल जाते हैं, जिनमें नारियल के वृक्षों से घिरे अनूप(लैगून) हैं। समुद्र के अलावा अन्य किसी भी मार्ग से तट पर पहुँचना मुश्किल है। पूर्व में पश्चिमी घाट की ढलानों के रूप भूमि तेज़ी से उठती है, जहाँ समुद्र तल से औसत ऊँचाई 760- 915 मीटर है।केरल
मुख्य लेख : केरल का भूगोल
केरल के पूर्व में ऊंचे पश्चिमी घाट और पश्चिम में अरब सागर के मध्य में स्थित इस प्रदेश की चौड़ाई 35 किमी से 120 किमी तक है।
भौगोलिक दृष्टि से केरल पर्वतीय क्षेत्रों, घाटियों, मध्यवर्ती मैदानों तथा समुद्र का तटवर्ती क्षेत्र हैं।
केरल नदियों और तालाबों के सम्बंध में बहुत ही समृद्ध है।गुजरात
मुख्य लेख : गुजरात का भूगोल
गुजरात को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बाँटा गया है जैसे-
सौराष्ट्र प्रायद्वीप- जो मूलतः एक पहाड़ी क्षेत्र है, बीच-बीच में मध्यम ऊँचाई के पर्वत हैं।
कच्छ- जो पूर्वोत्तर में उजाड़ और चट्टानी है। विख्यात कच्छ का रन इसी क्षेत्र में है।
गुजरात का मैदान- जो कच्छ के रन और अरावली की पहाड़ियों से लेकर दमन गंगा तक फैली है।
गुजरात की सबसे ऊँची चोटी गिरिनार पहाड़ियों में स्थित गोरखनाथ की चोटी है, जो 1117 मीटर ऊँची है। गुजरात की जलवायु ऊष्ण प्रदेशीय और मानसूनी है। वर्षा की कमी के कारण इस प्रदेश में रेतीली और बलुई मिट्टी पायी जाती है। प्रदेश में पूर्व की ओर उत्तरी गुजरात में वर्षा की मात्र 50 सेमी तक होती है। इसके दक्षिण की ओर मध्य गुजरात में मिट्टी कुछ अधिक उपजाऊ है तथा जलवायु भी अपेक्षयता आर्द्र है। वर्षा 75 सेमी तक होती है। नर्मदा, ताप्ती, साबरमती, सरस्वती, माही, भादर, बनास, और विश्वामित्र इस प्रदेश की सुपरिचित नदियाँ हैं।कर्क रेखा इस राज्य की उत्तरी सीमा से होकर गुजरती है, अतः यहाँ गर्मियों में खूब गर्मी तथा सर्दियों में खूब सर्दी पड़ती है। शहरीकरण की प्रक्रिया ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कुछ स्वरूप धारण किए हैं। राज्य का सर्वाधिक शहरीकृत क्षेत्र अहमदाबाद-वडोदरा औद्योगिक पट्टी है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-8 के किनारे उत्तर में ऊंझा से दक्षिण में वापी के औद्योगिक मैदान में एक वृहदनगरीय क्षेत्र[1] उभर रहा है। सौराष्ट्र कृषि क्षेत्र में क्रमिक बसाव प्रणाली को देखा जा सकता है, जबकि उत्तर और पूर्व के बाह्य क्षेत्रों में बिखरी हुई छोटी-छोटी बस्तियाँ हैं, जो शुष्क, पर्वतीय या वनाच्छादित क्षेत्र हैं। आदिवासी जनसंख्या इन्हीं सीमांत अनुत्पादक क्षेत्रों में केंद्रित है।गोवा
मुख्य लेख : गोवा का भूगोल
105 किलोमीटर समुद्री तट वाले गोवा में रेतीले तट, मुहाने व अंतरीप हैं। इसके भीतरी हिस्से में निचले पठार और लगभग 1,220 मीटर ऊँचे पश्चिमी घाटों (सह्यद्रि) का एक हिस्सा है। गोवा की दो प्रमुख नदियाँ, मांडोवी व जुआरी, के मुहाने में गोवा का द्वीप (इल्हास) स्थित है। इस त्रिकोणीय द्वीप का शीर्ष अंतरीप एक चट्टानी मुहाना है, जिस पर दो लंगरगाह हैं। यहाँ पर तीन शहर मर्मगाव या मार्मुगाव (वास्को द गामा सहित) मडगाँव और पणजी (नवगोवा) हैं।छत्तीसगढ़
मुख्य लेख : छत्तीसगढ़ का भूगोल
छत्तीसगढ़ राज्य मध्य प्रदेश के दक्षिण-पूर्व में 17°46' उत्तरी अक्षांश से 24°5' उत्तरी अक्षांश तथा 80°15' पूर्वी देशांतर से 84°15' पूर्वी देशांतर रेखाओं के मध्य स्थित है।
छत्तीसगढ़ का कुल भौगोलिक क्षेत्रअफल 1,35,194 वर्ग किमी. है। इसकी उत्तरी-दक्षिण लम्बाई 360 किमी. तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ाई 140 किमी. है।
छत्तीसगढ़ के उत्तर में उत्तर प्रदेश, उत्तरी-पूर्वी सीमा में झारखण्ड, दक्षिण-पूर्व में ओडिशा राज्य स्थित है। दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण-पश्चिम में महाराष्ट्र तथा उत्तरी-पश्चिम भाग में मध्य प्रदेश स्थित है।जम्मू और कश्मीर
मुख्य लेख : जम्मू और कश्मीर का भूगोल
जम्मू और कश्मीर पूर्वात्तर में सिंक्यांग का स्वायत्त क्षेत्र व तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (दोनों चीन के भाग) से, दक्षिण में हिमाचल प्रदेश व पंजाब राज्यों से, पश्चिम में पाकिस्तान और पश्चिमोत्तर में पाकिस्तान अधिकृत भूभाग से घिरा है।
स्थिति: जम्मू और कश्मीर राज्य 32-15 और 37-05 उत्तरी अक्षांश और 72-35 तथा 83-20 पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। भौगोलिक रूप से इस राज्य को चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है।
पहाड़ी और अर्द्ध-पहाड़ी मैदान जो कंडी पट्टी के नाम से प्रचलित है;
पर्वतीय क्षेत्र जिसमें शिवालिक पहाड़ियाँ शामिल हैं;
कश्मीर घाटी के पहाड़ और पीर पांचाल पर्वतमाला तथा
तिब्बत से लगा लद्दाख और कारगिल क्षेत्र।झारखण्ड
मुख्य लेख : झारखण्ड का भूगोल
झारखण्ड 21°58'10" उत्तरी अक्षांश से 25°19'15" उत्तरी अक्षांश तथा 83°20'50" पूर्वी देशांतर 88°4'40" पूर्वी देशांतर के मध्य विस्तृत है।
झारखण्ड का कुल क्षेत्रफल 79,714 वर्ग किमी. जो भारत के कुल क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है।
झारखण्ड के पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार तथा दक्षिण में उड़ीसा से घिरा हुआ है।तमिलनाडु
मुख्य लेख : तमिलनाडु का भूगोल
तमिलनाडु राज्य प्राकृतिक रूप से पूर्वी तट पर समतल प्रदेश तथा उत्तर और पश्चिम में पहाड़ी क्षेत्रों के बीच विभाजित है। पूर्वी मैदान का सबसे चौड़ा हिस्सा उपजाऊ कावेरी के डेल्टा पर है और आगे दक्षिण में रामनाथपुरम और मदुरै के शुष्क मैदान हैं। राज्य के समूचे पश्चिमी सीमांत पर पश्चिमी घाट की ऊँची शृंखला फैली हुई है। पूर्वी घाट की निचली पहाड़ियाँ और सीमांत क्षेत्र, जो स्थानीय तौर पर जावडी, कालरायण और शेवरॉय कहलाते हैं, प्रदेश के मध्य भाग की ओर फैले हैं।त्रिपुरा
मुख्य लेख : त्रिपुरा का भूगोल
मध्य एवं उत्तरी त्रिपुरा एक पहाड़ी क्षेत्र है, जिसे पूर्व से पश्चिम की ओर चार प्रमुख घाटियाँ, धर्मनगर, कैलाशहर, कमालपुर और खोवाई, काटती हैं। ये घाटियाँ उत्तर की ओर बहने वाली नदियों (जूरी, मनु व देव, ढलाई और खोवाई) द्वारा निर्मित हैं। पश्चिम व दक्षिण की निचली घाटियाँ खुली व दलदली हैं, हालांकि दक्षिण में भूभाग बहुत अधिक कटा हुआ और घने जंगलों से ढका है। उत्तर से दक्षिण की ओर उन्मुख श्रेणियाँ घाटियों को अलग करती हैं।दिल्ली
मुख्य लेख : दिल्ली का भूगोल
दिल्ली एक जलसंभर पर स्थित है। जो गंगा तथा सिंधु नदी प्रणालियों को विभाजित करता है। दिल्ली की सबसे महत्त्वपूर्ण स्थालाकृति विशेषता पर्वत स्कंध (रिज) है, जो राजस्थान प्रांत की प्राचीन अरावली पर्वत श्रेणियों का चरम बिंदु है। अरावली संभवत: दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत माला है, लेकिन अब यह पूरी तरह वृक्ष विहीन हो चुकी है। पश्चिमोत्तर पश्चिम तथा दक्षिण में फैला और तिकोने परकोट की दो भुजाओं जैसा लगने वाला यह स्कंध क्षेत्र 180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। कछारी मिट्टी के मैदान को आकृति की विविधता देता है तथा दिल्ली को कुछ उत्कृष्ट जीव व वनस्पतियाँ उपलब्ध कराता है। यमुना नदी त्रिभुजाकार परकोटे का तीसरा किनारा बताती है। इसी त्रिकोण के भीतर दिल्ली के प्रसिद्ध सात शहरों की उत्पत्ति ई.पू. 1000 से 17 वीं शताब्दी के बीच हुई।नागालैंड
मुख्य लेख : नागालैंड का भूगोल
नागालैंड का लगभग समूचा हिस्सा पर्वतीय है।
उत्तर में नागा पहाड़ियाँ ब्रह्मपुत्र घाटी से अचानक लगभग 610 मीटर की ऊंचाई तक उठती हैं और उसके बाद दक्षिण-पूर्व दिशा में इनकी ऊंचाई 1,800 मीटर तक हो जाती है, म्यांमार सीमा के पास ये पहाड़ियां पटकई शृंखला से मिल जाती हैं और यहाँ इनकी सबसे ऊंची चोटी माउंट सारामती है, जिसकी ऊंचाई 3,826 मीटर है।पंजाब
मुख्य लेख : पंजाब का भूगोल
भू-आकृति: पंजाब का अधिकांश हिस्सा समतल मैदानी है, जो पूर्वोत्तर में समुद्र तल से लगभग 275 मीटर से दक्षिण-पश्चिम में लगभग 168 मीटर की ऊँचाई की अनुवर्ती ढलान वाला है। भौतिक रूप से इस प्रदेश को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है। पूर्वोत्तर में 274-914 मीटर की ऊँचाई पर स्थित शिवालिक पहाड़ियाँ राज्य का बहुत ही छोटा हिस्सा हैं। दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियाँ संकरे और लहरदार तराई क्षेत्र के रूप में फैली हुई हैं, जिनसे होकर कई मौसमी धाराएँ बहती हैं।पश्चिम बंगाल
मुख्य लेख : पश्चिम बंगाल का भूगोल
पश्चिम बंगाल राज्य के पूर्व में बांग्लादेश, पश्चिम में नेपाल, उत्तर-पूर्व में भूटान, उत्तर में सिक्किम, पश्चिम में बिहार, झारखंड, दक्षिण-पश्चिम में उड़ीसा तथा दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है। पश्चिम बंगाल राज्य में भारत के हुगली नदी पर कोलकाता से 22 मील उत्तर चौबीस परगना ज़िले में नईहाटी नगर स्थित है।बिहार
मुख्य लेख : बिहार का भूगोल
भू-आकृती: प्राकृतिक रूप से यह राज्य गंगा नदी द्वारा दो भागों में विभाजित है, उत्तर बिहार मैदान और दक्षिण बिहार मैदान। सुदूर पश्चिमोत्तर में हिमालय की तराई को छोड़कर गंगा का उत्तरी मैदान समुद्र तल से 75 मीटर से भी कम की ऊँचाई पर जलोढ़ समतली क्षेत्र का निर्माण करता है और यहाँ बाढ़ आने की संभावना हमेशा बनी रहती है। घाघरा, गंडक,बागमती, कोसी, महानंदा और अन्य नदीयाँ नेपाल में हिमालय से नीचे उतरती हैं और अलग-अलग जलमार्गों से होती हुई गंगा में मिलती हैं।मणिपुर
मुख्य लेख : मणिपुर का भूगोल
भारत के पूर्वी सिरे पर मणिपुर राज्य स्थित है।
इसके पूर्व में म्यांमार (बर्मा) और उत्तर में नागालैंड राज्य है, पश्चिम में असम राज्य और दक्षिण में मिज़ोरम राज्य है।
मणिपुर का क्षेत्रफल 22,327 वर्ग किलोमीटर है। भौगोलिक रूप से मणिपुर के दो भाग हैं, पहाडियां और घाटियाँ।
घाटी मध्य में है और उसके चारों तरफ पहाडियां हैं।मध्य प्रदेश
मुख्य लेख : मध्य प्रदेश का भूगोल
मध्य प्रदेश दूसरा सबसे बड़ा भारतीय राज्य है। भौगोलिक दृष्टि से यह देश में केन्द्रीय स्थान रखता है। इसकी राजधानी भोपाल है । मध्य का अर्थ बीच में है, मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति भारतवर्ष के मध्य अर्थात बीच में होने के कारण इस प्रदेश का नाम मध्य प्रदेश दिया गया, जो कभी 'मध्य भारत' के नाम से जाना जाता था। मध्य प्रदेश हृदय की तरह देश के ठीक बीचोंबीच में स्थित है।महाराष्ट्र
मुख्य लेख : महाराष्ट्र का भूगोल
महाराष्ट्र में कई प्रकार की आकर्षक भू- आकृतियां हैं। नर्मदा नदी, जो विभ्रंश घाटी से होकर बहती हुई अरब सागर में गिरती है, राज्य की उत्तरी सीमा के एक हिस्से का निर्माण करती है। अरब सागर में ही मिलने वाली ताप्ती नदी की विभ्रंश घाटी इसकी उत्तरी सीमा के दूसरे हिस्से को चिह्नित करती है। ये दो नदी घाटियाँ सतपुड़ा शृंखला नामक उत्खंड से विभक्त होती हैं। ताप्ती घाटी के दक्षिण में अरब सागर के किनारे कोंकण का तटीय क्षेत्र है, जिसके पूर्व में पश्चिमी घाट या सह्याद्रि पहाड़ियों के नाम से विख्यात कगार स्थित है।मिज़ोरम
मुख्य लेख : मिज़ोरम का भूगोल
भूगर्भशास्त्रीय दृष्टि से मिज़ो पहाड़ियाँ अराकान आर्क का हिस्सा है जो सुसंगठित समानांतर पर्वतस्कंधों की उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थित शृंखला है, जिसका निर्माण तृतीयक बलुआ पत्थर, चूना-पत्थर और स्लेट-पत्थर[2] से हुआ है। संकरी नदी घाटियों से विभक्त पर्वतस्कंधों की ऊँचाई 2,157 मीटर है। दक्षिण में कलादान और इसकी सहायक नदियाँ दक्षिण दिशा में बहती हुईम्यांमार में प्रवेश करती हैं, जबकि धालेश्वरी (त्लावंग) और सोनाई (तुइरेल) नदियाँ उत्तर दिशा में असम की और बहती हैं।मेघालय
मुख्य लेख : मेघालय का भूगोल
मेघालय दक्कन के पठार से राजमहल दर्रे द्वारा अलग किया हुआ एक उच्च भूखंड है। यहाँ की चट्टानें और भू-वैज्ञानिक संरचना बिहार और बंगाल के छोटा नागपुर क्षेत्र जैसी है। चट्टानें पूर्व कैंब्रियन काल की आद्य महाकल्पी शैल और ग्रेनाइट, निम्न-पुराजीवी शिलांग समूह, अपर गोंडवाना, सिलहट ट्रैप और तीसरे युग के कठोर अवसादी जमावों से बनी हुई है। इसके शिखरों की ऊँचाई 1,220 से 1,830 मीटर के बीच है।राजस्थान
मुख्य लेख : राजस्थान का भूगोल
भूमि: अरावली पहाड़ियाँ राज्य के दक्षिण-पश्चिम में 1,722 मीटर ऊँचे गुरु शिखर[3] से पूर्वोत्तर में खेतड़ी तक एक रेखा बनाती हुई गुज़रती हैं। राज्य का लगभग 3/5 भाग इस रेखा के पश्चिमोत्तर में व शेष 2/5 भाग दक्षिण-पूर्व में स्थित है। राजस्थान के ये दो प्राकृतिक विभाजन हैं। बेहद कम पानी वाला पश्चिमोत्तर भूभाग रेतीला और अनुत्पादक है। इस क्षेत्र में विशाल भारतीय रेगिस्तान (थार) नज़र आता है। सुदूर पश्चिम और पश्चिमोत्तर के रेगिस्तानी क्षेत्रों से पूर्व की ओर बढ़ने पर अपेक्षाकृत उत्पादक व निवास योग्य भूमि है।सिक्किम
मुख्य लेख : सिक्किम का भूगोल
सिक्किम राज्य का कुल क्षेत्रफल 7,096 वर्ग किलो मीटर है।
इसका भू भाग उत्तर से दक्षिण तक 112 किलो मीटर तथा पूर्व से पश्चिम तक 64 किलोमीटर में फैला हुआ है।
यह उत्तर-पूर्व हिमाचल में 27 डिग्री 00'46" से 28 डिग्री 07'48" उत्तरी अक्षांश और 88 डिग्री 00'58" से 88 डिग्री 55'25" पूर्व देशांतर के मध्य स्थित है।
विश्व की तीसरी सबसे बड़ी और ऊंची चोटी 'कंचनजंगा', जिसे सिक्किम की रक्षा देवी माना जाता है, अपनी प्राकृतिक सौंदर्य की छटा बिखेरती है।हरियाणा
मुख्य लेख : हरियाणा का भूगोल
हरियाणा में दो बड़े भू-क्षेत्र है, राज्य का एक बड़ा हिस्सा समतल जलोढ़ मैदानों से युक्त है और पूर्वोत्तर में तीखे ढ़ाल वाली शिवालिक पहाड़ियाँ तथा संकरा पहाड़ी क्षेत्र है। समुद्र की सतह 210 मीटर से 270 मीटर ऊंचे मैदानी इलाकों से पानी बहकर एकमात्र बारहमासी नदी यमुना में आता है, यह राज्य की पूर्वी सीमा से होकर बहती है। शिवालिक पहाड़ियों से निकली अनेक मौसमी नदियां मैदानी भागों से गुज़रती है। इनमें सबसे प्रमुख घग्घर (राज्य की उत्तरी सीमा के निकट) नदी है।हिमाचल प्रदेश
मुख्य लेख : हिमाचल प्रदेश का भूगोल
हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय के मध्य में स्थित है, इसे देव भूमि कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश उत्तर में जम्मू और कश्मीर, पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में दक्षिण में हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखंड तथा पूर्व में तिब्बत से घिरा है। हिमाचल प्रदेश में देवी और देवताओं का निवास स्थान माना जाता है।
भारत का भूगोल
कास पठार
प्राचीन काल में आर्यों की भरत नाम की शाखा द्वारा हिमालय पर्वत के दक्षिणी भाग के अनार्यों अथवा आर्यो को पराजित करके उस भूभाग का नाम भरत शाखा के नाम पर ही भारतवर्ष रखा गया तथा इसके उत्तर-पश्चिम में प्रवाहित होने वाली नदी को सिन्धु नाम दिया गया। कालान्तर में ईरानियों ने इसे हिन्दू तथा देश को हिन्दुस्तान कहा, जबकि यूनानियों ने सिन्धु नदी को इन्डस और उस देश को, जहां यह नदी प्रवाहित होती है। 'इण्डिया' नाम दिया। वर्तमान समय में यही देश विश्व में 'भारत' एवं 'इण्डिया' दोनों नामों से जाना जाता है।
भारत के मुख्य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, गंगा और सिंधु नदी के मैदानी क्षेत्र और मरूस्थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप। हिमालय की तीन शृंखलाएँ हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े - बड़े पठार और घाटियाँ हैं, इनमें कश्मीरऔर कुल्लू जैसी कुछ घाटियाँ उपजाऊ, विस्तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्हीं पर्वत शृंखलाओं में हैं। अधिक ऊंचाई के कारण आना -जाना केवल कुछ ही दर्रों से हो पाता है, जिनमें मुख्य हैं -
चुंबी घाटी से होते हुए मुख्य भारत-तिब्बत व्यापार मार्ग पर जेलेपला और नाथुला दर्रा
उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग
कल्पना (किन्नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा
पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 किमी से 320 किमी तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा म्यांमार और भारत एवं बांग्लादेश के बीच में पहाड़ी शृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियाँ उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडियों की शृंखला से जा मिलती हैं।
मरुस्थली क्षेत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है बड़ा मरुस्थल कच्छ के रण की सीमा से लुनी नदी के उत्तरी ओर आगे तक फैला हुआ है। राजस्थान सिंध की पूरी सीमा इससे होकर गुजरती है। छोटा मरुस्थल लुनी से जैसलमेर और जोधपुर के बीच उत्तरी भूभाग तक फैला हुआ बड़े और छोटे मरुस्थल के बीच का क्षेत्र बिल्कुल ही बंजर है जिसमें चूने के पत्थर की पर्वत माला द्वारा पृथक किया हुआ पथरीला भूभाग है।
पर्वत समूह और पहाड़ी शृंखलाएँ जिनकी ऊँचाई 460 से 1,220 मीटर है, प्रायद्वीपीय पठार को गंगा और सिंधु के मैदानी क्षेत्रों से अलग करती हैं। इनमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्य,सतपुड़ा, मैकाला और अजन्ता। इस प्रायद्वीप की एक ओर पूर्व घाट दूसरी ओर पश्चिमी घाट है जिनकी ऊँचाई सामान्यत: 915 से 1,220 मीटर है, कुछ स्थानों में 2,440 मीटर से अधिक ऊँचाई है। पश्चिमी घाटों और अरब सागर के बीच एक संकीर्ण तटवर्ती पट्टी है जबकि पूर्व घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच का विस्तृत तटवर्ती क्षेत्र है। पठार का दक्षिणी भाग नीलगिरी पहाड़ियों द्वारा निर्मित है जहाँ पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके आगे इलायची की पहाडियाँ पश्चिमी घाट के विस्तारण के रुप में मानी जा सकती हैं।
भूगर्भीय संरचना
भूवैज्ञानिक क्षेत्र व्यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्हें तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:
हिमालय पर्वत शृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह।
भारत-गंगा मैदान क्षेत्र।
प्रायद्वीपीय क्षेत्र।
उत्तर में हिमालय पर्वत क्षेत्र और पूर्व में नागालुशाई पर्वत, पर्वत निर्माण गतिविधि के क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग जो वर्तमान समय में विश्व का सार्वधिक सुंदर पर्वत दृश्य प्रस्तुत करता है, 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्री क्षेत्र में था। 7 करोड़ वर्ष पहले शुरू हुए पर्वत-निर्माण गतिविधियों की शृंखला में तलछटें और आधार चट्टानें काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गई। आज हम जो इन पर उभार देखते हैं, उनको उत्पन्न करने में अपक्षय और अपरदक ने कार्य किया। भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र एक जलोढ़ भूभाग हैं जो दक्षिण के प्रायद्वीप से उत्तर में हिमाचल को अलग करते हैं।
प्रायद्वीप सापेक्ष स्थिरता और कभी-कभार भूकंपीय परेशानियों का क्षेत्र है। 380 करोड़ वर्ष पहले के प्रारंभिक काल की अत्याधिक कायांतरित चट्टानें इस क्षेत्र में पायी जाती हैं, बाक़ी क्षेत्र गोंदवाना के तटवर्ती क्षेत्र से घिरा है, दक्षिण में सीढ़ीदार रचना और छोटी तलछटें लावा के प्रवाह से निर्मित हैं।
भौगोलिक स्थिति
पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में 804‘ उत्तरी आक्षांश 3706 उत्तरी अक्षांश तथा 6807‘ पूर्वी देशान्तर से 97025‘ पूर्वी देशान्तर के बीच 32,87,782 वर्ग किमी क्षेत्रफल पर विस्तृत भारतहिन्द महासागर के उत्तरी में स्थित है। इस प्रकार इसका अक्षांशीय तथा देशान्तरीय विस्तार लगभग 300 है। भारत की मुख्य भूमि से दूर अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह का दक्षिणतम बिन्दु 'इन्दिरा प्वाइंट' 6030‘ उत्तरी अक्षांश पर ग्रेट निकोबार में स्थित है।
8201/2 पूर्वी देशान्तर इसके लगभग मध्य से होकर गुजरती है, जो कि देश का मानक समय भी है। पूर्व से पश्चिम तक इसकी लम्बाई 2,933 किमी तथा उत्तर से दक्षिण तक लम्बाई 3,214 किमी है। इसकी स्थलीय सीमा की लम्बाई 15,200 किमी तथा द्वीप सहित जलीय सीमा की लम्बाई 7516,6 किमी है। मुख्य धरातलीय भाग की समुद्री सीमा की लम्बाई 6100 किमी है। यदि अंडमान-निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीप समूहों को भी सम्मिलित किया जाए तो भारत की तटीय सीमा 7516.6 किमी हो जाती है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व का सातवाँ बड़ा देश है। इससे बड़े 6 देश हैं - रूस, कनाडा, चीन, संयुक्त राज्य अमरीका, ब्राजील तथा आस्ट्रेलिया। इसके विपरीत भारत पाकिस्तान से 4 गुना, फ्रांस से 6 गुना, जर्मनी से 9 गुना तथा बांग्लादेश से 23 गुना बड़ा है। भारत का धुर दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा से मात्र 876 किमी दूर है।
भू-आकृति
विश्व में क्षेत्रफल एवं जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़े महाद्वीपीय एशिया में स्थित भारत की आकृति पूर्णतः त्रिभुजाकार न होकर चतुष्कोणीय हे एवं यह भूमध्यरेख के उत्तर में स्थित है। कर्क रेखा इसके लगभग मध्य भाग से होकर गुजरती है। कर्क रेखा जिन प्रदेशों से होकर गुजरती है वे हैं - गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल,त्रिपुरा तथ मिजोरम। देश का मानक समय ग्रीनविच टाइम से 5 घंटें 30 मिनट आगे है।
अरुणाचल प्रदेश तथा सौराष्ट्र के बीच स्थानीय समय का अन्तर 30x40=120 मिनट अर्थात दो घण्टे का है क्योंकि अरुणांचल प्रदेश सौराष्ट्र के पूर्व में है, इसलिए सूर्योदय वहाँ पहले होगा। पूरा भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है।
भारत में उत्तर-पश्चिम में इन्दिरा कॉल पर देश की स्थलीय सीमा अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, तजाकिस्तान और चीन से मिलती है जबकि सुदूर उत्तरी-पूर्वी कोने पर भारतीय सीमा के साथ चीन और म्यांमार की सीमाएँ आपस में मिलती हैं। इसका सबसे दक्षिणी बिन्दु अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित है, जिसको वर्तमान में इन्दिरा प्वाइंट के नाम से जाना जाता है। इसके पूर्व नाम हैं - ला हि चिंग, पिगमेलियम प्वॉइण्ट तथा पारसन प्वॉइण्ट। द्वीपों समेप देश की समुद्री सीमा की कुल लम्बाई 7516,6 किमी. है।
देश सम्प्रति 28 राज्यों तथा 7 केन्द्र शासित प्रदेशों का एक संघ है। इसकी प्रादेशिक जल सीमा आधार पर रेखा से मापे गये 12 समुद्री मील की दूरी तक है जबकि संलग्न क्षेत्र की दूरी प्रादेशिक जल सीमा के आगे 24 समुद्री मील तक है। इस क्षेत्र में भारत को स्वच्छता का प्रबन्ध करने, सीमा शुल्क की वसूली करने आदि का अधिकार प्राप्त है। देश का एकान्तिक आर्थिक क्षेत्र संलग्न क्षेत्र के आगे 200 समुद्री मील तक हैं, जिसमें वैज्ञानिक शोधकार्यों को करने तथा कृत्रिम द्वीपों का निर्माण एवं प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन करने की छूट मिली हुई है।
क्षेत्रफल
यद्यपि देश का क्षेत्रफल विश्व के कुल क्षेत्रफल का मात्र 2.42 प्रतिशत ही है, किन्तु यहाँ पर विश्व की लगभग 16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। यहाँ की प्राकृतिक बनावट, संसाधन क्षमता आदि को देखते हुए जार्ज बी. क्रैंसी. ने अपनी भौगोलिक पुस्तक 'एशिया की भूमि एवं निवासी' में लिखा है कि 'भारत को महाद्वीप कहलाने का उतना ही अधिकार है जितना कियूरोप को।'
देश की सीमाएँ
देश की सीमाएँ प्राकृतिक एवं मानव निर्मित दोनों प्रकार की है। भारत की स्थलीय सीमाएं उत्तर में तजाकिस्तान, चीन व नेपाल, उत्तर पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम में पाकिस्तान, पूर्व में बांग्लादेश एवं म्यांमार तथा उत्तर-पूर्व में भूटान से मिलती है। पश्चिम में पाकिस्तान और पूर्व में बांग्लादेश के साथ भारत की सीमाएं कृत्रिम अथवा मानव निर्मित हैं जबकि अन्य 6 देशों - अफ़ग़ानिस्तान, तजाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान तथा म्यांमार के साथ भारत की सीमाएं प्राकृतिक हैं। ये प्राकृतिक सीमाएं सामान्यतः ऊंची पर्वत शृंखलाओं के रूप में है। उत्तर में हिमालय पर्वत हमारी सीमा बनाता है। इसकी मुस्ताघ, अगोल, कुनलुन तथा काराकोरम श्रेणियाँ जम्मू कश्मीर की सीमा पर है। यहाँ पर एशिया के चार प्रमुख देशों:
चीन
भारत
अफ़ग़ानिस्तान
पाकिस्तान की सीमा आकार मिलती है।
भारत के पूर्व की ओर उच्च हिमालय का भाग है जो भारत तथा चीन के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा का कार्य करता है। इसे मैकमोहन रेखा के नाम से जाना जाता है। भारत के सुदूर उत्तरी पूर्वी कोने पर उत्तरी-पूर्वी त्रिसन्धि है जहाँ पर भारत, चीन तथा म्यांमार की सीमाएँ आपस में मिलती है। पाकिस्तान एवं भारत की सीमा को स्पर्श करने वाले भारतीय राज्य हैं - जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान तथा गुजरात; जबकि अफ़ग़ानिस्तान की सीमा मात्र जम्मू कश्मीर राज्य को स्पर्श करती है। भारत एवं चीन की सीमा से सटे राज्य हैं - जम्मू कश्मीर राज्य को स्पर्श करती है। भारत एवं चीन की सीमा से सटे राज्य हैं - जम्मू-कश्मीर राज्य को स्पर्श करती है। भारत एवं चीन की सीमा से सटे राज्य हैं - जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड,सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर तथा मिजोरम की सीमाएँ उत्तर-पूर्व में स्थित म्यांमार को स्पर्श करती हैं। बांग्लादेश एवं भारत की सीमा से लगे भारतीय राज्य हैं - मिजोरम, त्रिपुरा, असम, मेघालय तथा पश्चिम बंगाल।
वर्तमान में भारत के 9 राज्यों व 5 केन्द्रशासित प्रदेशों की सीमाएँ समुद्री तटरेखा से लगे हैं। ये राज्य हैं - कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल। केन्द्रशासित प्रदेशों में पुदुचेरी, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव की सीमाएं भी समुद्र से लगती है। भारत की सबसे लम्बी सीमा स्थलीय सीमा चीन के साथ लगती है जबकि सबसे छोटी स्थलीय सीमा भूटान के साथ संलग्न है। इस प्रकार भारत की स्थिति काफ़ी महत्त्वपूर्ण है एवं हिमालय पर्वतमाला तथा हिन्द महासागर के शीर्ष पर भारत की केन्द्रीय स्थिति है। भारत के निकटतम पड़ोसी देश हैं - पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, चीन, नेपाल, म्यांमार तथा बांग्लादेश। पाक जलसन्धि द्वारा अलग हुआ श्रीलंका भी हिन्द महासागर में स्थित पड़ोस देश है। भूटान जैसा पड़ोसी देश एक विशेष सन्धि द्वारा भारत पर निर्भर करता है एवं इसकी प्रतिरक्षा, विकास आदि कार्यों का उत्तरदायित्व भारत पर है। समुद्र पार भारत का सबसे निकटतम पड़ोसी श्रीलंका है, जिसे पाक जलडमरूमध्य भारत से पृथक करता है। इसी प्रकार भारत का दूसरा सबसे निकटतम पड़ोसी देश इंडोनेशिया है। इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप और भारत के ग्रेट निकोबार द्वीप को ग्रेट चैनल पृथक करता है। मालदीव भारत का एक अन्य पड़ोसी देश है जो लक्षद्वीप के दक्षिण में स्थित है।
भारत की भू-आकृतिक इकाइंया
इकाइयाँक्षेत्रफलकुल क्षेत्रफल का प्रतिशत
उत्तरी पर्वत श्रेणियाँ 5,78,000 17.9
विशाल मैदान 5,50,000 17.9
थार मरुस्थल 1,75,000 5.4
मध्यवर्ती उच्च भूमि 3,36,000 10.4
प्रायद्वीपीय पठार 12,41,000 38.5
तटीय मैदान 3,35,000 10.4
द्वीपीय समूह 8,300 0.3
देशसीमा पर अवस्थित भारतीय राज्य
पाकिस्तान गुजरात, राजस्थान, पंजाब और जम्मू कश्मीर
अफ़ग़ानिस्तान जम्मू कश्मीर
तजाकिस्तान जम्मू कश्मीर
चीन जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश
नेपाल उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम और पश्चिम बंगाल
भूटान सिक्किम, पश्चिमी बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश
बांग्लादेश पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और त्रिपुरा
म्यांमार अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणिपुर और मिजोरम
भौतिक स्वरूप
वृहत हिमालय के प्रमुख शिखरशिखरऊँचाई (मी.)
एवरेस्ट (सागर माथा) 8,848 मी.
एवरेस्ट दक्षिण 8,754 मीं.
कंचनजंगा 8,594 मीं.
ल्होत्से 8,501 मीं.
मकालू 8,481 मीं.
कंचनजंगा (दक्षिण) 8,471 मीं.
कंचनजंगा (पश्चिम) 8,420 मीं.
ल्होत्से मध्य 8,410 मीं.
ल्होत्से शर 8,384 मीं.
धौलागिरि 8,172 मीं.
मनास्लू 8,156 मीं.
चिओयू 8,153 मीं.
नंगा पर्वत 8,126 मीं.
अन्नपूर्णा 8,078 मीं.
गोसाई नाथ 8,013 मीं.
मकालू (दक्षिण) 8,010 मीं.
नन्दा देवी 7,817 मीं.
नामचाबरवा 7,756 मीं.
हरामोश 7,397 मीं.
भारत का विशाल क्षेत्र भौतिक दृष्टि से सर्वत्र समान नहीं है बल्कि इसके उच्चावचन में काफ़ी विविधता पायी जाती है। इसमें कहीं पर तो उच्च पर्वत श्रेणियां हैं और कहीं पर विशाल मैदान। नदी घांटियाँ एवं पठारी भाग भी देश में विद्यमान हैं। यदि उत्तर में हिमालय जैसी नवीन पर्वत मालाएं स्थित हैं; तो अरावली, सतपुड़ा, विन्ध्याचल जैसी प्राचीन पर्वत श्रेणियाँ भी हैं। देश के कुल क्षेत्रफल के 10.7 प्रतिशत भाग पर उच्च पर्वत श्रेणियों का विस्तार पाया जाता है, जिनकी ऊंचाई समुद्र तट से 2,135 मी. या इसके अधिक है। समुद्र तट से 305 से 2,135 मी. तक की ऊंचाई वाली पहाड़ियाँ भी देश के 18.6 प्रतिशत भाग पर फैली हैं। इस प्रकार कुल पर्वतीय भाग 29.3 प्रतिशत है। समुद्र तट से 305 से 915 मीं तक ऊंचाई वाले पठारी भाग का विस्तार भी देश के 27.7 प्रतिशत क्षेत्र पर है, जबकि शेष 43.0 प्रतिशत पर विस्तृत मैदान पाये जाते हैं। उच्चावचन की दृष्टि से भारत को सामान्यतः चार प्राकृतिक या भौतिक भागों में वर्गीकृत किया जाता है, जो हैं:
उत्तर का पर्वतीय एवं पहाड़ी प्रदेश
उत्तर का विशाल मैदान
प्रायद्वीपीय पठारी भाग
समुद्र तटीय मैदान। पुनः थार का विशाल मरुस्थल तथा सागरीय भाग में स्थित द्वीप भी एक विशेष प्रकार का भौतिक स्वरूप प्रस्तुत करते हैं।
उत्तर का पर्वतीय एवं पहाड़ी प्रदेश
इस प्रदेश का हिमालय पर्वतीय प्रदेश के रूप में भी जाना जाता है, जो देश की उत्तर सीमा पर एक चाप के आकार में 2400 किमी. की लम्बाई में फैला है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। इसका उद्गम पामीर की गाँठ से हुआ है। इसकी उत्पत्ति वस्तुतः एक भू-द्रोणी, जिसेटेथिस सागर कहते हैं, से हुई है। हिमालय पर्वत श्रेणी की कुल लम्बाई मकरान तट पर स्थित ग्वाडर से लेकर पूर्व में मिजों पहाड़ियों तक 2,400 किमी. है, जबकि इसकी चौड़ाई पश्चिम में 400 किमी और पूरब में 160 किमी. तक है। हिमालय की स्थलाकृतियों में मुख्यतः तीन लंबी और घुमावदार श्रेणियां हैं, जिनकी ऊंचाई दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमशः बढ़ती जाती है। मंद गति के कारण इन्हें वर्तमान ऊंचाई को प्राप्त करने में 70 लाख वर्ष लगे हैं। भौतिक दृष्टि से हिमालय मे चार समान्तर श्रेणियां मिलती हैं जिनमें, सबसे उत्तर में ट्रांस अथवा तिब्बत हिमालय, उसके दक्षिण में क्रमशः महान अथवा आन्तरिक हिमालय, लघु अथवा मध्य हिमालय तथा उप अथवा शिवालिक श्रेणी स्थित हैं।
ट्रान्स अथवा तिब्बत हिमालय श्रेणी सबसे उत्तर में स्थित हैं। इसकी खोज सन् 1906 स्वैन महोदय ने की थी। इसकी लम्बाई 100 किमी. तथा चौड़ाई पूर्वी तथा पश्चिमी किनारों पर 40 किमी एवं बीच में 225 किमी तक पायी जाती है। इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 3,100 से 3,700 मी तक पायी जाती है। इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 3,100 से 3,700 मीं तक है एवं शीत कटिबन्धीय जलवायु के कारण इस पर वनस्पतियों का पूर्ण अभाव पाया जाता है। यह श्रेणी बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों तथा उत्तर दिशा में भू-आवेष्ठित झीलों से निकलने वाली नदियों के बीच जल विभाजक की भूमिका निभाती है।
हिमालय तीन समानांतर पर्वत श्रंखलाओं में अवस्थित है जो पश्चिम में सिंधु गार्ज से पूर्व में ब्रह्मपुत्र गार्ज तक विस्तृत है। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक हिमालय पर्वत श्रंखला का विस्तार 2500 किमी. है। इस पर्वत शृंखला की पूर्व में चौड़ाई 150 किमी. तथा पश्चिम में 500 किमी तक है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हिमालय पर्वत श्रेणी को तीन वृहत् भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
महान (वृहत्) अथवा आंतरिक हिमालय
महान अथवा आन्तरिक हिमालय ही हिमालय पर्वतमाला की सबसे प्रमुख तथा सवोच्च तथा सर्वोच्च श्रेणी है, जिसकी लम्बाई उत्तर में सिंधु नदी के मोड़ से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी. है। इसकी चौड़ाई 120 से 190 किमी. तक तथा औसत ऊंचाई 6,100 मीं. है। अत्यधिक ऊंचाई के कारण हिमालय साला भर बर्फ़ से ढंका रहता हैं, अतः इसे हिमाद्रि भी कहते हैं। इस श्रेणी में विश्व की सर्वोच्च पर्वत चोटियाँ पाई जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं - माउण्ट एवरेस्ट (8,848 मी.), कंचनजंगा (8,598 मीं.), मकालू (8,481 मीं.), धौलागिरी (8,172 मी.), मनसालू (8156 मी.), नंगा पर्वत (8,126 मीं.), अन्नापूर्णा (8,078 मी.), गोवाई थान (8,013 मी.), नन्दा देवी (7,817 मी.), नामचाबरवा (7,756 मी.), हरामोश (7,397 मी.), आदि। इस श्रेणी में उत्तर पश्चिम की ओर जास्कर श्रेणी के उत्तर-दक्षिण में देवसाई तथा रूपशू के ऊंचे मैदान मिलते हैं। सिन्धु, सतलुज, दिहांग, गंगा, यमुना तथा इनकी सहायक नदियों की घाटियाँ इसी श्रेणी में स्थित है।
लघु अथवा मध्य हिमालय श्रेणी
यह महान हिमालय के दक्षिण के उसके समानान्तर विस्तृत है। इसकी चौड़ाई 80 से 100 किमी. तक औसत ऊंचाई 1,828 से 3,000 के बीच पायी जाती है। इस श्रेणी में नदियों द्वारा 1,000 मीं. से भी अधिक गहरे खड्डों अथवा गार्जों का निर्माण किया गया है। यह श्रेणी मुख्यतः छोटी-छोटी पर्वत श्रेणियों जैसे - धौलाधार, नागटीवा, पीरपंजाल, महाभारत तथा मसूरीकासम्मिलित रूप है। इस श्रेणी के निचले भाग में देश के प्रसिद्ध पर्वतीय स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान - शिमला, मसूरी, नैनीताल, चकराता, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्थित है। वृहत तथा लघु हिमालय के बीच विस्तृत घाटियां हैं जिनमें कश्मीर घाटी तथा नेपाल में काठमांडू घाटी प्रसिद्ध है। इस श्रेणी के ढालों पर मिलने वाले छोटे-छोटे घास के मैदानों को जम्मू-कश्मीर में मर्ग (जैसे-सोनमर्ग, गुलमर्ग आदि) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल एवं पयार कहा जाता हे।
उप हिमालय या शिवालिक श्रेणी
यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है एवं इसको ‘वाह्म हिमालय’ के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय पर्वत की दक्षिणतम श्रेणी है जो लघु हिमालय के दक्षिण में इसके समानांतर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई है। इसकी औसत ऊंचाई 900 से 12,00 मीटर तक औसत चौड़ाई 10 से 50 किमी है। इसका विस्तार पाकिस्तान के पोटवार पठार से पूर्व में कोसी नदी तक है। गोरखपुर के समीप इसे डूंडवा श्रेणी तथा पूर्व की ओर चूरियामूरिया श्रेणी के स्थानीय नाम से भी पुकारा जाता है। यह हिमालय पर्वत का सबसे नवीन भाग है। लघु तथा वाह्म हिमालय के बीच पायी जाने वाली विस्तृत घाटियों को पश्चिम में ‘दून’ तथा पूर्व में ‘द्वार’ कहा जाता है। देहरादून, केथरीदून तथा पाटलीदून और हरिद्वार इसके प्रमुख उदाहरण है।
हिमालय पर्वत श्रेणियों की दिशा में असम से पूर्व से उत्तर पूर्व हो जाती है। नामचाबरचा के आगे यह श्रेणियाँ दक्षिणी दिशा में मुड़कर पटकोई, नागा, मणिपुर, लुशाई, अराकानयोमा, आदि श्रेणियों के रूप में स्थित हैं जो भारत एवं म्यान्मार के मध्य सीमा बनाती है।
शिवालिक को जम्मू में जम्मू पहाड़ियाँ तथा अरुणाचल प्रदेश में डफला, गिरी, अवोर और मिशमी पहाड़ियों के नाम से भी जाना जाता है। अक्साईचीन, देवसाई, दिषसंग तथा लिंगजीतांग के उच्च तरंगित मैदान इन पर्वतों के निर्माण से पहले ही क्रिटेशश काल में बन चुके थे जो अपरदन धरातल के प्रमाण हैं।
उत्तर का विशाल मैदान
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति के पश्चात उसके दक्षिण तथा प्राचीन शैलों से निर्मित प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर में, दोनों उच्च स्थलों से निकलने वाली नदियों, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, आदि द्वारा जमा की गई जलोढ़ मिट्टी के जमाव से उत्तर के विशाल मैदान का निर्माण हुआ है। इस मैदान को सिंधु-गंगा ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहते हैं। यह मैदान धनुषाकार रूप में 3200 किमी. की लम्बाई में देश के 7.5 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत हैं। इसकी चौड़ाई पश्चिम में 480 किमी तथा पूर्व में मात्र 145 किमी है। प्रादेशिक दृष्टि से उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा,उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा असम में इसका विस्तार हैं। इन मैदान को पश्चिमी तथा पूर्वी दो भाग में बांटा जाता है। पश्चिमी मैदान का अधिकांश भाग वर्तमानपाकिस्तान के सिन्ध प्रांत में पड़ता है, जबकि इसका कुछ भाग पंजाब व हरियाणा राज्यों में भी मिलता है। इसका निर्माण, सतजल, व्यास तथा रावी एवं इनकी सहायक नदियों द्वारा किया गया है। पूर्वी मैदान का विस्तान उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल राज्यों में हैं, जिसका क्षेत्रफल 3.57 लाख वर्ग किमी. है। इस मैदान में धरातलीय भू-आकृति के आधार पर बांगर तथा खादर नामक दो विशेष भाग मिलते हैं। बांगर प्राचीनतम संग्रहीत पुरानी जलोढ़ मिट्टी के उच्च मैदानी भाग हैं, जहाँ कभी नदियों की बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। खादर की गणना नवीनतम कछारी भागों के रूप में की जाती है। यहाँ पर प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी पहुंचने एवं नयी मिट्टी का जमाव होने से काफ़ी ऊपजाऊ माने जाते हैं।
उत्तर के विशाल मैदान का प्रादेशिक विभाजन
उत्तर के विशाल मैदान को अनेक उपविभागों में बाँटा गया है, जिनमें प्रमुख हैं - पंजाब, हरियाणा का मैदान, राजस्थान का मेदान, गंगा का मैदान एवं ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी। गंगा के मैदान को हरिद्वार से अलीगढ़ तक ऊपरी दोआब तथा अलीगढ़ से इलाहाबाद तक मध्य दोआब के नाम से जाना जाता है। गंगा तथा यमुना दोआब के ऊत्तरी-मध्य उत्तर प्रदेश में स्थित भाग को रूहेलखण्ड का मैदान कहा जाता है। इस मैदान पर राम गंगा, शारदा तथा गोमती नदियाँ प्रवाहित होती है। उत्तर प्रदेश के उत्तरी पूर्वी भाग में अवध का मैदान स्थित हैं, जिसमेंघाघरा, राप्ती तथा गोमती नदियाँ बहती है। गंगा के मैदान के उत्तरी-पूर्वी भाग में असम तक ब्रह्मपुत्र नदी का मैदान स्थित है, जो कि गारो पहाड़ी, मेघालय पठार तथा हिमालय पर्वत के बीच लम्बे एवं पतले रूप में फैला है। इसकी चौड़ाई मात्र 80 किमी. है। ब्रह्मपुत्र नदी घाटी की अवनतीय संरचना मे जमा किये गये अवसादों से इस मेदान में मियाण्डर, गोखुर झील, आदि का निर्माण हो गया है। इस मैदान के ढाल की दिशा दक्षिण-पश्चिम की ओर है तथा इसकी सीमा पर तराई एव अर्द्ध-तराई क्षेत्र मिलते हैं, जो दलदलो एवं सघन वनों से अच्छादित हैं
GK Questions Answers
उत्तर के विशाल मैदान से सम्बन्धित दो प्रमुख शब्दावलियाँ हैं - भावर तथा तराई। ये अवसादी जमाव की विशेषताओं की परिचारक भी हैं।भावर
यह क्षेत्र हिमालय तथा गंगा के मैदान के बीच पाया जाता है। जिसमें पर्वतीय भाग से नीचे आने वाली नदियों ने लगभग 8 किमी की चौड़ाई में कंकड़ों एवं पत्थरों का जमाव कर दिया है। यही गंगा मैदान की सबसे उत्तरी सीमा भी है। इस पथरीले क्षेत्र में हिमालय से निकलने वाली नदियाँ प्रायः विलीन हो जाती है और केवल कुछ बड़ी नदियों की धारा ही धरातल पर प्रवाहित होती हुई दिखती है।तराई
यह क्षेत्र भावर के नीचे उसके समानान्तर स्थित है, जिसकी चौड़ाई 15 से 30 किमी तक पायी जाती हैं। भावर प्रदेश में विलीन हुई नदियों का जल तराई क्षेत्र में ऊपर आ जाता हे। यह वास्तव में निम्न समतल मैदानी क्षेत्र हैं, जहाँ नदियों का जल इधर-उधर फैल जाने से दलदलों का निर्माण हो गया है। वर्तमान में यहां की सघन वनस्पतियों को काटकर तथा दलदलों को सुखाकर कृषि कार्य के लिए उपयोगी बना लिया गया है।बांगर
बांगर प्रदेश भी उत्तर के विशाल मैदान की एक विशेषता है। यह प्रदेश पुरानी जलोढ़ मिट्टी का बना होता है जहां नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुंचता है। इस प्रदेश में चूनायुक्त संग्रथनों की अधिकता होने के कारण यह कृषि के लिए अधिक उपयुक्त नहीं होता है। पंजाब में मिलने वाले बांगर को धाया कहा जाता है।खादर
बांगर के विपरीत खादर प्रदेश में नदियों की बाढ़ का जल प्रतिवर्ष पहुंचता है। इस प्रदेश का निर्माण नवीन जलोढ़ मिट्टी द्वारा होता है क्योंकि बाढ़ के जल के साथ नवीन मिट्टी यहां प्रति वर्ष बिछती रहती है। यह प्रदेश कृषि के लिए अत्यधिक उपयुक्त होती है। पंजाब में मिलने वाले खादर को ‘बेट’ कहा जाता है।डेल्टा
मुख्य लेख : डेल्टा
उत्तरी विशाल मैदान में गंगा तथा सिंधु नदी के डेल्टा मिलते हैं। गंगा का डेल्टा राजमहल की पहाड़ियों में सुन्दरवन के किनारे तक 430 किमी की लम्बाई में विस्तृत है। इसकी चौड़ाई 480 किमी है। सिंधु नदी का डेल्टा 960 किमी लम्बा और 160 किमी चौड़ा है।
प्रायद्वीपीय पठारी भाग
मुख्य लेख : प्रायद्वीप
गंगा के विशाल मैदान के दक्षिण से लेकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक त्रिभुजाकार आकृति में लगभग 16 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर प्रायद्वीपीय पठारी भाग फैला हुआ है। यह भाग दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं केरल राज्यों में फैला है। यह देश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला तथा प्राचीन भौतिक प्रदेश है। यह देश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला तथा प्राचीन भौतिक प्रदेश है। इस पर प्रवाहित होने वाली नदियों ने इसका कई छोटे-छोटे पठारों में विभाजित कर दिया है। इसकी लम्बाई राजस्थान से कुमारी अन्तरीप तक लगभग 1,700 किमी. तथा गुजरात से पश्चिम बंगाल तक चौड़ाई 1,400 किमी है। इस पठार की औसत ऊँचाई समुद्र तल से 600 मीटर तक है। इसकी उत्तरी सीमा पर अरावली, कैमूर तथा राजमहल पहाड़ियाँ स्थित है। पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट पहाड़ी इसकी सीमा बनाते हैं। यह क्षेत्र विच्छिन्न पहाड़ियों, शिखर मैदानों गभीरकृत, संकरी एवं अधिवर्धित घाटियों, शृंखलाबद्ध पठारों, समप्राय मैदानों एवं अवशिष्ट खण्डों का एक प्राकृतिक भूदृश्य है। पूर्वी एवं पश्चिमी घाट का मिलन जिस स्थान पर होता है, वहां अन्नामलाई पहाड़ियाँ स्थित है। नर्मदा नदी के उत्तर में मालवा पठार स्थित है। यह पठार लावा निर्मित होने के कारण काली मिट्टी का समप्रायः बन गया है, जिसका ढाल विशाल मैदान की ओर है। इस पर बेतवा, पार्वती, नीवज, काली सिन्ध, चम्बल तथा माही नदियाँ बहती है। मालवा पठार की उत्तरी तथा उत्तरी पूर्वी सीमा पर बुन्देलखण्डतथा बघेलखण्ड के पठार स्थित हैं जबकि कैमूर तथा भारनेर श्रेणियों के पूर्व में बघेलखण्ड का पठार है। इस पठार के उत्तर में सोनपुर पहाड़ियाँ तथा दक्षिण में रामगढ़ की पहाड़ियाँ स्थित है।
समुद्रतटीय मैदान
दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठारी भाग के दोनों ओर पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट पर्वतमालाओं एवं सागर तट के बीच समुद्रतटीय मैदानों का विस्तार है। यह तटीय मैदान देश के अन्य प्राकृतिक विभाग से स्पष्ट भिन्नता रखता है। स्थित के आधार पर इन्हे पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों में विभाजित किया जाता है।
पश्चिमी समुद्र तटीय मैदान का विस्तार गुजरात में कच्छ की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक पाया जाता है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किमी. है। इस मैदान की सर्वाधिक चौड़ाईनर्मदा तथा ताप्ती नदियों के मुहानों के समीप 80 किमी तक मिलती है। इस मैदान का ढाल पश्चिम की ओर अत्यधिक तीव्र हैं, जिस पर तीव्रगामी एवं छोटी नदियाँ प्रवाहित होती है। इस मैदान को पाँच उपखण्डों में विभाजित किया गया है:
कच्छ प्रायद्वीपीय तटीय मैदान जो कि शुष्क एवं अर्द्धशुष्क रेतीला मैदान है। इसके मध्य में गिरनार पहाड़ियाँ स्थित हैं।
गुजरात का मैदान, जिसका विस्तार कच्छ एवं सौराष्ट्र के पूर्व में हैं। इस पर माही, साबरमती, नर्मदा तथा ताप्ती नदियाँ प्रवाहित होते हुए अरब सागर में मिलती हैं।
कोंकण का मैदान दमन से गोवा तक 500 किमी लम्बा हैं। इस पर साल, सागौन आदि के वनों की अधिकता हैं।
कनारातटीय मैदान गोवा से मंगलोर तक पाया जाता है। इसका निर्माण प्राचीन कायान्तरित शैलों से हुआ है। इस पर बालुआ स्तूपों का जमाव पाया जाता है। यह तट गरम मसालों, सुपारी, केला, आम, नारियल, आदि की कृषि के लिए प्रसिद्ध हैं।
मालाबार तटीय मैदान केरल का तटीय मैदान हैं, जो कि मंगलोर से कन्याकुमारी तक 500 किमी की लं. में फैला है। इस पर लैगून (कयाल) नामक छोटी-छोटी तटीय झीलें पायी जाती हैं। इस मैदान के तटीय भागों में मत्स्ययन किया जाता है।
पूर्वी समुद्र तटीय मेदान पश्चिम बंगाल से लेकर कुमारी अन्तरीप तक मिलता है। इसकी चौड़ाई पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक हैं। इस मैदान पर प्रवाहित होने वाली नदियों-महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि ने विस्तृत डेल्टा का निर्माण किया है। इस पर चिल्का तथा पुलीकट जैसी विस्तृत लैगून झीलें भी पायी जाती हैं। इस मैदान के उत्तरी भाग को उत्तरी सरकार तथा दक्षिण भाग को कोरामण्डल तट के नाम से जाना जाता है। इसके तीन प्रमुख उप विभाग हैं:
उत्कल का मैदान जो कि उड़ीसा तट के सहारे लगभग 400 किमी की लम्बाई में फैला है। इस मैदान पर महानदी का डेल्टा, चिल्का झील तथा विशाखापट्नम बन्दरगाह स्थित हैं।
आन्ध्र का मैदान आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र में स्थित हैं जिस पर गोदावरी एवं कृष्णा नदियों ने अपने डेल्टा का निर्माण किया है। इन दोनों डेल्टाओं के बीच कोलेरू झील स्थित हैं।
तमिलनाडु के मैदान का विस्तार तमिलनाडु तथा पाण्डिचेरी के तटीय क्षेत्र में हैं। पुलीकट झील से कुमारी अन्तरीप तक इसकी लम्बाई 675 किमी है। इसकी औसत चौड़ाई 100 किमी है। पुलीकट एक लैगून झील है जिसके आगे श्रीहरिकोटा द्वीप स्थित है। यह मैदान सबसे लम्बा है।
नदियाँ
ॠग्वैदिककालीन नदियाँप्राचीन नामआधुनिक नाम
क्रुभु कुर्रम
कुभा काबुल
वितस्ता झेलम
आस्किनी चिनाव
पुरुष्णी रावी
शतुद्रि सतलज
विपाशा व्यास
सदानीरा गंडक
दृषद्वती घग्घर
गोमती गोमल
सुवास्तु स्वात
सिंधु सिन्ध
सरस्वती / दृशद्वर्ती घघ्घर / रक्षी / चित्तग
सुषोमा सोहन
मरूद्वृधा मरूवर्मन
भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-
हिमाचल से निकलने वाली नदियाँ
दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
तटवर्ती नदियाँ
अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ् नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्थायी प्रकृति की हैं।
सिन्धु नदी
हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्य प्रणाली सिंधु और गंगा ब्रह्मपुत्र मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।
सिंधु नदी
विश्व की महान, नदियों में एक है, तिब्बत में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्पश्चात्पाकिस्तान से हो कर और अंतत: कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों मेंसतलुज (तिब्बत से निकलती है), व्यास, रावी, चिनाब, और झेलम है।
वाराणसी में गंगा नदी के घाट
गंगा
ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्य महत्वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथीऔर अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तरांचल,उत्तर प्रदेश, बिहार और प.बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
सहायक नदियाँ
यमुना नदी
यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी, और सोन; गंगा की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रुप में बहती रहती है।
ब्रह्मपुत्र
ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में अरुणाचल प्रदेश तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है और यह संयुक्त नदी पूरे असम से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
सहायक नदियाँ
भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्लादेश में भैरव बाज़ार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है।
दक्कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।
गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी का दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्थान है जबकि महानदी का तीसरा स्थान है। डेक्कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।
कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है।
राजस्थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्त कुछ मरुस्थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्थल में लुप्त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्छ, स्पेन, सरस्वती, बानस और घग्गर जैसी अन्य नदियाँ हैं।
भारत की प्रमुख नदियों की सूची
क्रमनदीलम्बाई (कि.मी.)उद्गम स्थानसहायक नदियाँप्रवाह क्षेत्र (सम्बन्धित राज्य)
1 सिन्धु नदी 2,880 (709) मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत) सतलुज, व्यास, झेलम, चिनाब, रावी, शिंगार, गिलगित,श्योक जम्मू और कश्मीर, लेह
2 झेलम नदी 720 शेषनाग झील, जम्मू-कश्मीर किशन, गंगा, पुँछ, लिदार, करेवाल, सिंध जम्मू-कश्मीर, कश्मीर
3 चिनाब नदी 1,180 बारालाचा दर्रे के निकट चन्द्रभागा जम्मू-कश्मीर
4 रावी नदी 725 रोहतांग दर्रा, कांगड़ा साहो, सुइल हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर,पंजाब
5 सतलुज नदी 1440 (1050) मानसरोवर के निकट राकसताल व्यास, स्पिती, बस्पा हिमाचल प्रदेश, पंजाब
6 व्यास नदी 470 रोहतांग दर्रा तीर्थन, पार्वती, हुरला हिमाचल प्रदेश
7 गंगा नदी 2,510 (2071) गंगोत्री के निकट गोमुख से यमुना, रामगंगा, गोमती, बागमती, गंडक, कोसी, सोन,अलकनंदा, भागीरथी, पिण्डार, मंदाकिनी उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार,पश्चिम बंगाल
8 यमुना नदी 1375 यमुनोत्री ग्लेशियर चम्बल, बेतवा, केन, टोंस, गिरी, काली, सिंध, आसन उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली
9 रामगंगा नदी 690 नैनीताल के निकट एक हिमनदी से खोन उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश
10 घाघरा नदी 1,080 मप्सातुंग (नेपाल) हिमनद शारदा, करनली, कुवाना, राप्ती, चौकिया उत्तर प्रदेश, बिहार
11 गंडक नदी 425 नेपाल तिब्बत सीमा पर मुस्ताग के निकट काली, गंडक, त्रिशूल, गंगा बिहार
12 कोसी नदी 730 नेपाल में सप्तकोशिकी (गोंसाईधाम) इन्द्रावती, तामुर, अरुण, कोसी सिक्किम, बिहार
13 चम्बल नदी 960 मऊ के निकट जानापाव पहाड़ी से काली, सिंध, सिप्ता, पार्वती, बनास मध्य प्रदेश
14 बेतवा नदी 480 भोपाल के पास उबेदुल्ला गंज के पास मध्य प्रदेश
15 सोन नदी 770 अमरकंटक की पहाड़ियों से रिहन्द, कुनहड़ मध्य प्रदेश, बिहार
16 दामोदर नदी 600 छोटा नागपुर पठार से दक्षिण पूर्व कोनार, जामुनिया, बराकर झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
17 ब्रह्मपुत्र नदी 2,880 मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत में सांग्पो) घनसिरी, कपिली, सुवनसिती, मानस, लोहित, नोवा, पद्मा, दिहांग अरुणाचल प्रदेश, असम
18 महानदी 890 सिहावा के निकट रायपुर सियोनाथ, हसदेव, उंग, ईब, ब्राह्मणी, वैतरणी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा
19 वैतरणी नदी 333 क्योंझर पठार उड़ीसा
20 स्वर्ण रेखा 480 छोटा नागपुर पठार उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
21 गोदावरी नदी 1,450 नासिक की पहाड़ियों से प्राणहिता, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, इन्द्रावती, मंजीरा, पुरना महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
22 कृष्णा नदी 1,290 महाबलेश्वर के निकट कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगप्रभा, मूसी महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
23 कावेरी नदी 760 केरकारा के निकट ब्रह्मगिरी हेमावती, लोकपावना, शिमला, भवानी, अमरावती, स्वर्णवती कर्नाटक, तमिलनाडु
24 नर्मदा नदी 1,312 अमरकंटक चोटी तवा, शेर, शक्कर, दूधी, बर्ना मध्य प्रदेश, गुजरात
25 ताप्ती नदी 724 मुल्ताई से (बेतूल) पूरणा, बेतूल, गंजल, गोमई मध्य प्रदेश, गुजरात
26 साबरमती 716 जयसमंद झील (उदयपुर) वाकल, हाथमती राजस्थान, गुजरात
27 लूनी नदी नाग पहाड़ सुकड़ी, जनाई, बांडी राजस्थान, गुजरात, मिरूडी, जोजरी
28 बनास नदी खमनौर पहाड़ियों से सोड्रा, मौसी, खारी कर्नाटक, तमिलनाडु
29 माही नदी मेहद झील से सोम, जोखम, अनास, सोरन मध्य प्रदेश, गुजरात
30 हुगली नदी नवद्वीप के निकट जलांगी
31 उत्तरी पेन्नार 570 नंदी दुर्ग पहाड़ी पाआधनी, चित्रावती, सागीलेरू
32 तुंगभद्रा नदी पश्चिमी घाट में गोमन्तक चोटी कुमुदवती, वर्धा, हगरी, हिंद, तुंगा, भद्रा
33 मयूसा नदी आसोनोरा के निकट मेदेई
34 साबरी नदी 418 सुईकरम पहाड़ी सिलेरु
35 इन्द्रावती नदी 531 कालाहाण्डी, उड़ीसा नारंगी, कोटरी
36 क्षिप्रा नदी काकरी बरडी पहाड़ी, इंदौर चम्बल नदी
37 शारदा नदी 602 मिलाम हिमनद, हिमालय,कुमायूँ घाघरा नदी
38 तवा नदी महादेव पर्वत, पंचमढ़ी नर्मदा नदी
39 हसदो नदी सरगुजा में कैमूर पहाड़ियाँ महानदी
40 काली सिंध नदी 416 बागलो, ज़िला देवास, विंध्याचल पर्वत यमुना नदी
41 सिन्ध नदी सिरोज, गुना ज़िला चम्बल नदी
42 केन नदी विंध्याचल श्रेणी यमुना नदी
43 पार्वती नदी विंध्याचल, मध्य प्रदेश चम्बल नदी
44 घग्घर नदी कालका, हिमाचल प्रदेश
45 बाणगंगा नदी 494 बैराठ पहाड़ियाँ, जयपुर यमुना नदी
46 सोम नदी बीछा मेंड़ा, उदयपुर जोखम, गोमती, सारनी
47 आयड़ या बेडच नदी 190 गोमुण्डा पहाड़ी, उदयपुर बनास नदी
48 दक्षिण पिनाकिन 400 चेन्ना केशव पहाड़ी, कर्नाटक
49 दक्षिणी टोंस 265 तमसा कुंड, कैमूर पहाड़ी
50 दामन गंगा नदी पश्चिम घाट
51 गिरना नदी पश्चिम घाट, नासिक
भारत के राज्यों का भूगोलअरुणाचल प्रदेश
मुख्य लेख : अरुणाचल प्रदेश का भूगोल
अरुणाचल प्रदेश का अधिकतर भाग हिमालय से ढका है, लेकिन लोहित, चांगलांग और तिरप पतकाई पहाडि़यों में स्थित हैं। काँग्तो, न्येगी कांगसांग, मुख्य गोरीचन चोटी और पूर्वी गोरीचन चोटी इस राज्य में हिमालय की सबसे ऊंची चोटियाँ हैं। तवांग का 'बुमला दर्रा' सन् 2006 में 44 वर्षों में पहली बार व्यापार के लिए खोला गया था और व्यापारियों को एक दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी।असम
मुख्य लेख : असम का भूगोल
भू-आकृति: मैदानी इलाक़ों एवं नदी घाटियों वाले असम को तीन प्रमुख भौतिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है- उत्तर में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी, दक्षिण में बरक नदी घाटी एवं कार्बी तथा आलंग ज़िलों के पर्वतीय क्षेत्र और इन दोनों घाटीयों के मध्य स्थित उत्तरी कछार की पहाड़ियाँ।
ब्रह्मपुत्र नदी घाटी असम का प्रमुख भौतिक क्षेत्र है। यह नदी असम के पूर्वोत्तर सिरे पर सादिया के पास प्रवेश करती है, फिर पश्चिम में पूरे असम में लगभग 724 किमी. लंबे मार्ग में प्रवाहित होकर दक्षिण की ओर मुड़कर बांग्लादेश के मैदानी इलाक़ों में चली जाती है। ब्रह्मपुत्र नदी घाटी, छोटी एकल पहाड़ियों और मैदानी इलाक़ों में अचानक उठते शिखरों, जिनकी चौड़ाई 80 किमी. से ज़्यादा नहीं है, से भरी हुई है। पश्चिम दिशा को छोड़कर बाक़ी सभी दिशाओं में यह पर्वत्तों से घिरी हुई है। पड़ोस की पहाड़ियों से निकली कई जलधाराओं एवं उपनदियों का जल इसमें समाहित होता है।
बरक नदी घाटी दक्षिण-पूर्व दिशा में विस्तृत निम्न भूमि के क्षेत्र की संरचना करती है, जो कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण है एवं इससे अपेक्षाकृत सघन बसी जनसंख्या को मदद मिलती है, हालांकि इस घाटी का एक छोटा सा ही हिस्सा राज्य के सीमाक्षेत्र में है।आंध्र प्रदेश
मुख्य लेख : आंध्र प्रदेश का भूगोल
आंध्र प्रदेश राज्य में तीन प्रमुख भौतिक-भौगोलिक क्षेत्र हैं:-
पूर्व में तटीय मैदान, जो बंगाल की खाड़ी से लेकर पर्वतश्रेणियों तक फैला है;
पर्वतश्रेणियाँ अर्थात पूर्वी घाट, जो तटीय मैदानों का पश्चिमी पार्श्व बनाते हैं;
घाट के पश्चिम से पूर्व में पठार।ओडिशा
मुख्य लेख : ओडिशा का भूगोल
उड़ीसा राज्य 17.780 और और 22.730 अक्षांश और 81.37पूर्व और 81.53 पूर्व देशांतर के बीच पड़ता है। भौगोलिक रूप से यह राज्य उत्तर-पूर्व में पश्चिम बंगाल, उत्तर में झारखंड, पश्चिम में छत्तीसगढ़ और दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है।उत्तर प्रदेश
मुख्य लेख : उत्तर प्रदेश का भूगोल
उत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्व इस प्रकार से हैं-
भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है।उत्तराखण्ड
मुख्य लेख : उत्तराखण्ड का भूगोल
उत्तराखण्ड राज्य का क्षेत्रफल 53,484 वर्ग किमी. और जनसंख्या 8,479,562 (2001 की जनगणना के अनुसार) है। उत्तराखण्ड भारत के उत्तर - मध्य भाग में स्थित है। यह पूर्वोत्तर मेंतिब्बत, पश्चिमोत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण - पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण - पूर्व में नेपाल से घिरा है। उत्तराखण्ड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 28° 43’ उ. से 31°27’ उ. और रेखांश 77°34’ पू. से 81°02’ पू के बीच में 53,483 वर्ग किमी है, जिसमें से 43,035 कि.मी. पर्वतीय है और 7,448 कि.मी. मैदानी है, तथा 34,651 कि.मी. भूभाग वनाच्छादित है। राज्य का अधिकांश उत्तरी भाग वृहद्तर हिमालय शृंखला का भाग है, जो ऊँची हिमालयी चोटियों और हिमनदियों से ढ़्का हुआ है, जबकि निम्न तलहटियाँ सघन वनों से ढ़की हुई हैं जिनका पहले अंग्रेज़ लकड़ी व्यापारियों और स्वतन्त्रता के बाद वन अनुबन्धकों द्वारा दोहन किया गया।कर्नाटक
मुख्य लेख : कर्नाटक का भूगोल
भौतिक रूप से कर्नाटक को चार भिन्न क्षेत्रों में बांटा गया है- समुद्रतटीय मैदान, पर्वत श्रेणियाँ (पश्चिम घाट), पूर्व में स्थित कर्नाटक का पठार और पश्चिमोत्तर में कपास उत्पाक काली मिट्टी का क्षेत्र। समुद्रतटीय मैदान मालाबार तट का विस्तार हैं और यहाँ जून से सितंबर तक दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से भारी वर्षा होती है। तट पर स्थित रेत के टीले भूमि की ओर बढ़ते हुए छोटे जलोढ़ मैदानों में बदल जाते हैं, जिनमें नारियल के वृक्षों से घिरे अनूप(लैगून) हैं। समुद्र के अलावा अन्य किसी भी मार्ग से तट पर पहुँचना मुश्किल है। पूर्व में पश्चिमी घाट की ढलानों के रूप भूमि तेज़ी से उठती है, जहाँ समुद्र तल से औसत ऊँचाई 760- 915 मीटर है।केरल
मुख्य लेख : केरल का भूगोल
केरल के पूर्व में ऊंचे पश्चिमी घाट और पश्चिम में अरब सागर के मध्य में स्थित इस प्रदेश की चौड़ाई 35 किमी से 120 किमी तक है।
भौगोलिक दृष्टि से केरल पर्वतीय क्षेत्रों, घाटियों, मध्यवर्ती मैदानों तथा समुद्र का तटवर्ती क्षेत्र हैं।
केरल नदियों और तालाबों के सम्बंध में बहुत ही समृद्ध है।गुजरात
मुख्य लेख : गुजरात का भूगोल
गुजरात को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बाँटा गया है जैसे-
सौराष्ट्र प्रायद्वीप- जो मूलतः एक पहाड़ी क्षेत्र है, बीच-बीच में मध्यम ऊँचाई के पर्वत हैं।
कच्छ- जो पूर्वोत्तर में उजाड़ और चट्टानी है। विख्यात कच्छ का रन इसी क्षेत्र में है।
गुजरात का मैदान- जो कच्छ के रन और अरावली की पहाड़ियों से लेकर दमन गंगा तक फैली है।
गुजरात की सबसे ऊँची चोटी गिरिनार पहाड़ियों में स्थित गोरखनाथ की चोटी है, जो 1117 मीटर ऊँची है। गुजरात की जलवायु ऊष्ण प्रदेशीय और मानसूनी है। वर्षा की कमी के कारण इस प्रदेश में रेतीली और बलुई मिट्टी पायी जाती है। प्रदेश में पूर्व की ओर उत्तरी गुजरात में वर्षा की मात्र 50 सेमी तक होती है। इसके दक्षिण की ओर मध्य गुजरात में मिट्टी कुछ अधिक उपजाऊ है तथा जलवायु भी अपेक्षयता आर्द्र है। वर्षा 75 सेमी तक होती है। नर्मदा, ताप्ती, साबरमती, सरस्वती, माही, भादर, बनास, और विश्वामित्र इस प्रदेश की सुपरिचित नदियाँ हैं।कर्क रेखा इस राज्य की उत्तरी सीमा से होकर गुजरती है, अतः यहाँ गर्मियों में खूब गर्मी तथा सर्दियों में खूब सर्दी पड़ती है। शहरीकरण की प्रक्रिया ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कुछ स्वरूप धारण किए हैं। राज्य का सर्वाधिक शहरीकृत क्षेत्र अहमदाबाद-वडोदरा औद्योगिक पट्टी है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-8 के किनारे उत्तर में ऊंझा से दक्षिण में वापी के औद्योगिक मैदान में एक वृहदनगरीय क्षेत्र[1] उभर रहा है। सौराष्ट्र कृषि क्षेत्र में क्रमिक बसाव प्रणाली को देखा जा सकता है, जबकि उत्तर और पूर्व के बाह्य क्षेत्रों में बिखरी हुई छोटी-छोटी बस्तियाँ हैं, जो शुष्क, पर्वतीय या वनाच्छादित क्षेत्र हैं। आदिवासी जनसंख्या इन्हीं सीमांत अनुत्पादक क्षेत्रों में केंद्रित है।गोवा
मुख्य लेख : गोवा का भूगोल
105 किलोमीटर समुद्री तट वाले गोवा में रेतीले तट, मुहाने व अंतरीप हैं। इसके भीतरी हिस्से में निचले पठार और लगभग 1,220 मीटर ऊँचे पश्चिमी घाटों (सह्यद्रि) का एक हिस्सा है। गोवा की दो प्रमुख नदियाँ, मांडोवी व जुआरी, के मुहाने में गोवा का द्वीप (इल्हास) स्थित है। इस त्रिकोणीय द्वीप का शीर्ष अंतरीप एक चट्टानी मुहाना है, जिस पर दो लंगरगाह हैं। यहाँ पर तीन शहर मर्मगाव या मार्मुगाव (वास्को द गामा सहित) मडगाँव और पणजी (नवगोवा) हैं।छत्तीसगढ़
मुख्य लेख : छत्तीसगढ़ का भूगोल
छत्तीसगढ़ राज्य मध्य प्रदेश के दक्षिण-पूर्व में 17°46' उत्तरी अक्षांश से 24°5' उत्तरी अक्षांश तथा 80°15' पूर्वी देशांतर से 84°15' पूर्वी देशांतर रेखाओं के मध्य स्थित है।
छत्तीसगढ़ का कुल भौगोलिक क्षेत्रअफल 1,35,194 वर्ग किमी. है। इसकी उत्तरी-दक्षिण लम्बाई 360 किमी. तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ाई 140 किमी. है।
छत्तीसगढ़ के उत्तर में उत्तर प्रदेश, उत्तरी-पूर्वी सीमा में झारखण्ड, दक्षिण-पूर्व में ओडिशा राज्य स्थित है। दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण-पश्चिम में महाराष्ट्र तथा उत्तरी-पश्चिम भाग में मध्य प्रदेश स्थित है।जम्मू और कश्मीर
मुख्य लेख : जम्मू और कश्मीर का भूगोल
जम्मू और कश्मीर पूर्वात्तर में सिंक्यांग का स्वायत्त क्षेत्र व तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (दोनों चीन के भाग) से, दक्षिण में हिमाचल प्रदेश व पंजाब राज्यों से, पश्चिम में पाकिस्तान और पश्चिमोत्तर में पाकिस्तान अधिकृत भूभाग से घिरा है।
स्थिति: जम्मू और कश्मीर राज्य 32-15 और 37-05 उत्तरी अक्षांश और 72-35 तथा 83-20 पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। भौगोलिक रूप से इस राज्य को चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है।
पहाड़ी और अर्द्ध-पहाड़ी मैदान जो कंडी पट्टी के नाम से प्रचलित है;
पर्वतीय क्षेत्र जिसमें शिवालिक पहाड़ियाँ शामिल हैं;
कश्मीर घाटी के पहाड़ और पीर पांचाल पर्वतमाला तथा
तिब्बत से लगा लद्दाख और कारगिल क्षेत्र।झारखण्ड
मुख्य लेख : झारखण्ड का भूगोल
झारखण्ड 21°58'10" उत्तरी अक्षांश से 25°19'15" उत्तरी अक्षांश तथा 83°20'50" पूर्वी देशांतर 88°4'40" पूर्वी देशांतर के मध्य विस्तृत है।
झारखण्ड का कुल क्षेत्रफल 79,714 वर्ग किमी. जो भारत के कुल क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है।
झारखण्ड के पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार तथा दक्षिण में उड़ीसा से घिरा हुआ है।तमिलनाडु
मुख्य लेख : तमिलनाडु का भूगोल
तमिलनाडु राज्य प्राकृतिक रूप से पूर्वी तट पर समतल प्रदेश तथा उत्तर और पश्चिम में पहाड़ी क्षेत्रों के बीच विभाजित है। पूर्वी मैदान का सबसे चौड़ा हिस्सा उपजाऊ कावेरी के डेल्टा पर है और आगे दक्षिण में रामनाथपुरम और मदुरै के शुष्क मैदान हैं। राज्य के समूचे पश्चिमी सीमांत पर पश्चिमी घाट की ऊँची शृंखला फैली हुई है। पूर्वी घाट की निचली पहाड़ियाँ और सीमांत क्षेत्र, जो स्थानीय तौर पर जावडी, कालरायण और शेवरॉय कहलाते हैं, प्रदेश के मध्य भाग की ओर फैले हैं।त्रिपुरा
मुख्य लेख : त्रिपुरा का भूगोल
मध्य एवं उत्तरी त्रिपुरा एक पहाड़ी क्षेत्र है, जिसे पूर्व से पश्चिम की ओर चार प्रमुख घाटियाँ, धर्मनगर, कैलाशहर, कमालपुर और खोवाई, काटती हैं। ये घाटियाँ उत्तर की ओर बहने वाली नदियों (जूरी, मनु व देव, ढलाई और खोवाई) द्वारा निर्मित हैं। पश्चिम व दक्षिण की निचली घाटियाँ खुली व दलदली हैं, हालांकि दक्षिण में भूभाग बहुत अधिक कटा हुआ और घने जंगलों से ढका है। उत्तर से दक्षिण की ओर उन्मुख श्रेणियाँ घाटियों को अलग करती हैं।दिल्ली
मुख्य लेख : दिल्ली का भूगोल
दिल्ली एक जलसंभर पर स्थित है। जो गंगा तथा सिंधु नदी प्रणालियों को विभाजित करता है। दिल्ली की सबसे महत्त्वपूर्ण स्थालाकृति विशेषता पर्वत स्कंध (रिज) है, जो राजस्थान प्रांत की प्राचीन अरावली पर्वत श्रेणियों का चरम बिंदु है। अरावली संभवत: दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत माला है, लेकिन अब यह पूरी तरह वृक्ष विहीन हो चुकी है। पश्चिमोत्तर पश्चिम तथा दक्षिण में फैला और तिकोने परकोट की दो भुजाओं जैसा लगने वाला यह स्कंध क्षेत्र 180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। कछारी मिट्टी के मैदान को आकृति की विविधता देता है तथा दिल्ली को कुछ उत्कृष्ट जीव व वनस्पतियाँ उपलब्ध कराता है। यमुना नदी त्रिभुजाकार परकोटे का तीसरा किनारा बताती है। इसी त्रिकोण के भीतर दिल्ली के प्रसिद्ध सात शहरों की उत्पत्ति ई.पू. 1000 से 17 वीं शताब्दी के बीच हुई।नागालैंड
मुख्य लेख : नागालैंड का भूगोल
नागालैंड का लगभग समूचा हिस्सा पर्वतीय है।
उत्तर में नागा पहाड़ियाँ ब्रह्मपुत्र घाटी से अचानक लगभग 610 मीटर की ऊंचाई तक उठती हैं और उसके बाद दक्षिण-पूर्व दिशा में इनकी ऊंचाई 1,800 मीटर तक हो जाती है, म्यांमार सीमा के पास ये पहाड़ियां पटकई शृंखला से मिल जाती हैं और यहाँ इनकी सबसे ऊंची चोटी माउंट सारामती है, जिसकी ऊंचाई 3,826 मीटर है।पंजाब
मुख्य लेख : पंजाब का भूगोल
भू-आकृति: पंजाब का अधिकांश हिस्सा समतल मैदानी है, जो पूर्वोत्तर में समुद्र तल से लगभग 275 मीटर से दक्षिण-पश्चिम में लगभग 168 मीटर की ऊँचाई की अनुवर्ती ढलान वाला है। भौतिक रूप से इस प्रदेश को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है। पूर्वोत्तर में 274-914 मीटर की ऊँचाई पर स्थित शिवालिक पहाड़ियाँ राज्य का बहुत ही छोटा हिस्सा हैं। दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियाँ संकरे और लहरदार तराई क्षेत्र के रूप में फैली हुई हैं, जिनसे होकर कई मौसमी धाराएँ बहती हैं।पश्चिम बंगाल
मुख्य लेख : पश्चिम बंगाल का भूगोल
पश्चिम बंगाल राज्य के पूर्व में बांग्लादेश, पश्चिम में नेपाल, उत्तर-पूर्व में भूटान, उत्तर में सिक्किम, पश्चिम में बिहार, झारखंड, दक्षिण-पश्चिम में उड़ीसा तथा दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है। पश्चिम बंगाल राज्य में भारत के हुगली नदी पर कोलकाता से 22 मील उत्तर चौबीस परगना ज़िले में नईहाटी नगर स्थित है।बिहार
मुख्य लेख : बिहार का भूगोल
भू-आकृती: प्राकृतिक रूप से यह राज्य गंगा नदी द्वारा दो भागों में विभाजित है, उत्तर बिहार मैदान और दक्षिण बिहार मैदान। सुदूर पश्चिमोत्तर में हिमालय की तराई को छोड़कर गंगा का उत्तरी मैदान समुद्र तल से 75 मीटर से भी कम की ऊँचाई पर जलोढ़ समतली क्षेत्र का निर्माण करता है और यहाँ बाढ़ आने की संभावना हमेशा बनी रहती है। घाघरा, गंडक,बागमती, कोसी, महानंदा और अन्य नदीयाँ नेपाल में हिमालय से नीचे उतरती हैं और अलग-अलग जलमार्गों से होती हुई गंगा में मिलती हैं।मणिपुर
मुख्य लेख : मणिपुर का भूगोल
भारत के पूर्वी सिरे पर मणिपुर राज्य स्थित है।
इसके पूर्व में म्यांमार (बर्मा) और उत्तर में नागालैंड राज्य है, पश्चिम में असम राज्य और दक्षिण में मिज़ोरम राज्य है।
मणिपुर का क्षेत्रफल 22,327 वर्ग किलोमीटर है। भौगोलिक रूप से मणिपुर के दो भाग हैं, पहाडियां और घाटियाँ।
घाटी मध्य में है और उसके चारों तरफ पहाडियां हैं।मध्य प्रदेश
मुख्य लेख : मध्य प्रदेश का भूगोल
मध्य प्रदेश दूसरा सबसे बड़ा भारतीय राज्य है। भौगोलिक दृष्टि से यह देश में केन्द्रीय स्थान रखता है। इसकी राजधानी भोपाल है । मध्य का अर्थ बीच में है, मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति भारतवर्ष के मध्य अर्थात बीच में होने के कारण इस प्रदेश का नाम मध्य प्रदेश दिया गया, जो कभी 'मध्य भारत' के नाम से जाना जाता था। मध्य प्रदेश हृदय की तरह देश के ठीक बीचोंबीच में स्थित है।महाराष्ट्र
मुख्य लेख : महाराष्ट्र का भूगोल
महाराष्ट्र में कई प्रकार की आकर्षक भू- आकृतियां हैं। नर्मदा नदी, जो विभ्रंश घाटी से होकर बहती हुई अरब सागर में गिरती है, राज्य की उत्तरी सीमा के एक हिस्से का निर्माण करती है। अरब सागर में ही मिलने वाली ताप्ती नदी की विभ्रंश घाटी इसकी उत्तरी सीमा के दूसरे हिस्से को चिह्नित करती है। ये दो नदी घाटियाँ सतपुड़ा शृंखला नामक उत्खंड से विभक्त होती हैं। ताप्ती घाटी के दक्षिण में अरब सागर के किनारे कोंकण का तटीय क्षेत्र है, जिसके पूर्व में पश्चिमी घाट या सह्याद्रि पहाड़ियों के नाम से विख्यात कगार स्थित है।मिज़ोरम
मुख्य लेख : मिज़ोरम का भूगोल
भूगर्भशास्त्रीय दृष्टि से मिज़ो पहाड़ियाँ अराकान आर्क का हिस्सा है जो सुसंगठित समानांतर पर्वतस्कंधों की उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थित शृंखला है, जिसका निर्माण तृतीयक बलुआ पत्थर, चूना-पत्थर और स्लेट-पत्थर[2] से हुआ है। संकरी नदी घाटियों से विभक्त पर्वतस्कंधों की ऊँचाई 2,157 मीटर है। दक्षिण में कलादान और इसकी सहायक नदियाँ दक्षिण दिशा में बहती हुईम्यांमार में प्रवेश करती हैं, जबकि धालेश्वरी (त्लावंग) और सोनाई (तुइरेल) नदियाँ उत्तर दिशा में असम की और बहती हैं।मेघालय
मुख्य लेख : मेघालय का भूगोल
मेघालय दक्कन के पठार से राजमहल दर्रे द्वारा अलग किया हुआ एक उच्च भूखंड है। यहाँ की चट्टानें और भू-वैज्ञानिक संरचना बिहार और बंगाल के छोटा नागपुर क्षेत्र जैसी है। चट्टानें पूर्व कैंब्रियन काल की आद्य महाकल्पी शैल और ग्रेनाइट, निम्न-पुराजीवी शिलांग समूह, अपर गोंडवाना, सिलहट ट्रैप और तीसरे युग के कठोर अवसादी जमावों से बनी हुई है। इसके शिखरों की ऊँचाई 1,220 से 1,830 मीटर के बीच है।राजस्थान
मुख्य लेख : राजस्थान का भूगोल
भूमि: अरावली पहाड़ियाँ राज्य के दक्षिण-पश्चिम में 1,722 मीटर ऊँचे गुरु शिखर[3] से पूर्वोत्तर में खेतड़ी तक एक रेखा बनाती हुई गुज़रती हैं। राज्य का लगभग 3/5 भाग इस रेखा के पश्चिमोत्तर में व शेष 2/5 भाग दक्षिण-पूर्व में स्थित है। राजस्थान के ये दो प्राकृतिक विभाजन हैं। बेहद कम पानी वाला पश्चिमोत्तर भूभाग रेतीला और अनुत्पादक है। इस क्षेत्र में विशाल भारतीय रेगिस्तान (थार) नज़र आता है। सुदूर पश्चिम और पश्चिमोत्तर के रेगिस्तानी क्षेत्रों से पूर्व की ओर बढ़ने पर अपेक्षाकृत उत्पादक व निवास योग्य भूमि है।सिक्किम
मुख्य लेख : सिक्किम का भूगोल
सिक्किम राज्य का कुल क्षेत्रफल 7,096 वर्ग किलो मीटर है।
इसका भू भाग उत्तर से दक्षिण तक 112 किलो मीटर तथा पूर्व से पश्चिम तक 64 किलोमीटर में फैला हुआ है।
यह उत्तर-पूर्व हिमाचल में 27 डिग्री 00'46" से 28 डिग्री 07'48" उत्तरी अक्षांश और 88 डिग्री 00'58" से 88 डिग्री 55'25" पूर्व देशांतर के मध्य स्थित है।
विश्व की तीसरी सबसे बड़ी और ऊंची चोटी 'कंचनजंगा', जिसे सिक्किम की रक्षा देवी माना जाता है, अपनी प्राकृतिक सौंदर्य की छटा बिखेरती है।हरियाणा
मुख्य लेख : हरियाणा का भूगोल
हरियाणा में दो बड़े भू-क्षेत्र है, राज्य का एक बड़ा हिस्सा समतल जलोढ़ मैदानों से युक्त है और पूर्वोत्तर में तीखे ढ़ाल वाली शिवालिक पहाड़ियाँ तथा संकरा पहाड़ी क्षेत्र है। समुद्र की सतह 210 मीटर से 270 मीटर ऊंचे मैदानी इलाकों से पानी बहकर एकमात्र बारहमासी नदी यमुना में आता है, यह राज्य की पूर्वी सीमा से होकर बहती है। शिवालिक पहाड़ियों से निकली अनेक मौसमी नदियां मैदानी भागों से गुज़रती है। इनमें सबसे प्रमुख घग्घर (राज्य की उत्तरी सीमा के निकट) नदी है।हिमाचल प्रदेश
मुख्य लेख : हिमाचल प्रदेश का भूगोल
हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय के मध्य में स्थित है, इसे देव भूमि कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश उत्तर में जम्मू और कश्मीर, पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में दक्षिण में हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखंड तथा पूर्व में तिब्बत से घिरा है। हिमाचल प्रदेश में देवी और देवताओं का निवास स्थान माना जाता है।
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