दूसरा विश्व युद्ध
दूसरा विश्व युद्ध १९३९ से १९४५ तक चलने वाला विश्व-स्तरीय युद्ध था। लगभग ७० देशों की थल-जल-वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों मे बँटा हुआ था - मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। इस युद्ध के दौरान पूर्ण युद्ध का मनोभाव प्रचलन में आया क्योंकि इस युद्ध में लिप्त सारी महाशक्तियों ने अपनी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता इस युद्ध में झोंक दी थी। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग १० करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया, तथा यह मानव इतिहास का सबसे ज़्यादा घातक युद्ध साबित हुआ। इस महायुद्ध में ५ से ७ करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं क्योंकि इसके महत्वपूर्ण घटनाक्रम में असैनिक नागरिकों का नरसंहार- जिसमें होलोकॉस्ट भी शामिल है- तथा परमाणु हथियारों का एकमात्र इस्तेमाल शामिल है (जिसकी वजह से युद्ध के अंत मे मित्र राष्ट्रों की जीत हुई)। इसी कारण यह मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध था।हालांकि जापान चीन से सन् १९३७ ई. से युद्ध की अवस्था में था किन्तु अमूमन दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत ०१ सितम्बर १९३९ में जानी जाती है जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोला और उसके बाद जब फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी तथा इंग्लैंड और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका अनुमोदन किया।
जर्मनी ने १९३९ में यूरोप में एक बड़ा साम्राज्य बनाने के उद्देश्य से पोलैंड पर हमला बोल दिया। १९३९ के अंत से १९४१ की शुरुआत तक, अभियान तथा संधि की एक शृंखला में जर्मनी ने महाद्वीपीय यूरोप का बड़ा भाग या तो अपने अधीन कर लिया था या उसे जीत लिया था। नाट्सी-सोवियत समझौते के तहत सोवियत रूस अपने छः पड़ोसी मुल्कों, जिसमें पोलैंड भी शामिल था, पर क़ाबिज़ हो गया। फ़्रांस की हार के बाद युनाइटेड किंगडम और अन्य राष्ट्रमंडल देश ही धुरी राष्ट्रों से संघर्ष कर रहे थे, जिसमें उत्तरी अफ़्रीका की लड़ाइयाँ तथा लम्बी चली अटलांटिक की लड़ाई शामिल थे। जून १९४१ में युरोपीय धुरी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर हमला बोल दिया और इसने मानव इतिहास में ज़मीनी युद्ध के सबसे बड़े रणक्षेत्र को जन्म दिया। दिसंबर १९४१ को जापानी साम्राज्य भी धुरी राष्ट्रों की तरफ़ से इस युद्ध में कूद गया। दरअसल जापान का उद्देश्य पूर्वी एशिया तथा इंडोचायना में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का था। उसने प्रशान्त महासागर में युरोपीय देशों के आधिपत्य वाले क्षेत्रों तथा संयुक्त राज्य अमेरीका के पर्ल हार्बर पर हमला बोल दिया और जल्द ही पश्चिमी प्रशान्त पर क़ब्ज़ा बना लिया।
सन् १९४२ में आगे बढ़ती धुरी सेना पर लगाम तब लगी जब पहले तो जापान सिलसिलेवार कई नौसैनिक झड़पें हारा, युरोपीय धुरी ताकतें उत्तरी अफ़्रीका में हारीं और निर्णायक मोड़ तब आया जब उनको स्तालिनग्राड में हार का मुँह देखना पड़ा। सन् १९४३ में जर्मनी पूर्वी युरोप में कई झड़पें हारा, इटली में मित्र राष्ट्रों ने आक्रमण बोल दिया तथा अमेरिका ने प्रशान्त महासागर में जीत दर्ज करनी शुरु कर दी जिसके कारणवश धुरी राष्ट्रों को सारे मोर्चों पर सामरिक दृश्टि से पीछे हटने की रणनीति अपनाने को मजबूर होना पड़ा। सन् १९४४ में जहाँ एक ओर पश्चिमी मित्र देशों ने जर्मनी द्वारा क़ब्ज़ा किए हुए फ़्रांस पर आक्रमण किया वहीं दूसरी ओर से सोवियत संघ ने अपनी खोई हुयी ज़मीन वापस छीनने के बाद जर्मनी तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों पर हमला बोल दिया। सन् १९४५ के अप्रैल-मई में सोवियत और पोलैंड की सेनाओं ने बर्लिन पर क़ब्ज़ा कर लिया और युरोप में दूसरे विश्वयुद्ध का अन्त ८ मई १९४५ को तब हुआ जब जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया।
सन् १९४४ और १९४५ के दौरान अमेरिका ने कई जगहों पर जापानी नौसेना को शिकस्त दी और पश्चिमी प्रशान्त के कई द्वीपों में अपना क़ब्ज़ा बना लिया। जब जापानी द्वीपसमूह पर आक्रमण करने का समय क़रीब आया तो अमेरिका ने जापान में दो परमाणु बम गिरा दिये। १५ अगस्त १९४५ को एशिया में भी दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया जब जापानी साम्राज्य ने आत्मसमर्पण करना स्वीकार कर लिया।
पृष्ठभूमि
पहले विश्वयुद्ध में हार के बाद जर्मनी को वर्साय की संधि पर जबरन हस्ताक्षर करना पड़ा। इस संधि के कारण उसे अपने कब्ज़े की बहुत सारी ज़मीन छोडनी पड़ी, किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं करने की शर्त माननी पड़ी, अपनी सेना को सीमित करना पड़ा और उसको पहले विश्व युद्ध में हुए नुकसान की भरपाई के रूप में दूसरे देशों को भुगतान करना पड़ा।१९१७ में रूस में गृह युद्ध के बाद सोवियत संघ का निर्माण हुआ जो की जोसफ स्तालिन के शासन में था, १९२२ में उसी समय इटली में बेनितो मुसोलिनी का एकाधिपत्य राज्य कायम हुआ।
१९३३ में जर्मनी का शासक एडोल्फ हिटलर बना और तुंरत ही उसने जर्मनी को वापस एक शक्तिशाली सैन्य ताकत के रूप में प्रर्दशित करना शुरू कर दिया। इस बात से फ्रांस और इंग्लैंड चिंतित हो गए जो की पिछली लड़ाई में काफ़ी नुक़सान उठा चुके थे। इटली भी इस बात से परेशान था क्योंकि उसे भी लगता था की जर्मनी उसके काम में दख़ल देगा क्योंकि उसका सपना भी शक्तिशाली सैन्य ताकत बनने का था।
इन सब बातों को देखकर और अपने आप को बचाने के लिए फ्रांस ने इटली के साथ हाथ मिलाया और उसने अफ्रीका में इथियोपिया- जो उसके कब्ज़े में था- को इटली को देने का मन बना लिया। १९३५ में बात और बिगड़ गई जब हिटलर ने वर्साय की संधि को तोड़ दिया और अपनी सेना को बड़ा करने का काम शुरू कर दिया।
जर्मनी को काबू में करने के लिए इंग्लैंड, फ्रांस और इटली ने स्ट्रेसा नामक शहर (जो इटली में है) में एक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए जिसमें यह लिखा था की ऑस्ट्रिया की आज़ादी को कायम रखा जाए और जर्मनी को वर्साय की संधि तोड़ने से रोका जाए। लेकिन स्ट्रेसा घोषणा-पत्र ज्यादा सफल नहीं हुआ क्योंकि तीनों राज्यों के बीच में आम सहमती ज़्यादातर बातों पर नहीं बनी। उसी समय सोविएत संघ जो जर्मनी के पूर्वी यूरोप के बड़े हिस्से को कब्जा करने की मंशा से डरा हुआ था, फ्रांस से हाथ मिलाने को तैयार हो गया।
युद्ध की शुरुवात
1937 में चीन और जापान मार्को पोलों में आपस में लड़ रहे थे। उसी के बाद जापान ने चीन पर पर पूरी तरह से धावा बोल दिया। सोविएत संघ ने चीन तो अपना पूरा समर्थन दिया. लेकिन जापान सेना ने शंघाई से चीन की सेना को हराने शुरू किया और उनकी राजधानी बेजिंग पर कब्जा कर लिया। 1938 ने चीन ने अपनी पीली नदी तो बाड़ ग्रस्त कर दिया और चीन को थोड़ा समय मिल गया सँभालने ने का लेकिन फिर भी वो जापान को रोक नही पाये। इसे बीच सोविएत संघ और जापान के बीच में छोटा युध हुआ पर वो लोग अपनी सीमा पर ज्यादा व्यस्त हो गए।
यूरोप में जर्मनी और इटली और ताकतवर होते जा रहे थे और 1938 में जर्मनी ने आस्ट्रिया पर हमला बोल दिया फिर भी दुसरे यूरोपीय देशों ने इसका ज़्यादा विरोध नही किया। इस बात से उत्साहित होकर हिटलर ने सदेतेनलैंड जो की चेकोस्लोवाकिया का पश्चिमी हिस्सा है और जहाँ जर्मन भाषा बोलने वालों की ज्यादा तादात थी वहां पर हमला बोल दिया। फ्रांस और इंग्लैंड ने इस बात को हलके से लिया और जर्मनी से कहाँ की जर्मनी उनसे वादा करे की वो अब कहीं और हमला नही करेगा। लेकिन जर्मनी ने इस वादे को नही निभाया और उसने हंगरी से साथ मिलकर 1939 में पूरे चेकोस्लोवाकिया पर कब्जा कर लिया।
दंजिग शहर जो की पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी से अलग करके पोलैंड को दे दिया गया था और इसका संचालन देशों का संघ (अंग्रेज़ी: league of nations) (लीग ऑफ़ नेशन्स) नामक विश्वस्तरीय संस्था कर रही थी, जो की प्रथम विश्व युद्ध के बाद स्थापित हुए थी। इस देंजिंग शहर पर जब हिटलर ने कब्जा करने की सोची तो फ्रांस और जर्मनी पोलैंड को अपनी आजादी के लिए समर्थन देने को तैयार हो गए। और जब इटली ने अल्बानिया पर हमला बोला तो यही समर्थन रोमानिया और ग्रीस को भी दिया गया। सोविएत संघ ने भी फ्रांस और इंग्लैंड के साथ हाथ मिलाने की कोशिश की लेकिन पश्चिमी देशों ने उसका साथ लेने से इंकार कर दिया क्योंकि उनको सोविएत संघ की मंशा और उसकी क्षमता पर शक था। फ्रांस और इंग्लैंड की पोलैंड को सहायता के बाद इटली और जर्मनी ने भी समझौता पैक्ट ऑफ़ स्टील किया की वो पूरी तरह एक दूसरे के साथ है।
सोविएत संघ यह समझ गया था की फ्रांस और इंग्लैंड को उसका साथ पसंद नही और जर्मनी अगर उस पर हमला करेगा तो भी फ्रांस और इंग्लैंड उस के साथ नही होंगे तो उसने जर्मनी के साथ मिलकर उसपर आक्रमण न करने का समझौता (नॉन अग्ग्रेग्र्सन पैक्ट) पर हस्ताक्षर किए और खुफिया तौर पर पोलैंड और बाकि पूर्वी यूरोप को आपस में बाटने का ही करार शामिल था।
सितम्बर 1939 में सोविएत संघ ने जापान को अपनी सीमा से खदेड़ दिया और उसी समय जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोल दिया। फ्रांस, इंग्लैंड और राष्ट्रमण्डल देशों ने भी जर्मनी के खिलाफ हमला बोल दिया परन्तु यह हमला बहुत बड़े पैमाने पर नही था सिर्फ़ फ्रांस ने एक छोटा हमला सारलैण्ड पर किया जो की जर्मनी का एक राज्य था। सोविएत संघ के जापान के साथ युद्धविराम के घोषणा के बाद ख़ुद ही पोलैंड पर हमला बोल दिया। अक्टूबर 1939 तक पोलैंड जर्मनी और सोविएत संघ के बीच विभाजित हो चुका था। इसी दौरान जापान ने चीन के एक महत्वपूर्ण शहर चंघसा पर आक्रमण कर दिया पर चीन ने उन्हें बहार खड़ेड दिया। पोलैंड पर हमले के बाद सोविएत संघ ने अपनी सेना को बाल्टिक देशों (लातविया, एस्टोनिया, लिथुँनिया) की तरफ मोड़ दी। नवम्बर 1939 में फिनलैंड पर जब सोविएत संघ ने हमला बोला तो युद्ध जो विंटर वार के नाम से जाना जाता है वो चार महीने चला और फिनलैंड को अपनी थोडी सी जमीन खोनी पड़ी और उसने सोविएत संघ के साथ मॉस्को शान्ति करार पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत उसकी आज़ादी को नही छीना जाएगा पर उस सोविएत संघ के कब्जे वाली फिनलैंड की ज़मीन को छोड़ना पड़ेगा जिसमे फिनलैंड की 12 प्रतिशत जन्शंख्या रहती थी और उसका दूसरा बड़ा शहर य्वोर्ग शामिल था।
फ्रांस और इंग्लैंड ने सोविएत संघ के फिनलैंड पर हमले को द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल होने का बहाना बनाया और जर्मनी के साथ मिल गए और सोविएत संघ को देशों के संघ (लीग ऑफ़ नेशन्स) से बहार करने की कोशिश की। चीन के पास कोशिश को रोकने का मौक था क्योकि वो देशों के संघ (लीग ऑफ़ नेशन्स) का सदस्य था। लेकिन वो इस प्रस्ताव में शामिल नही हुआ क्योंकि न तो वो सोविएत संघ से और न ही पश्चिमी ताकतों से अपने आप को दूर रखना चाहता था। सोविएत संघ इस बात से नाराज़ हो गया और चीन को मिलने वाली सारी सैनिक मदद को रोक दिया। जून 1940 में सोविएत संघ ने तीनों बाल्टिक देशों पर कब्जा कर लिया।
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