भूविज्ञान
पृथ्वी के भूवैज्ञनिक क्षेत्र
भूविज्ञान या भौमिकी (Geology) वह विज्ञान है जिसमें ठोस पृथ्वी[1]पृथ्वी का निर्माण करने वाली शैलों तथा उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे शैलों, भूपर्पटी और स्थलरूपों का विकास होता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी अनेकानेक विषय आ जाते हैं जैसे, खनिज शास्त्र, तलछट विज्ञान,भूमापन और खनन इंजीनियरी इत्यादि।
इसके अध्ययन बिषयों में से एक मुख्य प्रकरण उन क्रियाओं की विवेचना हैं जो चिरंतन काल से भूगर्भ में होती चली आ रही हैं एवं जिनके फलस्वरूप भूपृष्ठ का रूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है, यद्यपि उसकी गति साधारणतया बहुत ही मंद होती है। अन्य प्रकरणों में पृथ्वी की आयु, भूगर्भ,ज्वालामुखी क्रिया, भूसंचलन, भूकंप और पर्वतनिर्माण, महादेशीय विस्थापन, भौमिकीय काल में जलवायु परिवर्तन तथा हिम युग विशेष उल्लेखनीय हैं।
भूविज्ञान में पृथ्वी की उत्पत्ति, संरचना तथा उसके संघटन एवं शैलों द्वारा व्यक्त उसके इतिहास की विवेचना की जाती है। यह विज्ञान उन प्रक्रमों पर भी प्रकाश डालता है जिनसे शैलों में परिवर्तन आते रहते हैं। इसमें अभिनव जीवों के साथ प्रागैतिहासिक जीवों का संबंध तथा उनकी उत्पत्ति और उनके विकास का अध्ययन भी सम्मिलित है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के संघटक पदार्थों, उन पर क्रियाशील शक्तियों तथा उनसे उत्पन्न संरचनाओं, भूपटल की शैलों के वितरण, पृथ्वी के इतिहास (भूवैज्ञानिक कालों) आदि के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है।
अनुक्रम
1महत्व
2भूविज्ञान के क्षेत्र
2.1भौतिक भूविज्ञान
3इन्हें भी देखें
4बाहरी कड़ियाँ
5सन्दर्भ
महत्व
भूविज्ञान, पृथ्वी के इतिहास के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। खनिजों तथा हाइड्रोकार्बनों की खोज के फलस्वरूप वर्तमान युग में इसका वाणिज्यिक महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है।
इसी प्रकार जलीय संसाधनों के मूल्यांकन में भी इसका महत्व है। प्राकृतिक विपदाओं को समझने एवं उनकी भविष्यवाणी करने के कारण यह आम जनता के लिये भी महत्व रखता है। यह पर्यावरणीय समस्याओं का हल सुझा सकता है तथा भूतकाल के जलवायु परिवर्तनों के सम्बन्ध में अंतर्दृष्टि देता है। भूतकनीकी इंजीनियरी में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
भूविज्ञान के क्षेत्र[संपादित करें]
इस विज्ञान के अनेक उपविभाग हैं जिसमें से निम्नलिखित अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं- ऐतिहासिक भूविज्ञान, भौतिक भूविज्ञान, आर्थिक भूविज्ञान, संरचनात्मक भूविज्ञान, खनिज विज्ञान, खनन भूविज्ञान, भू-आकृति विज्ञान, शैल वर्णना, शैल विज्ञान, ज्वालामुखी विज्ञान, स्तरिक भूविज्ञान एवं जीवाश्म विज्ञान।
भूविज्ञान को दो प्रमुख वर्गों में विभक्त किया जाता है:
1. भौतिक भूविज्ञान या गत्यात्मक भूविज्ञान (Physical geology or dynamical geology) और
2. ऐतिहासिक भूविज्ञान (historical geology)।
भौतिक भूविज्ञान के अंतर्गत खनिज विज्ञान (mineralogy), मृदा विज्ञान (pedology), संरचनात्मक भूविज्ञान (structural geology) और भूआकृतिक विज्ञान (physiography) सम्मिलित हैं। ऐतिहासिक भूविज्ञान में स्तरित शैलविज्ञान (stratigraphy), जीवाश्म विज्ञान (palaeontology) तथा पुराभूगोल (palaeogeography) को सम्मिलित किया जाता है।
आजकल भूविज्ञान को निम्नलिखित दो शाखाओं में विभक्त करते हैं-
मूलभूत भौमिकी (fundamental geology), तथा
अनुप्रयुक्त भौमिकी (applied geology)
भौतिक भूविज्ञान[संपादित करें]
भूपृष्ठीय परिवर्तनों के अध्ययन को बहुधा गतिकीय भूविज्ञान भी कहते हैं। स्पष्ट है कि यह नाम पृष्ठीय वातावरण की गतिशील स्थिति की ओर संकेत करता हैं, किन्तु आजकल यह नाम कुछ विशेष प्रचलित नहीं है और इसके स्थान पर भौतिक भूविज्ञान (Physical geology) अधिक प्रचलित है। इस विज्ञान के तीन मुख्य अंग होते हैं, जो इस प्रकार हैं :
(1) प्राकृतिक कारकों द्वारा पृष्ठीय शैलों का क्षय (decay), अपरदन (erosion) एवं अनाच्छादन (denudation) तथा उससे उत्पन्न अवसाद इत्यादि का परिवहन (transport),
(2) अवसाद का संचयन (accumulation) तथा
(3) संचित अवसाद का संयोजन (cementation) और दृढ़ीभवन
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