पादप प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं, इसलिए उन्हें ‘स्वपोषी’ कहा जाता है| वे सूर्य के प्रकाश को रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं| पादप क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बन डाइ ऑक्साइड, जल और सूर्य के प्रकाश के माध्यम से अपना भोजन निर्मित करते हैं|
पादपों में पोषण निम्नलिखित दो तरह से होता है:
1) स्वपोषी (Autotrophic)
2) परपोषी (Heterotrophic)
चूंकि इस लेख में केवल पादपों में पोषण की चर्चा की जा रही है, अतः यहाँ पर केवल स्वपोषी पोषण का ही अध्ययन किया जाएगा|
स्वपोषी पोषण
स्वपोषी पोषण में जीव सरल अकार्बनिक पदार्थों, जैसे-कार्बन डाइ ऑक्साइड और जल, की सहायता से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन स्वयं बनाते हैं| इसमें कार्बनिक भोजन का निर्माण अकार्बनिक पदार्थों से होता है|
हरे पादपों में स्वपोषी पोषण पाया जाता है और इसी कारण इन्हें ‘स्वपोषी’ कहा जाता है| स्वपोषियों में हरे रंग का एक पिग्मेंट पाया जाता है, जिसे ‘क्लोरोफिल’ कहा जाता है| क्लोरोफिल सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करने में मदद करता है| इसी सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा पादप अपने भोजन का निर्माण करते हैं| पादपों द्वारा तैयार किए गए भोजन का उपभोग पादपों और जंतुओं दोनों द्वारा किया जाता है|
पादपों में पोषण
हरे पौधे अपने भोजन का संश्लेषण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा स्वयं करते हैं| यहाँ ‘प्रकाश’ से तात्पर्य ‘सूर्य का प्रकाश’ है और ‘संश्लेषण’ का अर्थ होता है-‘निर्माण करना’| अतः ‘प्रकाश संश्लेषण’ का अर्थ हुआ-‘प्रकाश के द्वारा भोजन का निर्माण’| स्वपोषियों में हरे रंग का एक पिग्मेंट पाया जाता है, जिसे ‘क्लोरोफिल’ कहा जाता है| क्लोरोफिल सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करने में मदद करता है| इसी क्लोरोफिल की उपस्थिति में सूर्य के प्रकाश का प्रयोग करते हुए प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा पादप कार्बन डाइ ऑक्साइड व जल से अपने भोजन का निर्माण करते हैं|
हरे पौधे अपना भोजन स्वयं, प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा, बनाते है|
हरे रंग के पादपों में क्लोरोफिल पाया जाता है, जिसे ‘क्लोरोप्लास्ट’ कहा जाता है| पादपों की पट्टियाँ क्लोरोफिल की उपस्थिति के कारण ही हरी होती हैं|
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया निम्न रूप में सम्पन्न होती है:
6CO2 + 6H2O + Light energy → C6H12O6 + 6O2
पादपों में भोजन का निर्माण हरी पत्तियों में होता है| पादपों द्वारा भोजन के निर्माण के लिए आवश्यक कार्बन डाइ ऑक्साइड की प्राप्ति वायु से होती है| हरी पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे छिद्र पाये जाते हैं, जिन्हें ‘स्टोमेटा’ (Stomata) कहा जाता है| स्टोमेटा के माध्यम से ही कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस पादपों की पत्तियों में प्रवेश करती है| पादप प्रकाश संश्लेषण के लिए जल मिट्टी से प्राप्त करते हैं| पादप की जड़ें जल का अवशोषण कर जाइलम के माध्यम से पत्तियों तक पहुंचाती हैं| सूर्य का प्रकाश रासायनिक क्रियाओं के लिए ऊर्जा प्रदान करता है और पत्तियों में पाया जाने वाला क्लोरोफिल इस ऊर्जा के अवशोषण में मदद करता है| ऑक्सीज़न प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का एक उप-उत्पाद है, जोकि वायु में मिल जाता है|
पत्तियों द्वारा तैयार किया गया भोजन सरल शर्करा के रूप में होता है, जिसे ‘ग्लूकोज’ कहा जाता है| यह ग्लूकोज पादप के अन्य भागों में भेज दिया जाता है और अतिरिक्त ग्लूकोज पादप की पत्तियों में स्टार्च के रूप में संचयित हो जाता है| ग्लूकोज और स्टार्च कार्बोहाइड्रेट्स समूह से संबन्धित हैं| अतः पादप सूर्य के प्रकाश को रासायनिक ऊर्जा में बादल देते हैं|
प्रकाश संश्लेषण क्रिया के चरण निम्नलिखित हैं:
i) क्लोरोफिल द्वारा सूर्य के प्रकाश का अवशोषण होता है|
ii) सूर्य का प्रकाश रासायनिक ऊर्जा में बदल जाता है और जल हाइड्रोजन व ऑक्सीज़न में टूट जाता है|
iii) कार्बन डाइ ऑक्साइड हाइड्रोजन में अपचयित (Reduced) हो जाता है ताकि ग्लूकोज के रूप में कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण हो सके|
यह आवश्यक नहीं है कि प्रकाश संश्लेषण के ये सभी चरण क्रमिक रूप से एक के बाद एक घटित हों|
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक दशाएँ
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक दशाएँ:
1) सूर्य की रोशनी
2) क्लोरोफिल
3) कार्बन डाइ ऑक्साइड
4) जल
प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए इन दशाओं या तत्वों की अनिवार्यता को दर्शाने के लिए कुछ प्रयोग नीचे किए गए हैं| इन प्रयोगों द्वारा यह साबित हो जाता है कि हरी पत्तियाँ भोजन के रूप में स्टार्च का निर्माण करती हैं और स्टार्च को जब आयोडीन के घोल में मिलाया जाता है, तो वह नीले-काले रंग में बादल जाता है|
प्रकाश संश्लेषण क्रिया में सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता को दर्शाता एक प्रयोग
• हरी पत्तियों से युक्त किसी पादप को लें और उसे अँधेरे भाग में रख दे ताकि पत्तियों में संचयित स्टार्च का पादप द्वारा उपयोग कर लिया जाए और पत्तियाँ पूरी तरह से स्टार्च से रहित हो जाए या फिर डी-स्टार्च हो जाएँ|
• अब किसी पत्ती के मध्य भाग को एल्युमीनियम चादर (Foil) से इस तरह ढंका जाए कि पत्ती का थोड़ा भाग ढंका रहे और बाकी भाग सूर्य के प्रकाश के लिए खुला रहे| एल्युमीनियम चादर को इतना कसकर बांधा जाए कि पत्ती के ढंके हुए भाग में प्रकाश का प्रवेश नहीं हो पाये|
• अब इस पादप को तीन-चार दिन के लिए सूर्य कि रोशनी में रख दें|
• उसके बाद एल्युमीनियम चादर (Foil) से आंशिक रूप से ढँकी हुई पत्ती को तोड़ लें और एल्युमीनियम चादर हटा दें| इस पत्ती को पानी में उबाल लें ताकि पत्ती की कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली हट जाए और आयोडीन का घोल पत्ती में अच्छी तरह से प्रवेश कर सके|
• पत्ती में स्टार्च की उपस्थिति की जांच करने से पहले पत्ती पर से क्लोरोफिल को हटाना होगा, अन्यथा यह जांच में अवरोध पैदा कर सकता है|
• अब इस पत्ती को एल्कोहल के बर्तन में डाल दें और एल्कोहल के बर्तन को पानी के टब में डाल दें|
• पानी के टब को गरम करें, जिससे एल्कोहल के बर्तन के अंदर का एल्कोहल भी उबलने लगेगा और पत्ती पर से क्लोरोफिल हट जाएगा और पत्ती रंगहीन हो जाएगी|
• रंघीन पत्ती को बाहर निकालकर गरम पानी से धो लें|
• रंगहीन पत्ती पर आयोडीन का घोल डालें और उसके रंग में होने वाले परिवर्तन को देखें|
• ऐसा करने पर पत्ती का वह भाग जो एल्युमीनियम चादर से ढंका हुआ था, नीले-काले रंग में नहीं बदलता है| यह दर्शाता है कि पत्ती के इस भाग में स्टार्च उपस्थित नहीं है, क्योंकि पत्ती के इस भाग को सूर्य का प्रकाश नहीं मिला है और इसी कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा स्टार्च का निर्माण नहीं हो पाया है|
• पत्ती का खुला हुआ भाग आयोडीन घोल के मिलाने पर नीले-हरे रंग में बदल जाता है| इससे यह प्रदर्शित होता है कि पत्ती के इस भाग में स्टार्च उपस्थित है| स्टार्च का निर्माण पत्ती के इस भाग में इसलिए हो पाता है क्योंकि इस भाग को सूर्य का प्रकाश प्राप्त हुआ है|
• अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति के बिना पादप में प्रकाश संश्लेषण कि क्रिया द्वारा स्टार्च का निर्माण नहीं हो पाता है|
प्रकाश संश्लेषण क्रिया में सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता को दर्शाता एक प्रयोग
प्रकाश संश्लेषण क्रिया में क्लोरोफिल की आवश्यकता को दर्शाता एक प्रयोग
• गमले में लगे हुए एक क्रोटोन/जमालघोटे के पादप को लीजिये, क्योंकि उसकी पत्तियाँ आंशिक रूप से सफ़ेद और आंशिक रूप से हरी होती हैं|
• उसे तीन दिन के लिए अंधेरे भाग में रख दें, ताकि उसकी पत्तियाँ डी-स्टार्च हो सकें|
• अब इस पौधे को बाहर निकालकर तीन-चार दिन के लिए सूर्य की रोशनी में रख दें|
• पत्ती को तोड़कर उसे कुछ मिनटों के लिए पानी में उबालें| अब इस पत्ती को एल्कोहल में उबाले ताकि उसका हरा रंग हट जाए|
• इस रंगहीन पत्ती को गरम पानी से धो लें|
• रंगहीन पत्ती पर आयोडीन का घोल डालें और उसके रंग में होने वाले परिवर्तन को देखें|
• ऐसा करने पर पत्ती का वह भाग जो सफ़ेद था, नीले-काले रंग में नहीं बदलता है| यह दर्शाता है कि पत्ती के इस भाग में स्टार्च उपस्थित नहीं है| यह भी साफ हो जाता है कि क्लोरोफिल कि उपस्थिति के बिना पादप में प्रकाश संश्लेषण कि क्रिया द्वारा स्टार्च का निर्माण नहीं हो पाता है|
• पत्ती का अंदरूनी भाग जोकि हरा था,आयोडीन के मिलाने पर नीले-हरे रंग में बदल जाता है| इससे यह प्रदर्शित होता है कि पत्ती के इस भाग में स्टार्च उपस्थित है| इस स्टार्च का निर्माण पत्ती के इस भाग में इसलिए हो पाता है क्योंकि इस भाग में क्लोरोफिल पाया जाता है| अतः प्रकाश संश्लेषण कि क्रिया के लिए क्लोरोप्लास्ट अनिवार्य है|
प्रकाश संश्लेषण क्रिया में क्लोरोफिल की आवश्यकता को दर्शाता एक प्रयोग
प्रकाश संश्लेषण क्रिया में कार्बन डाइ ऑक्साइड की आवश्यकता को दर्शाता एक प्रयोग
• किसे लंबे व संकीर्ण पत्तियों वाले पादप को लीजिये और उसे तीन दिन के लिए अंधेरे भाग में रख दें, ताकि उसकी पत्तियाँ डी-स्टार्च हो सकें|
• चौड़े मुंह वाली एक काँच की बोतल लेकर उसमें पौटेशियम हाइड्राक्साइड का थोड़ा घोल डाल दें| यह घोल बोतल के अंदर की हवा में उपस्थित सारी कार्बन डाइ ऑक्साइड को सोख लेगा|
• बोतल को एक रबड़ की कॉर्क से बंद कर दें और कॉर्क में छोटा सा चीरा लगा दें|
• डी-स्टार्च पत्ती, जो अभी भी अपने पादप से जुड़ी हो, को कॉर्क के चीरे के बीचों-बीच डाल दें| पत्ती को इस तरह से डाला जाए कि उसका ऊपरी आधा भाग बोतल से बाहर बना रहे|
• अब इस पौधे को तीन-चार दिन के लिए सूर्य कि रोशनी में रख दें| इस स्थिति में पत्ती के ऊपरी आधे भाग को वायु से कार्बन डाइ ऑक्साइड मिलती रहती हैं लेकिन बोतल के अंदर वाले भाग को कोई कार्बन डाइ ऑक्साइड नहीं मिलती है|
• पत्ती को पादप से तोड़कर बोतल से भी बाहर निकाल लें| एल्कोहल में उबालकर पत्ती के हरे रंग को हटा दें|
• रंगहीन पत्ती को जल से धो दें और उस पर आयोडीन का घोल गिराएँ| इससे पत्ती के रंग में बदलाव आ जाएगा|
• पत्ती का निचला भाग, जोकि बोतल के अंदर था, नीले-काले रंग में नहीं बदलता है| यह दर्शाता है कि पत्ती के इस भाग में कोई स्टार्च नहीं उपस्थित है|अतः इस आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के माध्यम से पौधों में स्टार्च के निर्माण के लिए कार्बन डाइ ऑक्साइड आवश्यक है|
• पत्ती का ऊपरी भाग, जोकि बोतल के बाहर था, नीले-काले रंग में बादल जाता है| यह दर्शाता है कि पत्ती के इस भाग में स्टार्च उपस्थित है|
प्रकाश संश्लेषण क्रिया में कार्बन डाइ ऑक्साइड की आवश्यकता को दर्शाता एक प्रयोग
पादप प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाइ ऑक्साइड कैसे प्राप्त करते हैं ?
हरे पादप प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाइ ऑक्साइड की प्राप्ति वायु से करते हैं| हरी पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे छिद्र पाये जाते हैं, जिन्हें ‘स्टोमेटा’ (Stomata) कहा जाता है| स्टोमेटा के माध्यम से ही कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस पादपों की पत्तियों में प्रवेश करती है| प्रत्येक स्टोमेटा चारों तरफ से रक्षक कोशिकाओं (Guard Cells) के एक ऐसे जोड़े से घिरी होती है, जोकि स्टोमेटा के छिद्र के खुलने और बंद होने को नियंत्रित करती हैं| जब जल रक्षक कोशिकाओं में प्रवेश करता है तो वे फूल जाती हैं और मुड़ जाती हैं, जिसके कारण स्टोमेटा के छिद्र खुल जाते हैं| इसके विपरीत जब जल रक्षक कोशिकाओं से बाहर निकलता है तो वे सिकुड़ जाती हैं और सीधी हो जाती हैं, जिसके कारण स्टोमेटा के छिद्र बंद हो जाते हैं|
अतः जब पादप को कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस की जरूरत नहीं होती है और वह जल को संरक्षित रखना चाहता है, तो वह स्टोमेटा के छिद्र बंद कर देता है| प्रकाश संश्लेषण के दौरान उत्पन्न ऑक्सिजन भी स्टोमेटा के छिद्रों द्वारा बाहर निकल जाती है| इस तरह पादपों में गैसों का विनिमय स्टोमेटा के छिद्रों द्वारा होता है| पादप के तने में भी स्टोमेटा छिद्र पाये जाते हैं|
चौड़ी पत्तियों में स्टोमेटा केवल पत्ती की निचली सतह पर ही पाये जाते हैं लेकिन संकीर्ण पत्तियों में स्टोमेटा पत्ती के दोनों तरफ समान रूप से वितरित होते हैं|
पादप प्रकाश संश्लेषण के लिए जल कैसे प्राप्त करते हैं ?
पादप प्रकाश संश्लेषण के लिए जल मिट्टी से प्राप्त करते हैं| पादप की जड़ों द्वारा मिट्टी से जल का अवशोषण किया जाता है और जाइलम के माध्यम से पत्तियों तक पहुंचाया जाता है, जिसका उपयोग पादपों द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में किया जाता है|
पादप कार्बन डाइ ऑक्साइड और जल का उपयोग कर ‘कार्बोहाइड्रेट्स’ के रूप में ऊर्जा का निर्माण किया जाता है| पादप के लिए जरूरी अन्य तत्वों, जैसे-नाइट्रोजन, फास्फोरस, लौह और मैग्नीशियम आदि की आपूर्ति मिट्टी द्वारा की जाती है|
प्रकाश संश्लेषण स्थल:क्लोरोप्लास्ट
हरे पादप के वे कोशिकांग जिनमें क्लोरोफिल पाया जाता है, ‘क्लोरोप्लास्ट’ कहलाते हैं| क्लोरोप्लास्ट में ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सम्पन्न होती है| क्लोरोप्लास्ट पत्तियों की ऊपरी एपिडर्मिस के नीचे पाया जाता है|
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