सातवाहन ने भारतीय राज्यों के उनके शासकों की छवि के साथ वाले सिक्के जारी किए | इन्होने सांस्कृतिक पुल का निर्माण किया और व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और अपने विचारों और संस्कृति को इंडो गंगा के मैदान से भारत के दक्षिण के सिरे तक आदान प्रदान किया |
सातवाहन के लोग खेती और लोहे के बारे में पूर्ण रूप से परिचित थे |
सामाजिक संगठन
सातवाहन साम्राज्य का समाज चार वर्गों के अस्तित्व को दर्शाता है :
प्रथम वर्ग उन लोगों से बना है जो जिलों का देखरेख और नियंत्रण करते थे |
द्वितीय वर्ग अधिकारियों से बना था |
तीसरा वर्ग में किसान और वैद्यों आते थे |
चौथे वर्ग में आम नागरिक आते थे |
परिवार का मुखिया गृहपति था |
प्रशासन का स्वरूप
सातवाहन साम्राज्य पाँच प्रान्तों में विभाजित था | नासिक के पश्चिमी प्रांत पर अभिरस का शासन था | इक्ष्वाकू ने कृष्ण-गुंटूर प्रांत के पूर्वी प्रांत में शासन किया | चौतस ने दक्षिण पश्चिमी भाग पर कब्जा किया और अपने प्रांत का उत्तर और पूर्व तक विस्तार किया | पहलाव ने दक्षिण पूर्वी भाग पर नियंत्रण किया |
अधिकारियों को आमात्य और महामंत्र के रूप में जाना जाता था | सेनापति को प्रांतीय राज्यपाल के तौर पर नियुक्त किया जाता था | गौल्मिका के पास सैन्य पलटनों का जिम्मा होता था जिसमे 9 हाथी, 9 रथ, 25 घोड़े और 45 पैदल सैनिक होते थे |
सातवाहन राज्य में तीन दर्जे के सामंत थे | उच्च दर्जा राजा का होता था जिसके पास सिक्कों के छापने का अधिकार था जबकि दूसरा दर्जा महाभोज का और तीसरा दर्जा सेनापति का था |
हमे कतक और स्कंधावरस जैसे शब्दों की जानकारी हमें इस युग के अभिलेखों से मिलती है |
धर्म :
बौद्ध और ब्राह्मण धर्म दोनों सातवाहन शासन के दौरान प्रचलित हुए | विभिन्न संप्रदाय के लोगों के बीच राज्य में विभिन्न धर्म में धार्मिक सहिष्णुता का अस्तित्व रहा |
वास्तुकला
सातवाहन के शासन के दौरान, चैत्य और विहार बड़ी महीनता के साथ ठोस चट्टानों से काटे गए | चैत्य बौद्ध के मंदिर थे और मोनास्ट्री को विहार के नाम से भी जाना जाता था | सबसे प्रसिद्ध चैत्य पश्चिमी दक्कन के नाशिक, करले इत्यादि में स्थित है | इस समय में चट्टानों से काटकर बनाया गया वास्तुशिल्प भी मौजूद था |
भाषा
सातवाहना के शासकों ने दस्तावेज़ों पर आधिकारिक भाषा के रूप में प्राकृत भाषा का इस्तेमाल किया | सभी अभिलेखों को प्राकृत भाषा में बनाया गया और ब्रहमी लिपि में लिखा गया |
महत्व और पतन
सातवाहन ने शुंग और मगध के कनव के साथ अपना साम्राज्य को स्थापित करने के लिए मुक़ाबला किया | बाद में इन्होने भारत के बहुत बड़े हिस्से को विदेशी आक्रमणकारियों जैसे पहलाव, शक और यवना से बचाने के लिए एक बड़ी भूमिक अदा की | गौतमीपुत्र सत्कर्णी और श्री यजना सत्कर्णी इस राजवंश के कुछ प्रमुख शासक थे |
कुछ समय के लिए सातवाहन ने पश्चिमी क्षत्रपस के साथ संघर्ष किया | तीसरी सदी AD में साम्राज्य छोटे छोटे राज्यों में बाँट गया |
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