भारत का भूगोल
देश में वर्षा का वितरण
अधिक वर्षा वाले क्षेत्र- यहाँ वार्षिक वर्षा की मात्रा200 सेमी. से अधिक होता है। क्षेत्र- असम,अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, कोंकण,मालाबार तट, दक्षिण कनारा, मणिपुर एवंमेघालय।
साधारण वर्षा वाले क्षेत्र- इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा कीमात्रा 100 से 200 सेमी. तक होती है। क्षेत्र-पश्चिमी घाट का पूर्वोत्तर ढाल, पं. बँगाल कादक्षिणी- पश्चिमी क्षेत्र, उड़ीसा, बिहार, दक्षिणी-पूर्वीउत्तर प्रदेश इत्यादि।
न्यून वर्षा वाले क्षेत्र- यहाँ 50 से 100 सेमी. वार्षिकवर्षा होती है। क्षेत्र- मध्य प्रदेश, दक्षिण का पठारीभाग, गुजरात, कर्नाटक, पूर्वी राजस्थान, दक्षिणीपँजाब, हरियाणा तथा दक्षिणी उत्तर प्रदेश।
अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र- यहाँ वर्षा 50 सेमी. से भीकम होती है। क्षेत्र- कच्छ, पश्चिमी राजस्थान,लद्दाख आदि।
भूगर्भिक इतिहास
भारत की भूगर्भीय संरचना को कल्पों के आधार परविभाजित किया गया है। प्रीकैम्ब्रियन कल्प केदौरान बनी कुडप्पा और विंध्य प्रणालियां पूर्वी वदक्षिणी राज्यों में फैली हुई हैं। इस कल्प के एकछोटे काल के दौरान पश्चिमी और मध्य भारत कीभी भूगर्भिक संरचना तय हुई। पेलियोजोइक कल्पके कैम्ब्रियन, ऑर्डोविसियन, सिलुरियन औरडेवोनियन शकों के दौरान पश्चिमी हिमालय क्षेत्र मेंकश्मीर और हिमाचल प्रदेश का निर्माण हुआ।मेसोजोइक दक्कन ट्रैप की संरचनाओं को उत्तरीदक्कन के अधिकांश हिस्से में देखा जा सकता है।ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र का निर्माणज्वालामुखीय विस्फोटों की वजह से हुआ।कार्बोनिफेरस प्रणाली, पर्मियन प्रणाली औरट्रियाजिक प्रणाली को पश्चिमी हिमालय में देखा जासकता है। जुरासिक शक के दौरान हुए निर्माण कोपश्चिमी हिमालय और राजस्थान में देखा जासकता है।
टर्शियरी युग के दौरान मणिपुर, नागालैंड,अरुणाचल प्रदेश और हिमालियन पट्टिका में काफीनई संरचनाएं बनी। क्रेटेशियस प्रणाली को हममध्य भारत की विंध्य पर्वत श्रृंखला व गंगा दोआबमें देख सकते हैं। गोंडवाना प्रणाली को हम नर्मदानदी के विंध्य व सतपुरा क्षेत्रों में देख सकते हैं।इयोसीन प्रणाली को हम पश्चिमी हिमालय औरअसम में देख सकते हैं। ओलिगोसीन संरचनाओं कोहम कच्छ और असम में देख सकते हैं। इस कल्पके दौरान प्लीस्टोसीन प्रणाली का निर्माणज्वालमुखियों के द्वारा हुआ। हिमालय पर्वतश्रृंखला का निर्माण इंडो-ऑस्ट्रेलियन औरयूरेशियाई प्लेटों के प्रसार व संकुचन से हुआ है। इनप्लेटों में लगातार प्रसार की वजह से हिमालय कीऊँचाई प्रतिवर्ष 1 सेमी. बढ़ रही है।
भारतीय प्लेट: भारत पूरी तरह से भारतीय प्लेटपर स्थित है। यह एक प्रमुख टेक्टोनिक प्लेट हैजिसका निर्माण प्राचीन महाद्वीप गोंडवानालैंड केटूटने से हुआ है। लगभग 9 करोड़ वर्ष पूर्व उत्तरक्रेटेशियस शक के दौरान भारतीय प्लेट ने उत्तरकी ओर लगभग 15 सेमी प्रति वर्ष की दर से गतिकरना आरंभ कर दिया। सेनोजोइक कल्प केइयोसीन शक के दौरान लगभग 5 से 5.5 करोड़ वर्षपूर्व यह प्लेट एशिया से टकराई। 2007 में जर्मनभूगर्भशास्त्रियों ने बताया कि भारतीय प्लेट केइतने तेजी से गति करने का सबसे प्रमुख कारणइसका अन्य प्लेटों की अपेक्षा काफी पतला होनाथा। हाल के वर्र्षों में भारतीय प्लेट की गतिलगभग 5 सेमी. प्रतिवर्ष है। इसकी तुलना मेंयूरेशियाई प्लेट की गति मात्र 2 सेमी प्रतिवर्ष ही है।इसी वजह से भारत को च्फास्टेस्ट कांटीनेंटज् कीसंज्ञा दी गई है।
जल राशि
भारत में लगभग 14,500 किमी. आंतरिकनौपरिवहन योग्य जलमार्ग हैं। देश में कुल 12नदियां ऐसी हैं जिन्हें बड़ी नदियों की श्रेणी में रखाजा सकता है। इन नदियों का कुल अपवाह क्षेत्रफल2,528,000 वर्ग किमी. है। भारत की सभी प्रमुखनदियां निम्नलिखित तीन क्षेत्रों से निकलती हैं-
1. हिमालय या काराकोरम श्रृंखला
2. मध्य भारत की विंध्य और सतपुरा श्रृंखला
3. पश्चिमी भारत में साह्यïद्री अथवा पश्चिमी घाट
हिमालय से निकलने वाली नदियों को यहां केग्लेशियरों से जल प्राप्त होता है। इनकी खास बातयह है कि पूरे वर्ष इन नदियों में जल रहता है।अन्य दो नदी प्रणालियां पूरी तरह से मानसून परही निर्भर हैं और गर्मी के दौरान छोटी नदियां मात्रबन कर रह जाती हैं। हिमालय से पाकिस्तान बहकर जाने वाली नदियों में सिंधु, ब्यास, चिनाब,राबी, सतलुज और झेलम शामिल हैं।
गंगा-ब्रह्म्ïापुत्र प्रणाली का जल अपवाह क्षेत्रसबसे ज्यादा 1,100,000 वर्ग किमी. है। गंगा काउद्गम स्थल उत्तरांचल के गंगोत्री ग्लेशियर से है।यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बहते हुए बंगाल की खाड़ीमें जाकर गिरती है। ब्रह्म्ïापुत्र नदी का उद्गमस्थल तिब्बत में है और अरुणाचल प्रदेश में यहभारत में प्रवेश करती है। यह पश्चिम की ओर बढ़तेहुए बांग्लादेश में गंगा से मिल जाती है।
पश्चिमी घाट दक्कन की सभी नदियों का स्रोत है।इसमें महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियांशामिल हैं। ये सभी नदियां बंगाल की खाड़ी मेंगिरती हैं। भारत की कुल 20 फीसदी जल अपवाहइन नदियों के द्वारा ही होता है।
भारत की मुख्य खाडिय़ों में कांबे की खाड़ी, कच्छकी खाड़ी और मन्नार की खाड़ी शामिल हैं। जलसंधियों में पाल्क जलसंधि है जो भारत और श्रीलंकाको अलग करती है, टेन डिग्री चैनल अंडमान कोनिकोबार द्वीपसमूह से अलग करता है और ऐटडिग्री चैनल लक्षद्वीप और अमिनदीवी द्वीपसमूहको मिनीकॉय द्वीप से अलग करता है। महत्वपूर्णअंतरीपों में भारत की मुख्यभूमि के धुर दक्षिणभाग में स्थित कन्याकुमारी, इंदिरा प्वाइंट (भारतका धुर दक्षिण हिस्सा), रामा ब्रिज और प्वाइंटकालीमेरे शामिल हैं। अरब सागर भारत के पश्चिमीकिनारे पर पड़ता है, बंगाल की खाड़ी और हिंदमहासागर भारत के क्रमश: पूर्वी और दक्षिणी भागमें स्थित हैं। छोटे सागरों में लक्षद्वीप सागर औरनिकोबार सागर शामिल हैं। भारत में चार प्रवालभित्ति क्षेत्र हैं। ये चार क्षेत्र अंडमान और निकोबारद्वीपसमूह, मन्नार की खाड़ी, लक्षद्वीप और कच्छकी खाड़ी में स्थित हैं। महत्वपूर्ण झीलों में चिल्कझील (उड़ीसा में स्थित भारत की सबसे बड़ीसाल्टवाटर झील), आंध्र प्रदेश की कोल्लेरू झील,मणिपुर की लोकतक झील, कश्मीर की डल झील,राजस्थान की सांभर झील और केरल कीसस्थामकोट्टा झील शामिल हैं।
प्राकृतिक संसाधन
भारत के कुल अनुमानित पुनर्नवीनीकृत जलसंसाधन 1,907.8 किमी.घन प्रति वर्ष हैं। भारत मेंप्रतिवर्ष 350 अरब घन मी. प्रयोग योग्य भूमि जलकी उपलब्धता है। कुल 35 फीसदी भूमिजलसंसाधनों का ही उपयोग किया जा रहा है। देश कीप्रमुख नदियों व जल मार्र्गों से प्रतिवर्ष 4.4 करोड़टन माल ढोया जाता है। भारत की 56 फीसदी भूमिखेती योग्य है और कृषि के लिए प्रयोग की जाती है।
एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत में 5.4 अरबबैरल कच्चे तेल के भंडार हैं। इनमें से अधिकांशबांबे हाई, अपर असम, कांबे, कृष्णा-गोदावरी औरकावेरी बेसिन में स्थित हैं। आंध्र प्रदेश, गुजरातऔर उड़ीसा में लगभग 17 खरब घन फीट प्राकृतिकगैस के भंडार हैं। आंध्र प्रदेश में यूरेनियम के भंडारहैं।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा माइका उत्पादक देशहै। बैराइट व क्रोमाइट उत्पादन के मामले में भारतका दूसरा स्थान है। कोयले के उत्पादन के मामलेमें भारत का दुनिया में तीसरा स्थान है, वहीं लौहअयस्क के उत्पादन के मामले में भारत का चौथास्थान है। यह बॉक्साइट और कच्चे स्टील केउत्पादन के मामले में छठवें स्थान पर है औरमैंगनीज अयस्क उत्पादन के मामले में सातवेंस्थान पर है। अल्म्युनियम उत्पादन के मामले मेंइसका आठवां स्थान है। भारत में टाइटेनियम, हीरेऔर लाइमस्टोन के भी भंडार प्रचुर मात्रा में हैं।भारत में दुनिया के 24 फीसदी थोरियम भंडारमौजूद हैं।
नमभूमि
नमभूमि वह क्षेत्र है जो शुष्क और जलीय इलाके सेलेकर कटिबंधीय मानसूनी इलाके में फैली होती हैऔर यह वह क्षेत्र होता है जहां उथले पानी की सतहसे भूमि ढकी रहती है। ये क्षेत्र बाढ़ नियंत्रण मेंप्रभावी हैं और तलछट कम करते हैं। भारत में येकश्मीर से लेकर प्रायद्वीपीय भारत तक फैले हैं।अधिकांश नमभूमि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर परनदियों के संजाल से जुड़ी हुई हैं। भारत सरकार नेदेश में संरक्षण के लिए कुल 71 नमभूमियों काचुनाव किया है। ये राष्ट्रीय पार्र्कों व विहारों केहिस्से हैं। कच्छ वन समूचे भारतीय समुद्री तट परपरिरक्षित मुहानों, ज्वारीय खाडिय़ों, पश्च जल क्षारदलदलों और दलदली मैदानों में पाई जाती हैं। देशमें कच्छ क्षेत्रों का कुल क्षेत्रफल 4461 वर्ग किमी. हैजो विश्व के कुल का 7 फीसदी है। भारत में मुख्यरूप से कच्छ वन अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह,सुंदरबन डेल्टा, कच्छ की खाड़ी और महानदी,गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टा पर स्थित हैं।महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल के कुछ क्षेत्रों में भीकच्छ वन स्थित हैं।
सुंदरबन डेल्टा दुनिया का सबसे बड़ा कच्छ वन है।यह गंगा के मुहाने पर स्थित है और पं. बंगाल औरबांग्लादेश में फैला हुआ है। यहां के रॉयल बंगालटाइगर प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त यहां विशिष्टप्राणि जात पाये जाते हैं।
भारत की प्रमुख जनजातियां
भारत में जनजातीय समुदाय के लोगों की काफीबड़ी संख्या है और देश में 50 से भी अधिक प्रमुखजनजातीय समुदाय हैं। देश में रहने वालेजनजातीय समुदाय के लोग नेग्रीटो, ऑस्ट्रेलॉयडऔर मंगोलॉयड प्रजातियों से सम्बद्ध हैं। देश कीप्रमुख जनजातियां निम्नलिखित हैं-
आंध्र प्रदेश: चेन्चू, कोचा, गुड़ावा, जटापा, कोंडाडोरस, कोंडा कपूर, कोंडा रेड्डी, खोंड, सुगेलिस,लम्बाडिस, येलडिस, येरुकुलास, भील, गोंड,कोलम, प्रधान, बाल्मिक।
असम व नगालैंड: बोडो, डिमसा गारो, खासी, कुकी,मिजो, मिकिर, नगा, अबोर, डाफला, मिशमिस,अपतनिस, सिंधो, अंगामी।
झारखण्ड: संथाल, असुर, बैगा, बन्जारा, बिरहोर,गोंड, हो, खरिया, खोंड, मुंडा, कोरवा, भूमिज, मलपहाडिय़ा, सोरिया पहाडिय़ा, बिझिया, चेरू लोहरा,उरांव, खरवार, कोल, भील।
महाराष्ट्र: भील, गोंड, अगरिया, असुरा, भारिया,कोया, वर्ली, कोली, डुका बैगा, गडावास, कामर,खडिया, खोंडा, कोल, कोलम, कोर्कू, कोरबा, मुंडा,उरांव, प्रधान, बघरी।
पश्चिम बंगाल: होस, कोरा, मुंडा, उरांव, भूमिज,संथाल, गेरो, लेप्चा, असुर, बैगा, बंजारा, भील,गोंड, बिरहोर, खोंड, कोरबा, लोहरा।
हिमाचल प्रदेश: गद्दी, गुर्जर, लाहौल, लांबा,पंगवाला, किन्नौरी, बकरायल।
मणिपुर: कुकी, अंगामी, मिजो, पुरुम, सीमा।
मेघालय: खासी, जयन्तिया, गारो।
त्रिपुरा: लुशाई, माग, हलम, खशिया, भूटिया, मुंडा,संथाल, भील, जमनिया, रियांग, उचाई।
कश्मीर: गुर्जर।
गुजरात: कथोड़ी, सिद्दीस, कोलघा, कोटवलिया,पाधर, टोडिय़ा, बदाली, पटेलिया।
उत्तर प्रदेश: बुक्सा, थारू, माहगीर, शोर्का, खरवार,थारू, राजी, जॉनसारी।
उत्तरांचल: भोटिया, जौनसारी, राजी।
केरल: कडार, इरुला, मुथुवन, कनिक्कर,मलनकुरावन, मलरारायन, मलावेतन, मलायन,मन्नान, उल्लातन, यूराली, विशावन, अर्नादन,कहुर्नाकन, कोरागा, कोटा, कुरियियान,कुरुमान,पनियां, पुलायन, मल्लार, कुरुम्बा।
छत्तीसगढ़: कोरकू, भील, बैगा, गोंड, अगरिया,भारिया, कोरबा, कोल, उरांव, प्रधान, नगेशिया,हल्वा, भतरा, माडिया, सहरिया, कमार, कंवर।
तमिलनाडु: टोडा, कडार, इकला, कोटा, अडयान,अरनदान, कुट्टनायक, कोराग, कुरिचियान, मासेर,कुरुम्बा, कुरुमान, मुथुवान, पनियां, थुलया,मलयाली, इरावल्लन, कनिक्कर,मन्नान, उरासिल,विशावन, ईरुला।
कर्नाटक: गौडालू, हक्की, पिक्की, इरुगा, जेनु,कुरुव, मलाईकुड, भील, गोंड, टोडा, वर्ली, चेन्चू,कोया, अनार्दन, येरवा, होलेया, कोरमा।
उड़ीसा: बैगा, बंजारा, बड़होर, चेंचू, गड़ाबा, गोंड,होस, जटायु, जुआंग, खरिया, कोल, खोंड, कोया,उरांव, संथाल, सओरा, मुन्डुप्पतू।
पंजाब: गद्दी, स्वागंला, भोट।
राजस्थान:मीणा, भील, गरसिया, सहरिया, सांसी,दमोर, मेव, रावत, मेरात, कोली।
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह: औंगी आरबा,उत्तरी सेन्टीनली, अंडमानी, निकोबारी, शोपन।
अरुणाचल प्रदेश: अबोर, अक्का, अपटामिस,बर्मास, डफला, गालोंग, गोम्बा, काम्पती, खोभामिसमी, सिगंपो, सिरडुकपेन।
सरकारी नौकरियों के बारे में ताजा जानकारी देखने के लिए यहाँ क्लिक करें ।
उपरोक्त पोस्ट से सम्बंधित सामान्य ज्ञान की जानकारी देखने के लिए यहाँ क्लिक करें ।
उपचार सम्बंधित घरेलु नुस्खे जानने के लिए यहाँ क्लिक करें ।
देश दुनिया, समाज, रहन - सहन से सम्बंधित रोचक जानकारियाँ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें