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सोमवार, 8 अगस्त 2016

Science GK


General Knowledge-सामान्य ज्ञान भारत में परमाणु ऊर्जा
परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्वक ढंग से उपयोग में लाने हेतु नीतियों को बनाने के लिए 1948 ई. में परमाणु ऊर्जा कमीशन की स्थापना की गई। इन नीतियों को निष्पादित करने के लिए 1954 ई. में परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) की स्थापना की गई।

परमाणु ऊर्जा विभाग के परिवार में पाँच अनुसंधान केंद्र हैं- (i) भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (BARC)- मुंबई, महाराष्ट्र। (ii) इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR)- कलपक्कम, तमिलनाडु। (iii) उन्नत तकनीकी केंद्र (CAT) - इंदौर। (iv) वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन केंद्र (VECC) - कोलकाता। (v) परमाणु पदार्थ अन्वेषण और अनुसंधान निदेशालय (AMD)- हैदराबाद। परमाणु ऊर्जा विभाग सात राष्ट्रीय स्वायत्त संस्थानों को भी आर्थिक सहायता देता है, वे हैं- (i) टाटा फंडामेंटल अनुसंधान संस्थान (TIFR)- मुम्बई। (ii) टाटा स्मारक केंद्र (TMC) - मुंबई। (iii) साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान (SINP)- कोलकाता। (iv) भौतिकी सँस्थान (IOP)- भुवनेश्वर। (v) हरिश्चंद्र अनुसंधान संस्थान (HRI)- इलाहाबाद। (vi) गणितीय विज्ञान संस्थान (IMSs) - चेन्नई और (vii) प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान (IPR)- अहमदाबाद।

नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम (Nuclear Power Programme)- 1940 ई. के दौरान देश के यूरेनियम और बड़ी मात्रा में उपलब्ध थोरियम संसाधनों के प्रयोग के लिए तीन चरण वाले परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का गठन किया गया। कार्यक्रम के चल रहे पहले चरण में बिजली के उत्पादन के लिए प्राकृतिक यूरेनियम ईंधन वाले भारी दबाव युक्त पानी रिएक्टर (Pressurised Heavy water reactors) का इस्तेमाल किया जा रहा है। उपयोग में लाए गए ईंधन को जब दुबारा संसाधित किया जाता है तो उससे प्लूटोनियम उत्पन्न होता है जिसका प्रयोग दूसरे चरण में द्रुत ब्रीडर रिएक्टर में विच्छेदित यूरेनियम के साथ ईंधन के रूप में किया जाता है। दूसरे चरण में उपयोग में लाए ईंधन को दुबारा संसाधित करने पर अधिक प्लूटोनियम और यूरोनियम-233 उत्पादित होता है, जब थोरियम का उपयोग आवरण के रूप में किया जाता है। तीसरे चरण के रिएक्टर यूरेनियम-233 का इस्तेमाल करेंगे।

नाभिकीय ऊर्जा केंद्र (Nuclear Power Stations)- अभी देश में 17 परिचालित नाभिकीय ऊर्जा रिएक्टर (दो क्वथन जलयुक्त रिएक्टर - Boiling water reactors और 15 पी एच डब्लू आर एस) हैं, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 4120 मेगावाट इकाई है। भारत में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र की रूपरेखा, निर्माण और संचालन की क्षमता पूरी तरह तब प्रतिष्ठित हुई जब चेन्नई के पास कालपक्कम में 1984 और 1986 में दो स्वदेशी पी एच डब्ल्यू आर एस की स्थापना की गई। वर्ष 2008 में एनपीसीआईएल के परमाणु संयंत्रों से 15,430 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ।

तारापुर परमाणु विद्युत परियोजना-3 एवं 4 की 540 मेगावाट की इकाई-4 को 5 वर्षों से कम समय में ही मार्च 2005 को क्रांतिक (Critical) किया गया। कैगा 3 एवं 4 का निर्माण प्रगत अवस्था में है तथा कैगा-3 के अधिचालन (commissioning) की गतिविधियाँ शुरू की जा चुकी हैं। इन इकाइयों को 2007 तक पूरा किया जाना है।
तमिलनाडु के कंदुनकुलम में परमाणु ऊर्जा केंद्र की स्थापना करने के लिए भारत ने रूस से समझौता किया। इस केंद्र में दो दबावयुक्त जल रिएक्टर (हर एक की क्षमता 1000 मेगावाट) होंगे।

भारी जल उत्पादन (Heavy Water Production) - भारी जल का इस्तेमाल पी एच डब्ल्यू आर में परिमार्णक और शीतलक के रूप में किया जाता है। भारी जल उत्पादन संयंत्रों की स्थापना निम्नलिखित जगहों पर की गई है-
1. नांगल (पंजाब), देश का पहला भारी जल संयंत्र जिसकी स्थापना 1962 में की गई; 2. वडोदरा (गुजरात); 3. तालचेर (उड़ीसा); 4. तूतीकोरिन (तमिलनाडु); 5. थाल (महाराष्ट्र); 6. हज़ीरा (गुजरात); 7. रावतभाटा (गुजरात); 8. मानुगुरू (आंध्र प्रदेश)

नाभिकीय ईंधन उत्पादन (Nuclear Fuel Production) - हैदराबाद का नाभिकीय ईंधन कॉम्पलेक्स दबावयुक्त जल रिएक्टर के लिए आवश्यक ईंधन के तत्वों को तैयार करता है। यह तारापुर के क्वथन जल (boiling water) रिएक्टर के लिए आयात यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड से संवर्धित यूरेनियम ईंधन के तत्वों का भी उत्पादन करता है।

प्रमुख परमाणु अनुसंधान केंद्र (Main Atomic Research Center)

1. भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Center) - इसको मुंबई के निकट ट्राम्बे में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान के रूप में 1957 ई. में स्थापित किया गया और 1967 ई. में इसका नाम बदलकर इसके संस्थापक डा. होमी जहाँगीर भाभा की याद में 'भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, बार्क' रख दिया गया। नाभिकीय ऊर्जा और उससे जुड़े अन्य विषयों पर अनुसंधान और विकास कार्य करने के लिए यह प्रमुख राष्ट्रीय केंद्र है।

2. इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (Indira Gandhi Atomic Research Center- IGCAR ) - 1971 ई. में फास्ट ब्रीडर टेक्नोलॉजी के अनुसंधान और विकास के लिए चेन्नई के कालपक्कम में इसकी स्थापना की गई। आई जी सी ए आर ने फास्ट ब्रीडर रिएक्टर एफ बी टी आर को अभिकल्पित किया जो प्लूटोनियम और प्राकृतिक यूरेनियम मूलांश के साथ देशी मिश्रित ईंधन का इस्तेमाल करता है। इससे भारत को अपने प्रचुर थोरियम संसाधनों से परमाणु ऊर्जा उत्पन्न करने में सहायता मिलेगी। इस अनुसंधान केंद्र ने देश का पहला न्यूट्रॉन रिएक्टर 'कामिनी' को भी विकसित किया। ध्रुव, अप्सरा और साइरस का इस्तेमाल रेडियो आइसोटोप तैयार करने के साथ-साथ परमाणु प्रौद्योगिकियों व पदार्थों में शोध, मूल और व्यावहारिक शोध तथा प्रशिक्षण में किया जाता है। भारत आज विश्व का सातवाँ तथा प्रथम विकासशील देश है जिसके पास उत्कृष्ट फास्ट ब्रीडर प्रजनक प्रौद्योगिकी मौजूद है।























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