किसी जीव के शरीर से विषाक्त अपशिष्ट (Toxic Wastes) को बाहर निकालने की प्रक्रिया उत्सर्जन (Excretion) कहलाती है। कार्बन डाईऑक्साइड और यूरिया मानव शरीर द्वारा उत्सर्जित किए जाने वाले प्रमुख अपशिष्ट है। कार्बन डाईऑक्साइड श्वसन की प्रक्रिया से पैदा होता है और यूरिया यकृत (लीवर) में अप्रयुक्त प्रोटीनों के अपघटन से बनता है। मानव शरीर से इन्हें बाहर निकालना अनिवार्य है, क्योंकि इनका मानव शरीर में संचित होना जहरीला होता है और ये उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। शरीर से अपशिष्ट बाहर निकालने के लिए अलग–अलग अंग होते हैं। ये अंग हैं–फेफड़े (lungs) और वृक्क (kidney)। हमारे फेफड़े (lungs) कार्बन डाईऑक्साइड का और वृक्क (kidney) यूरिया का उत्सर्जन करते हैं। इसलिए वृक्क (kidney) मानव शरीर का मुख्य उत्सर्जक अंग है|
सबसे पहले हम देखेंगे कि फेफड़ों से किस प्रकार कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकाला जाता है| श्वसन की प्रक्रिया के दौरान भोजन के ऑक्सीकरण द्वारा शरीर में अपशिष्ट पदार्थ के रूप में कार्बन डाईऑक्साइ बनता है। प्रसरण (Diffusion) के द्वारा यह कार्बन डाईऑक्साइड शरीर के ऊतकों में से रक्त प्रवाह में प्रवेश करता है। रक्त इस कार्बन डाईऑक्साइड को फेफड़ों में ले जाता है। जब हम सांस बाहर की तरफ छोड़ते हैं, तब फेफड़े कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं जो नाक के माध्यम से वायु में मिल जाता है।
मनुष्यों का उत्सर्जन तंत्र शरीर के तरल अपशिष्टों को एकत्र करता है और उन्हें बाहर निकालने में मदद करता है। इसमें निम्नलिखित मुख्य अंग होते हैं– दो वृक्क (kidney), दो मूत्रवाहिनियां (Ureters), मूत्राशय (Bladder) और मूत्रमार्ग (Urethra)। वृक्क सेम के बीज के आकार वाले अंग हैं, जो मानव शरीर के पिछले भाग में कमर से थोड़ा ऊपर स्थित होते हैं। हर किसी मनुष्य में दो वृक्क होते हैं। हमारे वृक्कों में रक्त लगातार प्रवाहित होता रहता है। वृक्क की धमनी (Renal Artery Or Kidney Artery) वृक्क में अपशिष्ट पदार्थों से युक्त गंदा रक्त लाती है। इसलिए, वृक्क का काम विषैले पदार्थ, जैसे-यूरिया व कुछ अन्य अपशिष्ट लवणों और रक्त में मौजूद अतिरिक्त जल का पीले तरल, जिसे मूत्र कहा जाता है, के रूप में उनका उत्सर्जन करना है। वृक्क द्वारा साफ किए गए रक्त को वृक्क शिरा (Renal Vein Or Kidney Vein) ले कर जाती हैं।
प्रत्येक वृक्क से एक मूत्रवाहिनी मूत्राशय में खुलती है। मूत्रवाहिनियां वे नलियां होती हैं, जो मूत्र को वृक्क से मूत्राशय में लेकर जाती हैं। यहां मूत्र जमा होता है। मूत्राशय बड़ा होता है और हमारे शौचालय जाने तक मूत्र को जमा कर के रखता है। मूत्रमार्ग (Urethra) कहलाने वाली नली, जो मूत्राशय से जुड़ी होती है, से मूत्र मानव शरीर से बाहर निकलता है।
अब, हम वृक्क और उसके कार्यों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे
वृक्क की संरचना में दिखाया गया है कि प्रत्येक वृक्क अत्यधिक संख्या में उत्सर्जन इकाईयों, जिसे नेफ्रॉन कहते हैं, से बना होता है। नेफ्रॉन के ऊपरी हिस्से पर कप के आकार का थैला होता है, जिसे ‘बोमैन्स कैप्सूल’ (Bowman’s capsule) कहते हैं। बोमैन्स कैप्सूल के निचले हिस्से पर नली के आकार की छोटी नली (Tubule) होती है। ये दोनों मिलकर नेफ्रॉन बनाते हैं। नली का एक सिरा बोमैन्स कैप्सूल (Bowman’s capsule) से जुड़ा होता है और दूसरा वृक्क की मूत्र–एकत्र करने वाली संग्रहण नलिका से जुड़ा होता है। बोमैन्स कैप्सूल (Bowman’s capsule) में रक्त केशिका (Capillaries) का पुलिंदा होता है, इसे ‘ग्लोमेरुलस’ (Glomerulus) कहते हैं। ग्लोमेरुलस (Glomerulus) का एक सिरा वृक्क धमनी से जुड़ा होता है जो इसमें यूरिया अपशिष्ट युक्त गंदा रक्त लाता है और दूसरा सिरा यूरिया मुक्त रक्त के लिए वृक्क शिरा (Renal Vein) के साथ जुड़ा होता है।
ग्लोमेरुलस (Glomerulus) का काम उसमें से प्रवाहित वाले रक्त को साफ करना है। रक्त में उपस्थित ग्लूकोज, एमीनो एसिड, लवण, यूरिया और जल जैसे तत्वों के सिर्फ छोटे अणु ही इससे गुजर पाते हैं और बोमैंस कैप्सूल में साफ हो कर जमा हो जाते हैं। ग्लोमेरुलस (Glomerulus) केशिकाओं (Capillaries) से प्रोटीन और रक्त कोशिकाओं जैसे बड़े अणु नहीं गुजर पाते हैं और रक्त में ही रह जाते हैं। नेफ्रॉन की छोटी नली (Tubule) ग्लूकोज, एमिनो एसिड, लवण और जल जैसे चुनिंदा उपयोगी पदार्थों के रक्त कोशिकाओं में पुनः अवशोषण की अनुमति देता है। लेकिन, यूरिया छोटी नली (Tubule) में ही रह जाता है और रक्त केशिकाओं में पुनः अवशोषित नहीं हो पाता है।
उत्सर्जन तंत्र की कार्यप्रणाली
जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, यूरिया जैसे अपशिष्ट से युक्त गंदा रक्त ग्लोमेरुलस (Glomerulus) में प्रवेश करता है और यहां रक्त साफ होता है। निस्पंदन (Filtration) के दौरान रक्त में मौजूद ग्लूकोज, एमीनो एसिड, लवण, यूरिया और पानी आदि बोमैन्स कैप्सूल से गुजरता है और फिर नेफ्रॉन की छोटी नली (Tubule) में प्रवेश करता है। यहां उपयोगी पदार्थ छोटी नली (Tubule) के आस–पास वाली रक्त केशिकाओं के माध्यम से रक्त में पुनःअवशोषित हो जाते हैं। नेफ्रॉन की छोटी नली (Tubule) में रह गया तरल मूत्र है। नेफ्रॉन इस मूत्र को वृक्क की संग्रहण नलिका (Collecting Duct Of The Kidney) में ले जाता है, जहां से यह मूत्रनली में ले जाई जाती है और यहां से ही मूत्र मूत्राशय में जाता है। कुछ समय के बाद मूत्र मूत्रमार्ग से शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है।
वृक्क का खराब होना (Kidney failure or Renal failure) क्या है?
वृक्क में किसी प्रकार के संक्रमण, किसी प्रकार की चोट या वृक्क में रक्त का सीमित प्रवाह वृक्क को काम करने से रोक सकता है और उसे पूरी तरह से खराब कर सकता है तथा यूरिया एवं अन्य अपशिष्ट उत्पादों को रक्त में जाने से नहीं रोक पाता है। यहां तक की शरीर में जल की मात्रा भी नियंत्रित नहीं हो पाती। ऐसी स्थिति में अगर रोगी का उचित उपचार नहीं किया गया तो उसकी मौत भी हो सकती है। इसका सबसे अच्छा समाधान है-वृक्क का प्रत्यारोपण (Kidney Transplant)। इसमें क्षतिग्रस्त वृक्क को हटा दिया जाता है और किसी स्वस्थ व्यक्ति के वृक्क को शल्य चिकित्सा के माध्यम से प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। अगर ऐसा संभव न हो तो रोगी को नियमित अंतराल पर वृक्क मशीन पर रखा जाता है, जिसे डायलिसिस की प्रक्रिया कहते हैं। वृक्क मशीन को कृत्रिम वृक्क भी कहा जाता है, जो डायलिसिस के माध्यम से रक्त से अपशिष्ट उत्पादों को हटा देती है।
इसलिए डायलिसिस एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका प्रयोग किसी व्यक्ति के रक्त में से अपशिष्ट पदार्थ यूरिया को अलग कर रक्त को साफ करने में किया जाता है। रोगी की बाहों में धमनी से रक्त को डायलिसिस मशीन, जो चुनींदा पारगम्य झिल्ली की लंबी नलियों से बनी होती है और डायलिसिस घोल वाले टैंक में कुंडली रूप में रखे होते हैं, के डायलाइजर में प्रवाहित किया जाता है। डायलिसिस घोल में पानी, ग्लूकोज और लवण आम शरीर में मौजून इन तत्वों की सांद्रता के जैसा ही होता है। मरीज का रक्त जैसे ही डायलिसिस घोल से प्रवाहित होता है, वैसे ही उसमें मौजूद यूरिया जैसे अधिकांश अपशिष्ट चुनींदा पारगम्य झिल्ली सेल्युलोज नलियों से डायलाइजिंग घोल में प्रवाहित होते हैं। साफ किया हुआ रक्त रोगी की बाहों की शिराओं में वापस भेजा जाता है।
जंतुओं में उत्सर्जन से संबन्धित तथ्य
विभिन्न जंतुओं में उत्सर्जन के लिए अलग-अलग विधि अपनाई जाती है,जैसे-
अमीबा व अन्य एककोशिकीय जीवों में अपशिष्ट कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन कोशिका भित्ति द्वारा परासरण की क्रिया के माध्यम से होता है, लेकिन नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त जल का उत्सर्जन संकुचनशील रिक्तिका के माध्यम से होता है|
केंचुओं में नलिका जैसे उत्सर्जी अंग पाये जाते हैं, जिन्हें ‘नेफ्रीडिया’ (Nephridia) कहा जाता है| इसके साथ-साथ केंचुए की आर्द्र त्वचा भी उत्सर्जन तंत्र की भूमिका निभाती है|
मनुष्यों में पतली सूक्ष्म नलिकाएँ, जिन्हें ‘नेफ़्रान’ कहा जाता है, उत्सर्जन इकाई के रूप में कार्य करती हैं| उत्सर्जन अंग ‘वृक्क’ (Kidney) का निर्माण एक मिलियन नेफ़्रान के आपस में मिलने से होता है|
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