Q.1. भारत सरकार का विधि अधिकारी कौन होता है ?
Ans.महान्यायवादी
Q.2. क्या भारत का महान्यायवादी संसद के किसी सदन का सदस्य होता है ?
Ans.नहीं
Q.3. संसद सदस्य नहीं होते हुए भी, क्या भारत का महान्यायवादी सदन में या उनकी समितियों में बोल सकता है ?
Ans.हां
Q.4. महान्यायवादी की नियुक्ति कौन करता है ?
Ans.राष्ट्रपति
Q.5. किसे भारत के राज्य क्षेत्र के सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार है ?
Ans.महान्यायवादी
Q.6. भारत में महान्यायवादी की व्यवस्था का जिक्र संविधान के किस अनुच्छेद में मिलती है ?
Ans.अनुच्छेद 76
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग)
Q.7. संविधान के किस अनुच्छेद में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) का उल्लेख है ?
Ans.अनुच्छेद 148 से 151
Q.8. भारत में कैग की नियुक्ति कौन करता है ?
Ans.राष्ट्रपति
Q.9. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) को उसके पद से हटाने की प्रक्रिया क्या है ?
Ans.संसद के दोनों सदनों की सहमति पर ।
Q.10. किस उम्र में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक सेवानिवृत्त हो जाता है ?
Ans.65 वर्ष
Q.11. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का कार्यकाल कितने समय का होता है ?
Ans.6 साल
Q.12. अगर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक अपने 6 साल के कार्यकाल से पहले ही 65 वर्ष का हो गया तो क्या वो सेवानिवृत्त हो जाएगा ?
Ans.हां
Q.13. क्या सेवानिवृत्त होने के बाद नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक भारत सरकार के अधीन कोई पद धारण कर सकता है ?
Ans.नहीं
वित्त आयोग के बारे मे
1.संविधान के अनुच्छेद 280 में वित्त आयोग के गठन का उल्लेख है ।
2.राष्ट्रपति को वित्त आयोग के गठन का अधिकार है ।
3.3इसमें राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्य नियुक्त किए जाते हैं ।
4.राज्य वित्त आयोग का गठन का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 243 में है ।
अंतर्राज्यीय परिषद् के बारे मे
1.पहली बार जून 1990 में अंतर्राज्यीय परिषद् की स्थापना की गई ।
2.इसकी पहली बैठक 10 अक्टूबर 1990 को हुई ।
3.राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत केंद्र और राज्य के बीच
4.समन्वय स्थापित करने के लिए ही एक अंतर्राज्यीय परिषद् की स्थापना कर सकता है ।
5.अंतर्राज्यीय परिषद् को स्थापित करने की सिफारिश सरकारिया आयोग ने की थी ।
6.इसके सदस्य होते हैं- प्रधानमंत्री तथा उनके द्वारा मनोनीत छह कैबिनेट स्तर के मंत्री, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री और प्रशासक।
संघ लोकसेवा आयोग के बारे मे
1.लोकसेवा आयोग की स्थापना के लिए 1924 ई. में विधि आयोग ने सिफारिश की थी ।
2.सन् 1926 में लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी ।
3.इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है ।
4.संघ लोकसेवा आयोग के सदस्यों की संख्या राष्ट्रपति निर्धारित करता है ।
5.वर्तमान में संघ लोकसेवा आयोग के सदस्यों की संख्या 10 है।
6.अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 साल की उम्र तक होता है।
7.राज्य लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं । लेकिन इन्हें हटाने का अधिकार राज्यपाल को नहीं होता ।
By-मंगल मीणा
वीर विनोद: मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह (शंभूसिंह) के दरबारी कविराज श्यामलदास ने अपने इस विशाल ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना महाराणा सज्जनसिंह के आदेश पर प्रारंभ की। चार खंडों में रचित इस ग्रंथ पर कविराज श्यामलदास का ब्रिटिश सरकार द्वारा केसर-ए-हिंद की उपाधि प्रदान की गई। इस ग्रंथ में मेवाड़ के विस्तृत इतिहास सहित अन्य संबंधित रियासतों का भी वर्णन है। मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह ने श्यामलदास को कविराज व महामहोपाध्याय की उपाधि से विभूषित किया था।
बातां री फुलवारी: आधुनिक काल के प्रसिद्ध राजस्थानी कथा साहित्यकार विजयदान देथा द्वारा रचित इस रचना में राजस्थानी लोक कलाओं का संग्रह किया गया।
मुहणौत नैणसी री ख्यात: राजस्थान के अबुल फजल के नाम से प्रसिद्ध एवं जोधपुर महाराज जसवंतसिंह प्रथम के प्रसिद्ध दरबारी (दीवान) मुहणौत नैणसी द्वारा रचित इस ग्रंथ मंे राजस्थान के विभिन्न राज्यों के इतिहास (विशेषतः मारवाड़) एवं 17 वीं शताब्दी के राजपूत मुगल संबंधों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। इसे जोधपुर का गजेटियर कहा जाता है।
मारवाड़ रा परगना री विगत: मुहणौत नैणसी द्वारा रचित इस ग्रंथ में मारवाड़ रियासत के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। मारवाड़ रा परगना री विगत को राजस्थान का गजेटियर कहा जाता है।
पदमावत महाकाव्य: मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा सन 1540 ई के लगभग रचित इस महाकाव्य में अलाउद्धीन खिलजी एवं मेवाड़ शासक रावल रतनसिंह के मध्य 1301 ई में हुए युद्ध का वर्णन है।
ढोला मारू रा दूहा: कवि कल्लोल द्वारा रचित डिंगल भाषा के श्रृंगार रस से परिपूर्ण इस ग्रंथ में गागरोन के शासक ढोला व मारवण के प्रेम प्रसंग का वर्णन है।
सूरस प्रकास: जोधपुर महाराजा अभयसिंह के दरबारी कवि करणीदान कविया द्वारा रचित इस ग्रंथ में जोधपुर के राठौड़ वंश के प्रारंभ से लेकर महाराजा अभयसिंह के समय तक की घटनाओं का वर्णन है।
विजयपाल रासौ: विजयगढ (करौली) के यदुवंशी नरेश विजयपाल के आश्रित कवि नल्लसिंह भट्ट द्वारा रचित पिंगल भाषा के इस वीर रसात्मक ग्रंथ में विजयगढ (करौली) के शासक विजयपाल यादव की दिग्विजयों का वर्णन है।
नागर समुच्चय: यह ग्रंथ किशनगढ के शासक सांवतसिंह उर्फ नागरीदास की विभिन्न राधा-कृष्ण प्रेम विषयक रचनाओं का संग्रह है।
वेलि क्रिसन रूकमणी री: मुगल सम्राट अकबर के दरबारी नवरत्नों में से एक एवं बीकानेर महाराजा रायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा रचित डिंगल भाषा के इस सुप्रसिद्ध ग्रंथ में श्रीकृष्ण एवं रूकमणि के विवाह की कथा का वर्णन किया गया है। दुरसा आढा ने इस ग्रंथ को 5वां वेद एवं 19वां पुराण कहा है। यह राजस्थान में श्रृंगार रस की सर्वश्रेष्ठ रचना है। पीथल के नाम से साहित्य रचना करने वाले पृथ्वीराज राठौड़ को डाॅ. टेस्सिटोरी ने डिंगल का हैरोस कहा है।
बिहारी सतसई: जयपुर महाराज मिर्जा राजा जयसिंह के प्रसिद्ध दरबारी महाकवि बिहारीदास द्वारा ब्रजभाषा में रचित यह प्रसिद्ध ग्रंथ श्रृंगार रस की उत्कृष्ट रचना है।
ढोला मारवणी री चैपाई (चड़पही): इस ग्रंथ की रचना कवि हरराज द्वारा जैसलमेर के यादवी वंशी शासकों के मनोरंजन के लिए की गई।
कुवलयमाला: 8वीं शताब्दी के इस प्राकृत ग्रंथ की रचना उद्योतन सूरी ने की थी।
ब्रजनिधि ग्रंथावलि: जयपुर महाराजा प्रतापसिंह कच्छवाह द्वारा रचित काव्य ग्रंथों का संकलन। ये ब्रजनिधि के नाम से संगीत काव्य रचना करते थे।
हमीर हठ: बूंदी के हाड़ा शासक राव सुर्जन के आश्रित कवि चंद्रशेखर द्वारा रचित है।
राजपूताने का इतिहास व प्राचीन लिपिमाला: इनके रचयिता राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार पंडित गौरीशंकर हीराशंकर ओझा है। जिन्होने हिंदी में सर्वप्रथम भारतीय लिपि का शास्त्र लेखन कर अपना नाम गिनिज बुक में दर्ज करवाया। इन्होने राजस्थान के देशी राज्यों का इतिहास भी लिखा। इनका जन्म सिरोही जिले के रोहिड़ा नामक कस्बे में हुआ।
सिरोही राज्य का इतिहास: पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा द्वारा रचित
तारीख-उल-हिंद: अलबरूनी द्वारा लिखित इस ग्रंथ से 1000 ई.के आसपास की राजस्थान की सामाजिक व आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है।
तारीख-ए-अलाई (ख्जाइन उल फुतूह): अमीर खुसरों द्वारा रचित इस ग्रंथ में अलाउद्धीन खिलजी एवं मेवाड़ के राणा रतनसिंह के मध्य सन 1303 में हुए युद्ध व रानी पद्मिनी के जौहर का वर्णन मिलता है।
तारीख-ए-फिरोजशाही: जियाउद्धीन बरनी द्वारा लिखित इस ग्रंथ से रणथंभौर पर हुए मुस्लिम आक्रमणों की जानकारी मिलती है।
तारीख-ए-शेरशाही: अब्बास खां सरवानी द्वारा लिखित इस ग्रंथ में शेरशाह सूरी एवं मारवाड़ के शासक राव मालदेव के मध्य सन 1544 ई में हुए गिरी सुमेल के युद्ध का वर्णन किया गया है। सरवानी इस युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी था।
राठौड़ रतनसिंह महेस दासोत री वचनिका: जग्गा खिडि़या द्
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